मौन

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{{ज्ञानसन्दूक व्यक्ति

फ़िलहाल किसी के पास यह जानकारी मौजूद नही है ,कि मौन धारण की शुरुवात कब और कहाँ से किया गया । | image = Faras Saint Anne (detail).jpg | चित्र = Faras Saint Anne (detail).jpg | caption=कॉप्टिक, 8 वीं शताब्दी, वारसॉ में राष्ट्रीय संग्रहालय }} मौन का अर्थ अन्दर और बाहर से चुप रहना है।

आमतौर पर हम ‘मौन’ का अर्थ होंठों का ना चलना माना जाता है। यह बड़ा सीमित अर्थ है।

कबीर ने कहा है:

कबीरा यह गत अटपटी, चटपट लखि न जाए। जब मन की खटपट मिटे, अधर भया ठहराय।

अधर मतलब होंठ। होंठ वास्तव में तभी ठहरेंगें, तभी शान्त होंगे, जब मन की खटपट मिट जायेगी। हमारे होंठ भी ज्यादा इसीलिए चलते हैं क्योंकि मन अशान्त है, और जब तक मन अशान्त है, तब तक होंठ चलें या न चलें कोई अन्तर नहीं क्योंकि मूल बात तो मन की अशान्ति है। वो बनी हुई हैl

तो किसी को शब्दहीन देखकर ये मत समझ लेना कि वो मौन हो गया है। वो बहुत ज़ोर से चिल्ला रहा है, शब्दहीन होकर चिल्ला रहा है। वो पागल ही है, बस उसके शब्द सुनाई नहीं दे रहे। वो बोल रहा है बस आवाज़ नहीं आ रही। शब्दहीनता को, ध्वनिहीनता को मौन मत समझ लेना।

मौन है- मन का शान्त हो जाना अर्थात कल्पनाओं की व्यर्थ उड़ान न भरे। आन्तरिक मौन में लगातार शब्द मौजूद भी रहें तो भी, मौन बना ही रहता है। उस मौन में तुम कुछ बोलते भी रहो तो उस मौन पर कोई अन्तर नहीं पड़ता।

मौन से संकल्प शक्ति की वृद्धि तथा वाणी के आवेगों पर नियंत्रण होता है। मौन आन्तरिक तप है इसलिए यह आन्तरिक गहराइयों तक ले जाता है। मौन के क्षणों में आन्तरिक जगत के नवीन रहस्य उद्घाटित होते है। वाणी का अपब्यय रोककर मानसिक संकल्प के द्वारा आन्तरिक शक्तियों के क्षय को रोकना परम् मौन को उपलब्ध होना है। मौन से सत्य की सुरक्षा एवं वाणी पर नियंत्रण होता है। मौन के क्षणों में प्रकृति के नवीन रहस्यों के साथ परमात्मा से प्रेरणा मिल सकती है।

उदाहरण

  • मौन वृत
  • मौन विरोध

मूल

अन्य अर्थ

संबंधित शब्द

हिंदी में

  • [[ ]]

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