रसायन विज्ञान विभाग, रुड़की

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रसायन विज्ञान विभाग 1960 में 10 एम.एस.सी. के छात्रों तथा 7 संकाय सदस्यों को लेकर प्रारंभ हुआ। इस समय एम.एस.सी की सीट 36 व स्वीकृत स्टॉफ संख्या 23 हो गई है। प्रवेश केवल अखिल भारतीय स्तर की प्रवेश परीक्षा में योग्यता सूची के अनुसार ही दिया जाता है। राज्य सरकार की नीति के अनुरूप अनुसूचित जाति/जनजाति हेतु आरक्षण उपलब्ध है। विगत वर्ष सात विभिन्न केन्द्रों पर प्रवेश परीक्षा आयोजित की गई थी इस वर्ष संपूर्ण देश से अधिक छात्रों को आकर्षित करने के लिए केन्द्रों की संख्या में वृध्दि संभावित है।

विभाग ऐनेलेटिकल, इन आर्गेनिक, आर्गेनिक व फिजीकल कैमिस्ट्री में विशेषज्ञता प्रदान करता रहा है। रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर शिक्षा की एक खास बात यह है कि यहाँ मॉडलिंग, सिम्युलेशन व कम्प्यूटर एप्लीकेशन, रेडियो कैमिस्ट्री तथा टेक्नीकल कम्यूनिकेशन के अनिवार्य विषय हैं जो अन्य कहीं उपलब्ध नहीं हैं। इसके अतिरिक्त छात्र को मोलिक्यूलर सीमेट्री व क्रिस्टल स्ट्रक्चर, मोलिक्यूलर स्पेक्ट्रोस्कोपी, कोऑर्डिनेशन कैमिस्ट्री एडवांस्ड आर्गेनिक कैमिस्ट्री, इलैक्ट्रो एनेलेटिकल कैमिस्ट्री, प्रोटीन्स एण्ड पोलीपेप्टाइड्स, काइनेटिक एण्ड फोटो कैमिस्ट्री, पोलीमर कैमिस्ट्री जैसे अनेक विषयों मे से तीन विभागीय विषयों को चुनना होता है। छात्रो को अपने विभाग के बाहर के दो, विज्ञान, इंजीनियरींग, मांविकी या प्रबंध विभाग में उपलब्ध विषयों को भी चुनना होता है।

प्रत्येक एम.एस.सी.(अंतिम वर्ष) के छात्र को एक प्रयोगशाला स्तर का परियोजना कार्य भी करना पड़ता है। इससे छात्रों के रोजगार की संभावनाएँ बेहतर होती हैं।

सातवीं योजना (जुलाई 1988) की अवधि के दौरान इंडस्ट्रियल मैथड ऑफ कैमीकल एनेलेसिस पर एक एकवर्षीय एम.फिल. पाठ्यक्रम प्रारंभ किया गया था। हॉल ही में इसकी पीठ्यसामग्री को विस्तृत रूप से पुनः आकार दिया गया है तथा इंस्ट्रयूमेंट एनेलेसिस तथा एनेलेसिस ऑफ इण्डस्ट्रियल प्रोडक्ट्स को उचित महत्व दिया गया है। एम.फिल. पाठ्यक्रम में भी यकनीकी संचार के एक बिना अंकके विषय के साथ औद्योगिक भ्रमण तथा शोध निबंध /संगोष्ठी सम्मिलित है।

नौवीं योजना अवधि में रासायनिक विज्ञान की उद्योगों, ग्राम्य व कृषि विकास से संबंधित समकालीन समस्याओं पर अंतरवर्षिय शोध कार्य किया जाना प्रस्तावित करता है। पर्यावरण के क्षरण को रोकने के लिये औद्योगिक कचरे का ऊर्जा, रसायन तथा बायोपॉलिमर्स के उत्पादन के रूप में उपयोग करने का भी प्रयास किया जायेगा। विभाग के 250 से अधिक छत्रों को पी.एच.डी. उपाधि प्रदान की जा चुकी है तथा 1000 से भी अधिक शोध पत्र प्रकाशित किये जा चुके हैं।