मोढेरा सूर्य मंदिर

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सूर्य मंदिर, मोढेरा
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धर्म संबंधी जानकारी
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देवतासूर्य देव
अवस्थिति जानकारी
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वास्तु विवरण
शैलीहिन्दू
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स्थापित१०२६ ई०
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मंदिर परिसर की योजना: (ऊपर से नीचे की ओर) गूढ़मण्डप, तीर्थ परिसर; सभामण्डप, सभा परिसर और कुण्ड, जलाशय
धर्म संबंधी जानकारी
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देवतासूर्य
त्यौहारमोढेरा नृत्य समारोह
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वास्तु विवरण
प्रकारहिन्दू मंदिर स्थापत्य (चालुक्य)
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निर्माण पूर्ण1026-27 ई के बाद (तीर्थ के रूप में)
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आयाम विवरण
अभिमुखपूर्वमुखी
स्मारक संख्या3
अभिलेखहाँ
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मोढेरा सूर्य मंदिर गुजरात के मेहसाना जिले के “मोढेरा” नामक गाँव में पुष्पावती नदी के किनारे प्रतीष्ठित है। यह स्थान पाटन से ३० किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यह सूर्य मन्दिर भारतवर्ष में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है। सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम द्वारा सन् १०२६-१०२७ ई॰ में इस मन्दिर का निर्माण किया गया था। वर्तमान समय में यह भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और इस मन्दिर में पूजा करना निषिद्ध है।

इस मन्दिर परिसर के मुख्य तीन भाग हैं- गूढ़मण्डप (मुख्य मन्दिर), सभामण्डप तथा कुण्ड (जलाशय)। इसके मण्डपों के बाहरी भाग तथा स्तम्भों पर अत्यन्त सूक्ष्म नक्काशी की गयी है। कुण्ड में सबसे नीचे तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं तथा कुछ छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं।

इतिहास

इस सूर्य मंदिर परिसर का निर्माण एक ही समय में नहीं हुआ था। मुख्य मन्दिर, चालुक्य वंश के भीमदेव प्रथम के शासनकाल के दौरान बनाया गया था।[१][२][३][४] इससे पहले, 1024-25 के दौरान, गजनी के महमूद ने भीम के राज्य पर आक्रमण किया था, और लगभग 20,000 सैनिकों की एक टुकड़ी ने उसे मोढेरा में रोकेने का असफल प्रयास किया था। इतिहासकार ए.के. मजूमदार के अनुसार इस सूर्य मंदिर का निर्माण इस रक्षा के स्मरण के लिए किया गया हो सकता है।[५] परिसर की पश्चिमी दीवार पर, उल्टा लिखा हुआ देवनागरी लिपि में "विक्रम संवत 1083" का एक शिलालेख है, जो 1026-1027 सीई के अनुरूप है। कोई अन्य तिथि नहीं मिली है। जैसा कि शिलालेख उल्टा है, यह मन्दिर के विनाश और पुनर्निर्माण का सबूत देता है। शिलालेख की स्थिति के कारण, यह दृढ़ता से निर्माण की तारीख के रूप में नहीं माना जाता है। शैलीगत आधार पर, यह ज्ञात है कि इसके कोने के मंदिरों के साथ कुंड 11वीं शताब्दी की शुरुआत में बनाया गया था। शिलालेख को निर्माण के बजाय गजनी द्वारा विनाश की तारीख माना जाता है। इसके तुरंत बाद भीम सत्ता में लौट आए थे। इसलिए मंदिर का मुख्य भाग, लघु और कुंड में मुख्य मंदिर 1026 ई के तुरन्त बाद बनाए गए थे। 12वीं शताब्दी की तीसरी तिमाही में द्वार, मंदिर के बरामदे और मंदिर के द्वार और कर्ण के शासनकाल के दौरान कक्ष के द्वार के साथ नृत्य कक्ष को बहुत बाद में जोड़ा गया था।[६]

इस स्थान को बाद में स्थानीय रूप से सीता नी चौरी और रामकुंड के नाम से जाना जाने लगा।[७] अब यहाँ कोई पूजा नहीं की जाती है। मंदिर राष्ट्रीय महत्व का स्मारक है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के देखरेख में है।

वास्तु-कला

स्थापत्य की दृष्टि से यह मंदिर गुजरात में सोलंकी शैली में बने मंदिरो में सर्वोच्च है। ऊँचे प्लेटफार्म (जगती) पर एक ही अक्ष पर बने इस मंदिर के मुख्यतः तीन भाग है: (1) मंदिर का मुख्य भाग जिसमें प्रदक्षिणा-पथ युक्त गर्भगृह तथा एक मण्डप हैं,(2) एक अलग से बना सभामण्डप जिसके सामने एक अलंकृत तोरण है,तथा (3) पत्थरों से निर्मित एक कुण्ड (जलाशय) जिसमें कई छोटे-बड़े लधु आकार के मंदिर निर्मित हैं। [१][८]

सभामण्डप, गूढमण्डप के साथ जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि एक अलग संरचना के रूप में इसे थोड़ा दूर रखा गया है। दोनों एक पक्के मंच पर बने हैं।[१] इनकी छतें बहुत पहले ढह गई है, अब बस उसके कुछ निचले हिस्से ही बचे हैं। दोनों छतें 15 फुट 9 इंच व्यास की हैं, लेकिन अलग-अलग तरीके से बनाई गई हैं।[९] मंच या प्लिंथ, उल्टे कमल के आकार का है।

मंडप में सुन्दरता से गढ़े पत्थर के स्तम्भ अष्टकोणीय योजना में खड़े किये गये है जो अलंकृत तोरणों को आधार प्रदान करते हैं। मंडप की बाहरी दीवारों पर चारों ओर आले बने हुए हैं जिनमें 12 आदित्यों, दिक्पालों, देवियों तथा अप्सराओं की मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित हैं। सभामण्डप (अथवा, नृत्यमण्डप),जो कि कोणीय योजना में बना है,भी सुन्दर स्तम्भों से युक्त है। सभामण्डप में चारों मुख्य दिशाओं से प्रवेश हेतु अर्धवृतीय अलंकृत तोरण हैं। सभामण्डप के सामने एक बड़ा तोरण द्वार है। इसके ठीक सामने एक आयताकार कुंड है, जिसे "सूर्य कुण्ड"' कहते हैं (स्थानीय लोग इसे "राम कुण्ड" कहते हैं।) कुण्ड के जल-स्तर तक पहुँचने के लिये इसके अंदर चारों ओर प्लेटफार्म तथा सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। साथ ही कुंड के भीतर लघु आकार के कई छोटे बड़े मंदिर भी निर्मित किए गए हैं जो कि देवी-देवताओं, जैसे देवी शीतलामाता, गणेश, शिव (नटेश), शेषशायी-विष्णु तथा अन्य को समर्पित किए गए हैं।

मोढेरा नृत्य समारोह

गुजरात के पर्यटन निगम के द्वारा जनवरी के तीसरे सप्ताह में उत्तरायण त्यौहार के बाद मंदिर में 'उत्तरार्ध महोत्सव' मनाया जाता है, जिसमें प्रत्येक वर्ष तीन दिवसीय नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसका उद्देश्य शास्त्रीय नृत्य रूपों को उसी तरह के माहौल में प्रस्तुत करना है, जिसमें वे मूल रूप से प्रस्तुत किए जाते थे।[१०][११]

अवस्थिति

यह गुजरात, भारत में मोढेरा गाँव में स्थित है, जो महेसाणा से 25 कि॰मी॰ और अहमदाबाद से 106 कि॰मी॰ दूर पर स्थित है।

चित्र दीर्घा

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:commonscat