योगेश चन्द्र चटर्जी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

योगेश चन्द्र चटर्जी (1895 - 2 अप्रैल 1960) मूलत: बंगाल के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। वे बंगाल की अनुशीलन समिति व संयुक्त प्रान्त (अब उत्तर प्रदेश) की हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे। कुल मिलाकर वे एक सच्चे स्वतन्त्रता सेनानी थे। बंगाल की अनुशीलन समिति में काम करते हुए उन्हें पुलिस द्वारा अनेक प्रकार की अमानुषिक यातनायें दी गयीं किन्तु वे टस से मस न हुए। उन्हें काकोरी काण्ड में आजीवन कारावास का दण्ड मिला था। स्वतन्त्र भारत में वे राज्य सभा के सांसद भी रहे। चिरकुँवारे योगेश दा ने कुछ पुस्तकें भी लिखी थीं जिनमें अंग्रेजी पुस्तक इन सर्च ऑफ फ्रीडम उल्लेखनीय है।[१]

संक्षिप्त जीवनी

योगेश चन्द्र चटर्जी का जन्म ढाका जिले के गावदिया गाँव में 1895 में हुआ था। 1916 में वे पहली बार गिरफ्तार हुए थे। उस समय वे अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य थे। पुलिस द्वारा भयंकर यातनायें दी गयीं किन्तु वे एक ही उत्तर देते रहे - "मुझे कुछ नहीं मालूम।" मारपीट का कोई असर नही हुआ। अन्त में उनके हाथ पैर कसकर बाँध दिये और दो सिपाहियों ने उनका गुप्तांग पकडकर हस्तमैथुन द्वारा अप्राकृतिक ढँग से इतनी वार वीर्य निकाला कि खून आने लगा। उसके बाद टट्टी पेशाब से भरी बाल्टी उनके ऊपर उँडेल दी। शरीर धोने को पानी तक न दिया। मुँह में टट्टी चली गयी पर योगेश सचमुच "योगेश" हो गये। इस निमुछिये नौजवान ने मूछ वालों तक को पस्त कर दिया।[१]

1924 में स्थापित हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में योगेश दा का प्रमुख योगदान था। यही संस्था बाद में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में तब्दील हो गयी।[२] उन्हें क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण कई बार गिरफ्तार किया गया। काकोरी काण्ड के मुकदमे के फैसले में उन्हें 1926 में पहले 10 वर्ष की सजा सुनायी गयी थी जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया।

1937 में जेल से छूटकर आने के बाद उन्होंने पहले कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनायी। कुछ ही वर्षों बाद उनका उस पार्टी से मोहभंग हो गया और उन्होंने 1940 में रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। 1940 से लेकर 1953 तक लगातार वे इसके जनरल सेक्रेटरी रहे। 1949 में केवल एक वर्ष के लिये यूनाइटेड सोशलिस्ट ऑर्गनाइजेशन के वाइस प्रेसीडेण्ट[३] रहने के पश्चात् वे आल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के, जो रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी का ही एक आनुषंगिक संगठन था, 1949 से लेकर 1953 तक लगातार वाइस प्रेसीडेण्ट रहे।[४]

स्वतन्त्र भारत में उनका झुकाव कांग्रेस की ओर हो गया और वे उत्तर प्रदेश से राज्य सभा के सांसद निर्वाचित हुए। 1956 से 1960 तक अपनी मृत्यु पर्यन्त वे लगातार 4 वर्ष राज्य सभा के सदस्य रहे।[५]

लेखन कार्य

योगेश दा काकोरी काण्ड से पूर्व ही हावड़ा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिये गये थे। नजरबन्दी की हालत में ही इन्हें काकोरी काण्ड के मुकदमे में घसीट कर लाया गया था। उन्होंने जेल से छूटकर आने के बाद विवाह नहीं किया, आजीवन अविवाहित ही रहे। उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखी थीं जिनमें उनकी अंग्रेजी में लिखी पुस्तक इन सर्च ऑफ फ्रीडम काफी चर्चित हुई।[१] योगेश दा की एक अन्य पुस्तक इण्डियन रिव्यूलूशनरीज़ इन कॉन्फ्रेंस भी अंग्रेजी में ही प्रकाशित हुई। उनकी लिखी हुई दोनों पुस्तकों का विवरण इस प्रकार है:

  • इन सर्च ऑफ फ्रीडम: 1957, प्रकाशक परेश चन्द्र चटर्जी, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी अमरीका 598 पृष्ठ[६]
  • इण्डियन रिव्यूलूशनरीज़ इन कॉन्फ्रेंस: 1959, प्रकाशक के एल मुखोपाध्याय, मिशीगन यूनीवर्सिटी, 77 पृष्ठ[७]

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite book
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  4. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  5. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  6. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  7. Indian revolutionaries in conference - Bibliographic information

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:navbox