रघुनाथ महतो

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रघुनाथ महतो एक क्रांतिकारी थे जिन्होने 1769 ई में अंग्रेजों के विरुद्ध चुआड़ विद्रोह का नेतृत्व किया था। चुआड़ विद्रोह का सही इतिहास अंग्रेजों के खिलाफ पहला विद्रोह था।

रघुनाथ महतो का जन्म 21 मार्च 1738 ई को तत्कालीन बंगाल के छोटानागपुर के जंगलमहल (मानभूम) जिला अंतर्गत नीमडीह प्रखंड के एक छोटे से गांव घुंटियाडीह में हुआ था। वर्तमान समय में झारखण्ड के जिला सरायकेला खरसांवां में है।1769 ई में रघुनाथ महतो के नेतृत्व में आदिवासियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जंगल, जमीन के बचाव एवं नाना प्रकार के शोषण से मुक्ति के लिए विद्रोह किया, जिसे चुआड विद्रोह कहा गया।चुआड विद्रोह के महानायक ने अन्तिम सांस 5 अप्रैल 1778 ई को लिया।

अहम भूमिका

जब 1765 ई. में जब ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा तत्कालीनबंगाल के छोटानागपुर के जंगलमहल जिला में सर्वप्रथम मालगुजारी वसूलना शुरू किया, तब अंग्रेजों के इस शोषण का विरोध शुरू हुआ। क्योंकि लोगों को लगा कि अंग्रेजों द्वारा यह उनकी स्वतंत्रता और उनके जल, जंगल, जमीन को हड़पने तैयारी है। अत: 1769 ई. में कुड़मी समाज के लोगों द्वारा रघुनाथ महतो के नेतृत्व में सबसे पहला विरोध किया गया और ब्रिटिश शासकों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका गया। अंग्रेजों को इसकी कतई आशा नहीं थी। उन्होंने अपने करिंदों (उनके पिट्ठू जमींदारों) से पूछा ये लोग कौन हैं तो पिट्ठू जमींदारों ने इन विद्रोहियों को नीचा दिखाने के लिए उन्हें ‘चुहाड़’ (लुटेरा, नीच व उत्पाती) कहकर संबोधित किया। ऐसे में यह विद्रोह ‘चुहाड़ विद्रोह’ हो गया। यह विद्रोह कोई जाति विशेष पर केंद्रित नहीं था। इसमें मांझी, कुड़मी, संथाल, भूमिज, मुंडा, भुंईया आदि सभी समुदाय के लोग शामिल थे।

बता दें कि 1764 ई में बक्सर युद्ध की जीत के बाद अंग्रेजों का मनोबल बढ़ गया। अंग्रेज कारीगरों के साथ किसानों को भी लूटने लगे। 12 अगस्त 1765 ई को शाह आलम द्वितीय से अंगरेजों को बंगाल, बिहार, उड़ीसाछोटानागपुर की दीवानी मिल गयी। उसके बाद अंगरेजों ने किसानों से लगान वसूलना शुरू कर दिया।

1766 ई में अंग्रेजों ने राजस्व के लिए जमींदारों पर दबाव बनाया, लेकिन कुछ जमींदारों ने उनकी अधीनता स्वीकार नहीं की, तो कुछ अपनी शर्तों पर उनसे जा मिले। नतीजा यह हुआ कि किसान अंग्रेजी जुल्म के शिकार होने लगे। स्थिति अनियंत्रित होने लगी, तब चुहाड़ आंदोलन की स्थिति बनी। बचपन से ही देशभक्त व क्रांतिकारी स्वभाव के थे रघुनाथ महतो उन्होंने 1769 ई में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन उन्होंने नीमडीह गांव के एक मैदान में सभा की। यही स्थान रघुनाथपुर के नाम से जाना गया। रघुनाथ महतो के समर्थक 1773ई तक सभी इलाके में फैल चुके थे। चुहाड़ आंदोलन का फैलाव नीमडीह, पातकुम, बड़ाभूम, धालभूम , मेदनीपुर, किंचुग परगना वर्तमान सरायकेला खरसांवां, राजनगर, गम्हरिया आदि तक हो गया। उन्होंने अंगरेजों के नाक में दम कर रखा था। चुहाड़ आंदोलन की आक्रामकता को देखते हुए अंग्रेजों ने छोटा नागपुर को पटना से हटा कर बंगाल प्रेसीडेंसी के अधीन कर दिया। 1774 ई में विद्रोहियों ने किंचुग परगना के मुख्यालय में पुलिस फोर्स को घेर कर मार डाला। इस घटना के बाद अंगरेजों ने किंचुग परगनापर अधिकार करने का विचार छोड़ दिया। 10 अप्रैल 1774 ई को सिडनी स्मिथ ने बंगाल के रेजीमेंट को विद्रोहियों के खिलाफ फौजी कार्रवाई करने का आदेश दे दिया। सन 1776 ई में आंदोलन का केंद्र रांची जिले का सिल्ली बना। 5 अप्रैल 1778 ई को जब रघुनाथ महतो जंगलों में अपने साथियों के साथ सभा कर रहे थे। सिल्ली प्रखंड के लोटा पहाड़ किनारे अंग्रेजों की रामगढ़ छावनी से हथियार लूटने की योजना को लेकर बैठक चल रही थी। इसी बीच गुप्त सूचना पर अंग्रेजी सेना ने रघुनाथ महतो एवं उनके सहयोगियों को चारों ओर से घेर लिया। दोनों ओर से काफी देर तक घमासान युद्ध हुआ। रघुनाथ महतो को भी गोली लगी। यहां सैकड़ों विद्रोहियों को गिरफ्तार कर लिया गया, रघुनाथ महतो और उनके कई साथी मारे गये।

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