रामशरण दर्नाल
रामशरण दर्नाल | |
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Born | 10 July 1937 |
Died | साँचा:death date and age ठमेल मार्ग, काठमांडू, नेपाल |
Nationality | नेपाली |
Employer | साँचा:main other |
Organization | साँचा:main other |
Agent | साँचा:main other |
Known for | संगीत अनुसंधान |
Notable work | साँचा:plainlistसाँचा:main other |
Opponent(s) | साँचा:main other |
Criminal charge(s) | साँचा:main other |
Spouse(s) | हरिमाया दर्नालसाँचा:main other |
Partner(s) | साँचा:main other |
Children | 4 |
Parent(s) | स्क्रिप्ट त्रुटि: "list" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:main other |
Awards | साँचा:plainlist |
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रामशरण दर्नाल (10 जुलाई 1937 – 18 सितंबर 2011) नेपाली लोक संगीत और संस्कृति की खोज और अन्वीक्षण में कार्यरत एक मशहूर नेपाली संगीतकार एवं अनुसंधाता थे।[१][२][३] नेपाली साहित्य में संगीत संबंधी लेखों की अभिवृद्धि से लेकर नेपाल में पश्चिमी वाद्य-यंत्रों की पहचान और लोकप्रियता तक उन्होंने विशेष भूमिका निभाई है।[४][५]
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
नामकरण संस्कार अनुसार दंड कुमार के नाम से भी परिचित रामशरण दर्नाल 10 जुलाई 1937 को तत्कालीन ड्रम मेजर सत्यकुमार दर्नाल और उनकी पत्नी दिलकुमारी दर्नाल के यहाँ काठमांडू में स्थित धोबीचौर में पैदा हुए थे।[६][७] राणा शासन के दौरान एक अछूत परिवार में जन्मे दर्नाल का बचपन उतना आसान नहीं था। अपने वालिदैन के दूसरे औलाद होने के बावजूद वे ज़िंदा रहनेवाली पहली संतति थे।[१] अपने पिता और ताऊ के बैंड तालीमें देखकर पले-बढ़े छोटी उम्र से ही दर्नाल की संगीत में दिलचस्पी थी।[२]
काठमांडू में स्थित दरबार हाई स्कूल में अपनी आधारिक पढ़ाई पूरी करने के बाद दर्नाल को सेंट रॉबर्ट्स स्कूल में अपनी माध्यमिक शिक्षा हासिल करने के लिए दार्जिलिंग भेजा गया, जहाँ उन्होंने गिटार और मैंडोलिन बजाना सीखा।[१][२]
व्यक्तिगत जीवन
जन्मजात कम प्रतिरक्षण क्षमता होने की वजह से दर्नाल को समय-समय में स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों में पहुँचाया जाता था। उन दिनों के अंधविश्वास पर आधारित होकर 11 साल के रामशरण की शादी काभ्रेपलांचोक ज़िला में स्थित महादेवस्थान मंडन की 9 साल की हरिमाया से तय की गई। 1951 में वे अपनी पढ़ाई पूरी करने हेतु दार्जिलिंग चले गए और विदेश में ही 12 साल बिताए। दर्नाल के तीन बेटे और एक बेटी है।[८][९]
कार्य जीवन
भारत में पढ़ाई के क्रम में ही दर्नाल ने कोलकाता में स्थित एक रिकॉर्डिंग कंपनी में अपने काम की शुरुआत की, जहाँ धर्मराज थापा, नातिकाजी, शिव शंकर और तारादेवी श्रेष्ठ जैसे नेपाली संगीतकारों से उनकी पहचान हुई। 1958 में दर्नाल अपने साथ नेपाल में मैंडोलिन लाए। ख़ासकर उन्हें नेपाल में पश्चिमी वाद्य-यंत्रों की पहचान और लोकप्रियता का श्रेय दिया जाता है। अपने कार्य संपर्क बढ़ाते हुए उनहोंने 1959 में नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान में मैंडोलिन वादक के पद में नौकरी की। पाँच साल बाद उन्हें महेंद्र वीर विक्रम शाह द्वारा लाई गई त्रिवर्षीय योजना के अंतर्गत नेपाल संगीत और नृत्य अकादमी में सचिव के पद में नियुक्त किया गया। 1966 में केदारमान व्यथित ने उन्हें नौकरी से निकाल देने के बावजूद सूर्य विक्रम ज्ञवाली के सिफ़ारिश में उन्हें 2004 तक वहीं काम करने का मौका मिला। लोक संगीत के क्षेत्र में दर्नाल के योगदान प्रशंसनीय हैं ही लेकिन पुष्कल बूढ़ापृथी के निदेशन अनुसार नेपाल में पश्चिमी बाजाओं के लोकप्रियता में पहुँचाए योगदान भी कम नहीं हैं। गीत-लेखन, गायन और वादन के क्षेत्रों में उनके अत्यावश्यक कार्यों के वजह से उन्हें एक सांस्कृतिक हस्ती माना जाता है।[२][१०]
प्रज्ञा प्रतिष्ठान में दर्नाल संगीत संग्रहालय के एकमात्र प्रभारी थे, जो 2500 साल पहले बुद्ध के समय में बजाई जानेवाली क्वताः सहित 127 वाद्य-यंत्रों का भंडार था।[३] 35 साल के लिए नोटेशनकार के पद में काम करने के बाद दर्नाल प्रतिष्ठान से सेवानिवृत्त हो गए।[११][१२]
संगीत शिरोमणि यज्ञराज शर्मा के सिफ़ारिश में रु॰ 150 प्रति महीना की तनख़ा में नियुक्त दर्नाल ने 2009 तक क़रीब 50 साल प्रज्ञा प्रतिष्ठान में बिताए। 2004 से लेकर 2009 तक वे प्रज्ञा-परिषद के सदस्य थे। सेवानिवृत्ति के बाद उनहोंने म्यूज़िक नेपाल में काम किया। वे त्रिभुवन विश्वविद्यालय संगीत विभाग, नेपाली लोक बाजा संग्रहालय और नेपाल दलित साहित्य एवं सांस्कृतिक अकादमी सहित कई सांस्कृतिक संगठनों में सलाहकार के पद में भी कार्यरत थे।
गीत रचना
दार्जिलिंग में अपने प्रवास के दौरान दर्नाल ने लक्खी देवी सुंदास और शिव कुमार राई जैसे विद्वानों के संपर्क में संगीत के क्षेत्र में काफ़ी तरक़्क़ी की। वे पियानो, ड्रम और गिटार बजाने में माहिर थे। कोलकाता से काठमांडू लौटते वक़्त उनहोंने अपने साथ मैंडोलिन और गिटार सहित कई और वाद्य-यंत्र लाए।[१३]
रामशरण नेपाल में गिटार और मैंडोलिन की पहचान करानेवाले पहले शख़्स थे।[१४] उन्हें संगीतकार प्रेमध्वज प्रधान को गिटार की शिक्षा देने के लिए जाना जाता है।[१५] उन्हें ईश्वरबल्लभ के कई गानों की संगीत रचना करने का श्रेय दिया गया है। उन्होंने माधवप्रसाद घिमिरे की "गाउँछ गीत नेपाली" के लिए संगीत तैयार किए थे। एम॰ बी॰ बी॰ शाह की "उसका लागि र फेरि उसैका लागि" में नोटेशन भी उन्हों ने ही लिखे थे। लेकिन दर्नाल की संगीतात्मकता की विशुद्ध झलक "हे वीर हिँड अघि सरी" में देखी जा सकती है।[१०][१६]
संगीत अन्वीक्षण और लेखन
खुद को संगीत अन्वीक्षण और अनुसंधान को समर्पित किए दर्नाल ने परंपरागत वाद्य-यंत्र और लोक संगीत की खोज में सुदूरपश्चिम प्रदेश के दुर्गम गाँवों समेत संपूर्ण नेपाल की यात्रा की। माना जाता है कि उन्होंने अपने सफ़र में हुड़का सहित कुल 365 क़िस्म के बाजाएँ इकट्ठे किए।[१७] उन्हें आधिकारिक अभिलेखों में वाद्य-यंत्रों के पंजीकरण की शुरुआत करनेवाले पहले शख़्स के रूप में जाना जाता है।
1968 में भारी मानसून बरसात की वजह से दर्नाल का घर ढह गया, जिसके नीचे उनकी माँ और अन्य 15 क़िस्म के बाजाएँ दब गए। इस घटना को वे अपने जीवन के न्यूनतम बिंदु मानते थे। बाद में संगीत से मुड़कर साहित्य की तरफ़ ज़्यादा सक्रिय होने पर उनकी ज़िंदगी ने एक नया मोड़ ले लिया। 1967 के आसपास उन्होंने वाराणसी में स्थित सँगालो नामक अख़बार में अपना पहला लेख, "नेपाली संस्कृति में वाद्यवादन का स्थान" प्रकाशित किया। एक साल बाद सो लेख को संशोधित करके गोरखापत्र में प्रकाशित किया गया। उन्होंने कुल मिलाकर नेपाली संगीत और 375 विलुप्तप्राय परंपरागत बाजाओं पर आधारित 11 किताबें लिखीं, जो 1960 के दशक में नेपाल में दुर्लभ थीं।[१०][१८][१९] बिसे नगर्ची की जीवनी के अध्ययन शुरू करनेवाले दर्नाल को मेहनत और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है।[२०]
कृतियाँ
- संगीत परिक्रमा (1981)
- नेपाली संगीत साधक (1981)
- प्रज्ञा पुरस्कार द्वारा पुरस्कृत प्रतिभा (1982)
- विश्वविख्यात संगीतकार (1984)
- संगीत के विस्तृत अवलोकन (1984)
- नेपाली संगीत-संस्कृति (1988)
- संगीत सौरभ (2002)
- नेपाली बागीना और कला (2003)
- नेपाली बाजा (2004)
- गायनशैली (2004)
- काठमांडू उपत्यका के प्राचीन समसामयिक गाने (2010)
पुरस्कार और सम्मान
नेपाली सांगीतिक क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दर्नाल ने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त की है।[२१][२२]
दर्नाल के सम्मान में नेपाल डाकघर ने 10 रुपये के दाम पर दिए जानेवाले दर्नाल के तस्वीर से अंकित टिकटें प्रकाशित की है।[२३]
नेपाल सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी पाठ्यक्रम अनुसार कक्षा 9 की नेपाली किताब में "संगीतज्ञ रामशरण दर्नाल" नामक पाठ समावेश की गई है।[२४]
पुरस्कार
- जगदंबाश्री पुरस्कार (2009)
- नारायणगोपाल संगीत पुरस्कार (2009)
- लूनकरणदास गंगादेवी चौधरी पुरस्कार (2005)
- इंद्र राज्यलक्ष्मी पुरस्कार (2005)
- नूरगंगा पुरस्कार (2004)
- झपट पुरस्कार (2003)
- राष्ट्रीय प्रतिभा पुरस्कार (1996)
सम्मान
तारीख़ | सम्मान | कारण | प्रस्तुतकर्ता |
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4 अक्टूबर 2010 | सम्मान पत्र | नेपाली संगीत के विलक्षण प्रतिभा | श्री लूनकरणदास गंगादेवी साहित्य कला मंदिर, काठमांडू |
17 अगस्त 2010 | प्रथम साधारण सभा एवं प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन | नेपाली कला, संस्कृति, परंपरा और रीति-रिवाज के संरक्षण में संघर्षरत | नेपाल बैंड बाजा व्यवसायी संघ |
7 अगस्त 2010 | सार्वजानिक अभिनंदन | संगीत विधा पर लेखन, अन्वेषण और खोज | परियार सेवा समिति |
18 जुलाई 2010 | सम्मान पत्र | लोक संगीत, भाषा और वादन के अनुसंधान और संरक्षण में योगदान | नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी, 17 टोला समुदाय |
21 मार्च 2010 | सम्मान पत्र | महाकवि देवकोटा सदी महोत्सव | अंतर्राष्ट्रीय नेपाली भाषा साहित्य सम्मलेन |
11 दिसंबर 2009 | महाकवि लक्ष्मी प्रसाद देवकोटा शतवार्षिकी | नेपाली वाङ्मय की श्रीवृद्धि | त्रिमूर्ति निकेतन |
7 नवंबर 2009 | सम्मान पत्र | लोकतांत्रिक समाज के निर्माण में योगदान | नेपाल सांस्कृतिक संघ |
10 अगस्त 2008 | शोध सम्मान | नेपाली संगीत कला और संस्कृति के क्षेत्र में शोधकार्य एवं विशिष्ट योगदान | ज्ञानगुन साहित्य प्रतिष्ठान |
14 जुलाई 2008 | सम्मान पत्र | नेपाली संगीत के अनुसंधान में लिप्त | डांस कल्चर सेंटर ऑफ़ नेपाल |
13 जुलाई 2008 | सम्मान पत्र | नेपाली लोक संगीत और वाद्य-यंत्रों के अनुसंधान और संकलन से उनके उत्थान में योगदान | भानु प्रतिष्ठान |
18 अक्टूबर 2007 | सम्मान पत्र | सामजिक और राष्ट्रीय विकास के लिए विधागत योगदान | |
22 जून 2007 | आवाज़ सांस्कृतिक संध्या, 2067 | नेपाली सांगीतिक क्षेत्र के वरिष्ठ बाजा विशेषज्ञ और अनुसंधानात्मक कृति के रचयिता | आवाज़ कलाकार, नेपाल |
4 अप्रैल 2006 | सम्मान पत्र | स्रष्टा सम्मान के गौरवमय 10 वर्ष | श्री लूनकरणदास गंगादेवी साहित्य कला मंदिर, काठमांडू |
17 अप्रैल 2005 | 43वाँ राष्ट्रीय मुक्ति दिवस समारोह | राष्ट्रीय समृद्धि एवं आधुनिक विकास में कार्यरत | उपेक्षित, उत्पीड़ित दलित वर्ग उत्थान विकास समिति |
14 जुलाई 2005 | रजत जयंती वर्ष एवं 192वीं भानु जयंती | लोक बाजा के अनुसंधान में विशेष योगदान | लिटिल ऐंजल्ज़ स्कूल |
9 अप्रैल 2005 | शक्ति और सृजना हेतु शिक्षा | नेपाली आधुनिक वाद्यवादन क्षेत्र के जाज्वल्य नक्षत्र | ओम एजुकेशन अकादमी |
4 मार्च 2005 | संपूर्ण दलित समुदाय की प्रतिष्ठा अभिवृद्धि | नेपाली लोक संगीत एवं वाद्यवादन की खोज एवं अनुसंधान में विशिष्ट योगदान | नेपाल राष्ट्रीय दलित समाज कल्याण संघ |
26 अगस्त 2004 | सम्मान पत्र | दलित समाज की मदद | टी॰ आर॰ विश्वकर्मा स्मृति प्रतिष्ठान |
20 जून 2004 | सम्मान पत्र | संस्कृति लेखन के क्षेत्र में योगदान | नूरगंगा प्रतिभा पुरस्कार गोष्ठी |
2004 | प्रेमोपहार | कांतिपुर टेलीविज़न | |
6 जनवरी 2004 | सम्मान पत्र | छठी राष्ट्रीय लोक नृत्य प्रतियोगिता | साधना कला केंद्र |
6 दिसंबर 2003 | 19वाँ दलित साहित्यकार सम्मलेन | सामाजिक सेवा | भारतीय दलित साहित्य अकादमी |
16 नवंबर 2003 | सम्मान पुरस्कार | नेपाली वाङ्मय की श्रीवृद्धि | झपट पुरस्कार व्यवस्था समिति |
22 अगस्त 2003 | सम्मान पत्र | 5वीं राष्ट्रीय स्कूली पियानो वादन प्रतियोगिता में योगदान | शिक्षा मंत्रालय |
17 अगस्त 2003 | सम्मान पत्र | नेपाली संगीत क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान | मधुरिमा |
11 अप्रैल 2003 | 20वीं स्कूली राष्ट्रीय सांस्कृतिक प्रतियोगिता | नेपाली संस्कृति की समृद्धि हेतु पाठ्यक्रम विकास केंद्र द्वारा संचालित "ऐश्वर्य सांस्कृतिक शील्ड" स्कूली राष्ट्रीय सांस्कृतिक कार्यक्रम में योगदान | पाठ्यक्रम विकास केंद्र |
25 अगस्त 2002 | सम्मान कार्यक्रम | कला, संगीत और संस्कृति के अनुसंधान और अन्वीक्षण | दलित सेवा संघ |
7 मई 2002 | कदर पत्र | संगीत क्षेत्र में योगदान | ललित कला कैंपस |
25 अप्रैल 2002 | सम्मान पत्र | लोक संगीत के संरक्षण में योगदान | लालीगुराँस कला मंदिर |
15 अप्रैल 2002 | अभिनंदन | नेपाली सांस्कृतिक क्षेत्र में खोज एवं अनुसंधान | काठमांडू नृत्य एवं सांस्कृतिक केंद्र |
19 अगस्त 2000 | सम्मान पत्र | सदी के व्यक्तित्व | काठमांडू महानगरपालिका |
1999 | धर्मो रक्षति रक्षित समारोह | धर्म, नेपाली भाषा, साहित्य, संस्कृति, कला और संगीत में योगदान | ॐ पशुपति सेना, नेपाल |
11 मार्च 1999 | 35वाँ वार्षिक कार्यक्रम | नेपाली परंपरागत संगीत क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान | कलानिधि इंदिरा संगीत महाविद्यालय |
1998 | नेपाल भ्रमण वर्ष | विलुप्तप्राय नेपाली लोक संस्कृति की खोज और विज्ञापन | साधना कला केंद्र |
1998 | कदर पत्र | राष्ट्रीय लोक नृत्य प्रतियोगिता | साधना कला केंद्र |
12 अप्रैल 1997 | 17 टोला विशेष समारोह | बाल लोक नृत्य प्रतियोगिता के निर्णायक | काठमांडू महानगरपालिका |
21 जनवरी 1997 | श्री 5 महाराज के गद्दी आरोहण की रजत जयंती | विलुप्तप्राय नेपाली लोक संस्कृति की खोज और विज्ञापन | साधना कला केंद्र |
सम्मान पत्र | नेपाली संगीत-संस्कृति और कला के विकास हेतु खोज और अनुसंधान में उल्लेखनीय योगदान | बिसे नगर्ची स्मृति प्रतिष्ठान | |
23 जनवरी 1996 | साधना सम्मान | नेपाली संगीत अन्वेषण में अनवरत योगदान | साधना कला केंद्र |
13 फ़रवरी 1995 | अभिनंदन पत्र | उत्पीड़ित लोग के उत्थान में योगदान | नेपाल उत्पीड़ित जातीय मुक्ति समाज, बुटवल |
21 अगस्त 1994 | अभिनंदन पत्र | कला एवं संस्कृति और अनुसंधानात्मक क्षेत्र हेतु | किरातेश्वर संगीत आश्रम, गौरीघाट |
29 दिसंबर 1992 | गोरखा दक्षिण बाहु | प्रशंसनीय कार्य हेतु | नारायणहिटी दरबार संग्रहालय |
14 दिसंबर 1988 | प्रशस्ति पत्र | दलित समुदाय की उन्नति | भारतीय दलित साहित्य अकादमी |
10/11 अप्रैल 1988 | लेखन सम्मान | दलित समुदाय की उन्नति | पूर्वांचल क्षेत्रीय दलित सम्मलेन तैयारी समिति, धरान |
मृत्यु
नेपाली संगीत साधक रामशरण दर्नाल कई सालों से पार्किंसन से जूझ रहे थे। आख़िरकार 18 सितंबर 2011 को 74 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।[४][६][२५]
संदर्भ
- ↑ अ आ इ साँचा:citation
- ↑ अ आ इ ई साँचा:citation
- ↑ अ आ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ अ आ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ साँचा:citation
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