राय कृष्णदास

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

साँचा:notability साँचा:asbox राय कृष्णदास (जन्म- 13 नवम्बर 1892, वाराणसी, उत्तर प्रदेश ; मृत्यु- 21 जुलाई 1980) हिन्दी गद्यगीत के प्रवर्तक थे। इन्होंने भारत कलाभवन की स्थापना की थी, जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का अंग है। कला के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान के कारण राय कृष्णदास को भारत सरकार द्वारा 'पद्म विभूषण' की उपाधि प्रदान की गयी।

जीवनवृत्त

राय कृष्णदास का जन्म 13 नवम्बर 1892 को वाराणसी के प्रतिष्ठित राय परिवार में हुआ था। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से पारिवारिक सम्बन्ध होने के कारण राय साहब का परिवार साहित्य और कलाप्रेमी था, जिसका राय साहब पर गहन प्रभाव पड़ा। राय साहब के पिता राय प्रह्लाददास हिन्दी प्रेमी थे। जयशंकर प्रसाद और मैथिलीशरण गुप्त से निकट सम्पर्क के कारण राय साहब आठ वर्ष की अवस्था से ही कविता रचने लगे थे। राय साहब बारह वर्ष के ही थे, तभी उनके पिता का असमय निधन हो गया। अतः उनकी स्कूली शिक्षा बाधित हो गयी। उन्होंने स्वाध्याय से ही हिन्दी, अंग्रेजी और बंगला भाषा-साहित्य का गहन अध्ययन किया। राय साहब अद्भुत स्मरणशक्ति सम्पन्न थे। अज्ञेय जी ने 'स्मृति लेखा' में उन्हें 'स्मरण का स्मृतिकार' कहा है।

महनीय कार्य

भारतीय कला के क्षेत्र में राय साहब का अप्रतिम योगदान है। कला के प्रति राय साहब इतने समर्पित रहे कि जनवरी 1920 में अपने खर्चे से 'भारतीय कला-परिषद्' की स्थापना की, जो 1930 में नागरी प्रचारिणी सभा का अभिन्न अंग हो गया। 1950 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 'भारत कलाभवन' की स्थापना में राय साहब का ही योगदान रहा।

साहित्यिक अवदान

राय साहब विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। स्मरण शक्ति तो अद्वितीय थी ही, ज्ञान का अक्षय कोष भी उनके पास था। जयशंकर प्रसाद जी अपनी रचनाओं के सम्बन्ध में उनसे हमेशा सलाह लेते थे। गुप्त जी की 'भारत-भारती' का जो रूप आज है, उसमें राय साहब की महती भूमिका है। 'निराला' के प्रबंध काव्य 'तुलसीदास' की भूमिका राय साहब ने ही लिखी है। अज्ञेय जी की साहित्यिक प्रतिभा के निर्माण में राय साहब का अनुपम योगदान है। अपने सौम्य व्यवहार, अनुपम कला-प्रेम और अद्वितीय स्मरण-शक्ति के कारण राय साहब हिन्दी समाज में 'नेही', 'सरकारजी', 'कला निधि', 'आर्टफुल मैन' और 'आर्ट हिस्टोरियन' के रूप में समादृत हैं।

सम्मान और पुरस्कार

भरतीय कला और संस्कृति के शिखर पुरुषों अवनीन्द्रनाथ ठाकुर, नंदलाल बसु और काशी प्रसाद जायसवाल से राय साहब की घनिष्ठता रही। इससे राय साहब की कलात्मक अभिरुचि और प्रतिभा में व्यापक संवर्धन हुआ। कला और साहित्य के क्षेत्र में राय साहब के अप्रतिम योगदान के कारण उन्हें मेरठ और काशी विश्वविद्यालयों द्वारा डी०लिट्० की उपाधि से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने 1963 में उन्हें 'पद्मभूषण' और 1980 में 'पद्मविभूषण' से सम्मानित किया। 'साहित्य वाचस्पति' से सम्मानित होने के साथ ही राय साहब को 'ललित कला अकादमी' का फेलो भी नामित किया गया।

रचनाएँ

काव्य संग्रह- ब्रजरज (ब्रजभाषा), भावुक (खड़ीबोली)

कला- भारत की चित्रकला, भारत की मूर्तिकला

गद्यगीत- साधना, छायापथ

संवादात्मक निबन्ध- संलाप, प्रवाल

कहानी संग्रह- अनाख्या, सुधांशु, आँखों की थाह

अनुवाद- खलील जिब्रान के 'दि मैड मैन' का 'पगला' शीर्षक से हिन्दी अनुवाद।

संस्मरण- जवाहर भाई

संपादन- कलानिधि (हिन्दी त्रैमासिक)

सन्दर्भ

1. 'हिन्दी के निर्माता'- कुमुद शर्मा

2. 'स्मृति-लेखा'- अज्ञेय

3. 'हिन्दी साहित्य कोश' द्वितीय भाग- संपादक: डॉ० धीरेन्द्र वर्मा

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ