युद्ध और शान्ति

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युद्ध और शान्ति (वार एण्ड पीस ; सुधार-पूर्व रूसी में : Война и миръ / Voyna i mir) रूस के प्रसिद्ध लेखक लेव तोलस्तोय द्वारा रचित उपन्यास है। यह पहली बार १८६९ में प्रकाशित हुआ था। यह एक विशाल रचना है और विश्व साहित्य की महानतम रचनाओं में इसकी गणना होती है।

रचनात्मक वैशिष्ट्य

'युद्ध और शान्ति' का लेखन तोलस्तोय ने 1863 ई॰ से 1869 ई॰ के बीच किया। 1865 में इसके प्रकाशन की शुरुआत हुई। चार खण्डों में प्रकाशित इस उपन्यास की पृष्ठ संख्या लगभग डेढ़ हजार थी। इस बृहदाकार उपन्यास की कल्पना लगभग 15 भिन्न-भिन्न रूपों में की गयी। अनेक अध्याय कई-कई बार बदले गये और नये सिरे से लिखे गये।[१] इस उपन्यास में सैकड़ों पात्र हैं और इसमें इतनी घटनाएँ तथा मुख्य कथानक के साथ अच्छी तरह से जुड़े हुए इतने गौण कथानक हैं कि पाठक यह सोच कर ही हैरान रह जाता है कि लेखक ने इन सबको इतनी कलात्मक कुशलता से कैसे समेट लिया है। यद्यपि इस विराट उपन्यास का ताना-बाना बोल्कोन्स्की, रोस्तोव और बेज़ूख़ोव कुलनामों वाले कुलीन परिवारों तथा नेपोलियन बोनापार्ट और सम्राट अलेक्सान्द्र प्रथम के समय की घटनाओं के इर्द-गिर्द बुना गया है, तथापि यह 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध, भूदासों की मुक्ति के पहले के रूस का एक जीता जागता चित्र प्रस्तुत करता है।[१] इस महाकाय उपन्यास में राजनीतिक, कूटनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक, मानसिक-भावनात्मक तथा मनोवैज्ञानिक आदि जीवन का कोई पक्ष या अंग अछूता नहीं रहा है। इस उपन्यास में तोलस्तोय ने रूसी इतिहास के उस काल को केन्द्र-बिन्दु बनाते हुए यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि साधारण रूसी लोगों की देशभक्ति, साहस, वीरता और दृढ़ता ने कैसे नेपोलियन और उसकी सर्वत्र जीत का डंका बजाने वाली सेना के छक्के छुड़ा दिये। यह इतिहास के प्रति तोलस्तोय का कहीं अधिक व्यापक दृष्टिकोण था। उन्होंने यह स्पष्ट करना चाहा है कि युद्ध का सारे समाज, जीवन के सभी पक्षों, सभी वर्गों और श्रेणियों के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसी कारण से तोलस्तोय के कुछ अध्येताओं का यह मानना है कि मूल रूसी में 'शान्ति' के पर्यायवाची शब्द 'मीर' से तोलस्तोय का अभिप्राय 'शान्ति' नहीं बल्कि लोग जनता या पूरा 'समाज' है। इस मत को ध्यान में रखते हुए इस उपन्यास का नाम वस्तुतः 'युद्ध और शान्ति' नहीं बल्कि 'युद्ध और समाज' होना चाहिए।[२]

'युद्ध और शान्ति' को विश्व का महानतम उपन्यास ही नहीं बल्कि साहित्यिक इतिहास की एक परिघटना माना गया है। यह एक संजटिल, ऐतिहासिक-मनोवैज्ञानिक, बहुसंस्तरीय महाकाव्यात्मक कलात्मक संरचना है।[३]

सामान्य रूप से इसमें तीन प्रकार की सामग्री का दक्ष संश्लेषण किया गया है :-

  1. नेपोलियन से सम्बद्ध युद्ध और रूसी जनता के एकजुट दुर्धर्ष प्रतिरोध का विवरण।
  2. औपन्यासिक चरित्रों का अन्तरंग एवं बहिरंग जीवन, परिवेश और जीवन-दर्शन।
  3. इतिहास-दर्शन विषयक तोलस्तोय के विचारों को निरूपित करने वाले निबन्धों की एक शृंखला।

इनके सहायक पहलुओं के रूप में परिवार, विवाह, स्त्रियों की स्थिति, कुलीनों के निस्सार, जनविमुख, पाखण्डपूर्ण जीवन आदि पर तोलस्तोय के विचार और मौजूद स्थिति की प्रखर आलोचना भी कहानी के साथ ही गुँथी-बुनी प्रस्तुत होती चलती है। विस्तृत ऐतिहासिक विवरण और मनोवैज्ञानिक गहराइयों के साथ ही इतिहास-दर्शन विषयक अपने विचारों की निबन्धात्मक प्रस्तुति को जिस दक्षता के साथ उपन्यास में पिरोया गया है, वह अद्वितीय और विस्मित कर देने वाला है।[३]

प्रख्यात विद्वानों की सम्मति

रूसी लेखक इवान तुर्गनेव ने 1880 में लिखा था :- "यह विराट उपन्यास वीर-महाकाव्य के समान है। इसमें हमारी शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन का बड़ी दक्षता से चित्रण हुआ है। पाठकों के सम्मुख महान घटनाओं और महान लोगों से समृद्ध एक पूरे युग की तस्वीर खिंच जाती है... सभी सामाजिक श्रेणियों के वास्तविक जीवन से लिये गये अनेकानेक लाक्षणिक पात्रों का एक पूरा संसार सामने आ जाता है... यह महान लेखक की महान रचना है -- यह असली रूस है।"[४]

चार्ल्स पेर्सी स्नो का मानना है : साँचा:quote

अंग्रेज लेखक जॉन गाल्सवर्दी ने 'युद्ध और शान्ति' को अब तक रचा गया श्रेष्ठतम उपन्यास कहा है।

प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक रोमां रोलां ने लिखा है कि इस रचना का "जीवन की भांति न तो आरंभ है और न अंत। यह तो शाश्वत गतिशीलता में स्वयं जीवन है।" उन्होंने इस पुस्तक को "19वीं शताब्दी का भव्य स्मारक, उसका मुकुट" माना है।[४]

रूसी लेखक इवान गोंचारोव की मान्यता है : " 'युद्ध और शान्ति' विषय वस्तु और रचना शिल्प दोनों ही दृष्टियों से एक अद्भुत महाकाव्यात्मक उपन्यास है। साथ ही यह एक स्तुत्य रूसी युग का स्मारकीय इतिहास भी है जिसमें हर पात्र या तो कोई ऐतिहासिक हस्ती है या कांसे से गढ़ी हुई मूर्ति के समान है। गौण पात्रों तक में रूसी लोक-जीवन के विशिष्ट लक्षण साकार हुए हैं।"[५]

फ्रांसीसी लेखक फ्रांस्वा मोरिआक (1885-1970) इस उपन्यास से इस हद तक प्रभावित थे कि उन्होंने लिखा है :- "मैं यह नहीं कह सकता कि मैंने 'युद्ध और शान्ति' को पढ़ा है। वास्तव में तो मैं मानो अपनी जवानी के अधिकतर भाग में इस उपन्यास के पात्रों के बीच साँस लेता रहा हूं। मेरे अधिकांश जीवित मित्रों की तुलना में रोस्तोव परिवार मेरे हृदय के अधिक निकट था और उन वर्षों के दौरान जिन भी लड़कियों को मैंने प्यार किया उन सभी में मैं नताशा रोस्तोवा को ढूँढ़ा करता था।

तोलस्तोय की प्रतिभा विशेष रुप से मेरी कल्पना को इसलिए चकित करती है कि 'युद्ध और शान्ति' में एक पूरे ऐतिहासिक युग को सजीव बनाने के साथ-साथ इस उपन्यास में अपने पात्रों के बिंबों द्वारा उस युग की सीमाओं से बहुत दूर तक रूस के भाग्य को भी प्रतिबिम्बित किया गया है।"[६]

एर्नेस्ट हेमेनगुए का कहना है -- "मेरी नजर में तो कोई भी ऐसा लेखक नहीं है जिसने युद्ध के बारे में तोल्सतोय से बेहतर लिखा हो।"[७]

थामस मान का कहना है कि " 'युद्ध और शान्ति' युद्ध के सम्बन्ध में विश्व साहित्य की सबसे सशक्त रचना है।"[७]

लेनिन के हवाले से मैक्सिम गोर्की ने लिखा है : साँचा:quote

वैचारिक निष्पत्ति

मनुष्य के द्वारा स्वयं को सर्वतंत्र-स्वतंत्र मानकर अनर्गलता की ओर बढ़ने और उससे उत्पन्न विभिन्न विसंगतियों-विडंबनाओं की स्थिति को कथात्मक संस्पर्श देते हुए तोलस्तोय ने यह निष्कर्षात्मक विचार व्यक्त किया है कि जिस प्रकार खगोलशास्त्र के लिए पृथ्वी की गति को मानने की कठिनाई पृथ्वी की स्थिरता की प्रत्यक्ष अनुभूति और ग्रहों की गति की ऐसी ही अनुभूति से इन्कार करने में निहित थी, उसी प्रकार इतिहास के लिए यह मानना कठिन है कि हर व्यक्ति दिक्, काल और कारणों के अधीन है, क्योंकि ऐसा करने के लिए उसे अपने व्यक्तित्व की स्वाधीनता की प्रत्यक्ष अनुभूति को नकारना होगा। परन्तु, जैसा कि खगोलशास्त्र में नया दृष्टिकोण कहता था : "सच है कि हम पृथ्वी की गति को महसूस नहीं करते, पर उसकी स्थिरता को मानकर हम अनर्गलता पर पहुंचते हैं, जबकि गति को मानकर, जिसे हम महसूस नहीं करते, नियम पाते हैं", -- इसी प्रकार इतिहास में भी नया दृष्टिकोण कहता है : " यह सच है कि हम अपनी अधीनता को महसूस नहीं करते, पर अपनी स्वतंत्रता को मानकर हम अनर्गलता पर पहुंचते हैं, जबकि बाह्य जगत, काल और कारणों पर अपनी निर्भरता को मानकर हम नियम पाते हैं।"

पहले मामले में दिक् में अस्तित्वहीन स्थिरता के बोध से इन्कार करके उस गति को मानना था जिसका हम बोध नहीं करते; और इस मामले में -- ठीक इसी तरह अस्तित्वहीन स्वतंत्रता से इन्कार कर के उस अधीनता को स्वीकार करने की आवश्यकता है जिसे हम महसूस नहीं करते।[८]

हिन्दी अनुवाद

'युद्ध और शान्ति' का विश्व की अनेक प्रमुख भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हो चुका है। हिन्दी में भी इसके अनुवादों का प्रकाशन होते रहा है। इसका रूद्र नारायण अग्रवाल द्वारा किया गया एक संक्षिप्त अनुवाद इंडियन प्रेस, इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ था।

युद्ध और शान्ति सम्पूर्ण हिन्दी अनुवाद के रूप में पहली बार 1987ई॰ से 1989 ई॰ तक में 'रादुगा प्रकाशन, मॉस्को' से चार खण्डों में प्रकाशित हुआ। भारत में इसके वितरक हैं - 'पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, प्राइवेट लिमिटेड, 5 ई, रानी झाँसी रोड, नयी दिल्ली- 55' तथा 'राजस्थान पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, प्राइवेट लिमिटेड, चमेली वाला मार्केट, एम आई रोड, जयपुर -1'।

मूल रूसी पाठ से हिन्दी में तोलस्तोय के इस विराट उपन्यास का यह पूर्ण तथा प्रामाणिक अनुवाद है, जिसे सम्पन्न करने में इसके अनुवादक डॉ॰ मदनलाल ‘मधु’ को हर दिन 6 से 8 घंटों का कड़ा श्रम करते हुए लगभग 3 वर्ष लगे। इसमें यथासंभव तोलस्तोय की शैली को भी अक्षुण्ण बनाये रखने का प्रयास किया गया है।[९]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. युद्ध और शान्ति, खण्ड-1, लेव तोलस्तोय, अनुवादक- डॉ॰ मदनलाल 'मधु', रादुगा प्रकाशन, मॉस्को एवं पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली, संस्करण-1987, पृष्ठ-10.
  2. युद्ध और शान्ति, खण्ड-1, पूर्ववत्, पृष्ठ-11.
  3. कात्यायनी एवं सत्यम, आन्ना कारेनिना, लेव तोलस्तोय, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2004, पृष्ठ-13 (भूमिका)।
  4. युद्ध और शान्ति, खण्ड-1, पूर्ववत्, अंतिम आवरण-फ्लैप पर उद्धृत।
  5. युद्ध और शान्ति, खण्ड-2, लेव तोलस्तोय, अनुवादक- डॉ॰ मदनलाल 'मधु', रादुगा प्रकाशन, मॉस्को एवं पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली, संस्करण-1988, प्रथम आवरण-फ्लैप पर उद्धृत।
  6. युद्ध और शान्ति, खण्ड-2, पूर्ववत्, अंतिम आवरण-फ्लैप पर उद्धृत।
  7. युद्ध और शान्ति, खण्ड-3, लेव तोलस्तोय, अनुवादक- डॉ॰ मदनलाल 'मधु', रादुगा प्रकाशन, मॉस्को एवं पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली, संस्करण-1988, प्रथम आवरण-फ्लैप पर उद्धृत।
  8. युद्ध और शान्ति, खण्ड-4, पूर्ववत्, पृ०-485.
  9. युद्ध और शान्ति, खण्ड-1, पूर्ववत्, पृष्ठ-14-15.

बाहरी कड़ियाँ