याला राष्ट्रीय उद्यान

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साँचा:infobox याला (යාල) राष्ट्रीय उद्यान श्रीलंका में हिंद महासागर के किनारे सबसे अधिक दौरा किया गया और दूसरा सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है। उद्यान में पांच ब्लॉक हैं, जिनमें से दो अब जनता के लिए खुले हैं। ब्लॉक को अलग-अलग नाम हैं जैसे कि, रुहुना राष्ट्रीय उद्यान (ब्लॉक 1), और कुमाना राष्ट्रीय उद्यान या आसपास के क्षेत्र के लिए 'याला ईस्ट'। यह देश के दक्षिणपूर्व क्षेत्र में स्थित है।[१] उद्यान 979 वर्ग किलोमीटर (378 वर्ग मील) को कवर करता है और कोलंबो से लगभग 300 किलोमीटर स्थित है। याला को 1900 में वन्यजीव अभयारण्य के रूप में नामित किया गया था और विल्पाट्टू श्रीलंका के पहले दो राष्ट्रीय उद्यानों में से एक था, जिसे 1938 में नामित किया गया था। उद्यान अपने जंगली जानवरों की विविधता के लिए सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है। याला श्रीलंका के हाथियों, श्रीलंकाई तेंदुए और जलीय पक्षियों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।

याला के आसपास छह राष्ट्रीय उद्यान और तीन वन्यजीव अभयारण्य हैं। इन्में सबसे बड़ा लुनुगामेहेरा राष्ट्रीय उद्यान है।

वनस्पति और जीव

A water stream and dead trees in a wetland
आर्द्रभूमि याला के निवास प्रकारों में से एक हैं

याला राष्ट्रीय उद्यान में विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र हैं। जैसे कि नम मॉनसून जंगल, शुष्क मॉनसून जंगल, अर्ध पर्णपाती जंगलों, दलदल, घासभूमि और समुद्री आर्द्रभूमि[१] जंगल के नीचे के क्षेत्र में मुख्य रूप से ब्लॉक I और खुली पार्कलैंड के रेंजेलैंड शामिल हैं (पेलेस्स घासभूमि)। जंगल क्षेत्र मेनिक नदी के आसपास तक सीमित है, जबकि समुद्र के किनारे रेंजेलैंड पाए जाते हैं। ब्लॉक I के अन्य आवास प्रकार टैंक और पानी के छेद, लैगून और मैन्ग्रोव हैं। बुतुवा लैगून में मैन्ग्रोव वनस्पति काफी हद तक राइज़ोफोरा म्यूक्रोनटा है। जबकि एविसेनिया जाति और एजिसेरस् जाति कम प्रचुर मात्रा में हैं। ब्लॉक II के मैंग्रोव वनस्पति मेनिक नदी के आस-पास होते हैं, जो कि 100 हेक्टेयर तक है।

याला श्रीलंका के 70 महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्रों (आईबीए) में से एक है।[२][३] श्रीलंका ग्रे हॉर्नबिल[१], ओपनबिल्ड स्टॉर्क, ब्लैक-कैप्ड बुलबुल, भारतीय मोर, कलगीदार सर्प चील, धनेश, दूधराज आदि पक्षियों और श्रीलंका के हाथियों, श्रीलंकाई तेंदुए, जंगली भैंसा आदि जानवरों ने भि यहाँ रहति हैं।

पार्क से दर्ज सरीसृप जीवना 47 है और उनमें से छह स्थानिक हैं। श्रीलंकाई क्रेट, बोलेन्जर की किलबैक, श्रीलंकाई उड़ान सांप, पेंट-होंठ छिपकली, विगमन का आगामा, और बहिर के प्रशंसक-पतले छिपकली स्थानिक प्रजातियां हैं।[३][४] खारे पानी के मगरमच्छ, भारतीय कोबरा और दबौया सांप अन्य सरीसृपों में से हैं।[५]

मैन्ग्रोवसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] की रचना ही कुछ अलग प्रकार की है  उष्णकटिबंधी विस्तारो में 70 % दरियाई धरती पर 110 जात की मैनग्रोव की झाड़ियां मौजूद है। मैन्ग्रोव की झाड़ियों को हम एक ही बार में देखकर पहचान सकते है। मैन्ग्रोव के कांटेदार जड़े पूरी तरह से जमीन में खुपि हुई नहीं होती है। सभी जड़े थोड़ी सी बहार होती है। इस हालत  में वह समुद्र में बाह रहे काँप को रोकती है और जमीं में  होनेवाला कटाव को रोकती है, इतना ही नहीं समुद्रतट पर आनेवाली लहरों को भी रोकती है। समुद्रशृष्टि को बचाये रखने में मैन्ग्रोव का महत्वपूर्ण योगदान है। समुद्रतट पर फैला हुआ मैन्ग्रोव का  जंगल  1 एकड़ में 4000 किलो जितना सेंद्रिय पदार्थ पानी में गिराता है ,जिसमे तक़रीबन फल ,  पत्ते होते है। जिसको अपना आहार बनाकर कई छोटे छोटे जीव अपना पेट भरते है। और यही जिव समुद्री बेक्टेरिया के लिए खोराक है। यहाँ से खोराक की एक छोटी  सी चैन सुरु होती है जो बड़े समुद्री जीवो को भी इस चैन में जोड़ती है। इस तरह क़ुदरतने मैन्ग्रोव को समुद्रतट पर उगाकर उसने समुद्रीजोवो और धरती के बीच मध्यस्थता राखी हुई है। इसलिए पर्यावरण की दृष्टि से मैन्ग्रोव तटीय इलाको के  लिए बहुत ही आवश्यक है।

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

  1. साँचा:cite web
  2. साँचा:cite web
  3. साँचा:cite book
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