राधेश्याम खेमका

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राधेश्याम खेमका (1935 - 3 अप्रैल, 2021) एक पत्रकार थे जिन्होने गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित कल्याण का ३८ वर्षों तक सम्पादन किया। वे गीता प्रेस ट्रस्ट बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे। उन्होने अपने कार्यकाल के दौरान अन्यान्य महापुराणों तथा कर्मकाण्ड के दुर्लभ ग्रन्थों के प्रामाणिक संस्करणों का सम्पादन कर उन्हें प्रकाशित कराया।

भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरान्त जनवरी २०२२ में पद्मविभूषण से सम्मानित किया।[१]

जीवन परिचय

श्री राधेश्यामजी खेमका का जन्म 1935 में बिहार के मुंगेर जिले में एक सम्भ्रान्त मारवाड़ी परिवार में हुआ था। आपके पिता श्री सीतारामजी खेमका सनातन धर्म के कट्टर अनुयायी तथा गोरक्षा आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर थे और माताजी एक धर्मपरायण गृहस्थ सती महिला थीं।[२]

1956 से आपका परिवार स्थायी रूप से काशी में निवास करने लगा। काशी आने के बाद आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. (संस्कृत) किया और साहित्यरत्न की उपाधि भी प्राप्त की। कुछ समय आपने कानून की पढ़ाई भी की और कागज का व्यापार भी किया। आपके पिताजी की धार्मिक प्रवृत्ति और सक्रियता के कारण संतों का सत्संग और सानिध्य आपको सदैव मिलता ही था, परन्तु काशी आने पर यह और सुगम हो गया। व्यवसाय के साथ-साथ आपका स्वाध्याय, सत्संग और संत समागम का व्यसन भी चलता रहा। आपका संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं पर पूर्ण अधिकार था। बाद में व्यवसाय को पुत्र-पौत्रादि को सौंप कर अपने जीवन के अन्तिम 38 वर्षों तक खेमकाजी गीता प्रेस और कल्याण की अवैतनिक सेवा करते रहे। आप उस संस्था से कोई आर्थिक लाभ नहीं लेते थे।

खेमकाजी ने काशी में 2002 में एक वेद विद्यालय की स्थापना की। इसमें आठ से बारह वर्ष आयु के बच्चों को छह वर्षीय पाठ्यक्रम में प्रवेश दिया जाता है। श्री जयदयाल गोयन्दका (1885-1965) और श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ने 1923 में गीता प्रेस की स्थापना की थी। यह संस्था अब वटवृक्ष का रूप ले चुकी है और अपने विशिष्ट सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए आज भी उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होती जा रही है।

उनकी जीवात्मा 3 अप्रैल, 2021 को काशी के केदार घाट पर परमात्मा में विलीन हो गई। उन्हें लगभग पंद्रह दिन पहले हृदयाघात हुआ था।[३]

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें