मेरी इक्यावन कविताएँ
मेरी इक्यावन कविताएँ कवि व राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी का बहुचर्चित काव्य-संग्रह है जिसका लोकार्पण १३ अक्टूबर १९९५ को नई दिल्ली में भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री पी० वी० नरसिंहराव ने सुप्रसिद्ध कवि शिवमंगल सिंह 'सुमन' की उपस्थिति में किया था। कविताओं का चयन व सम्पादन डॉ॰ चन्द्रिकाप्रसाद शर्मा ने किया है। पुस्तक के नाम के अनुसार इसमें अटलजी की इक्यावन कविताएँ संकलित हैं जिनमें उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। बानगी के तौर पर यहाँ इस पुस्तक की कुछ कविताएँ भी दे दी गयीं हैं।
पुस्तक के अध्याय
इस पुस्तक में कविताओं को कुल चार भागों में बाँटा गया है; (१):अनुभूति के स्वर, (२): राष्ट्रीयता के स्वर, (३): चुनौती के स्वर और (४): विविध स्वर।
दूध में दरार पड़ गई[१]
दूध में दरार पड़ गई।
ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बँट गये शहीद, गीत कट गए;
कलेजे में कटार गड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गए नानक के छन्द
सतलुज सहम उठी,
व्यथित सी बितस्ता है;
वसंत से बहार झड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता,
तुम्हें वतन का वास्ता;
बात बनाएँ, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
झुक नहीं सकते[२]
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता निरंकुशता से,
अँधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अन्तिम अस्त होती है।
दीप निष्ठा का लिए निष्कम्प
वज्र टूटे या उठे भूकम्प,
यह बराबर का नहीं है युद्ध,
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध,
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज,
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज।
किन्तु फिर भी जूझने का प्रण,
पुन: अंगद ने बढ़ाया चरण,
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार,
समर्पण की माँग अस्वीकार।
दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते;
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
(सन् १९७५ में आपातकाल के दिनों कारागार में लिखित रचना)
परिशिष्ट
परिशिष्ट के अन्तर्गत कवि-परिचय, काव्य-वैभव, शिल्प-सौन्दर्य के अतिरिक्त कवि से एक साक्षात्कार भी दिया गया है। पुस्तक के फ्लैप पर आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री की संक्षिप्त टिप्पणी भी अंकित है।
काव्य-मीमांसा
अटल जी की इस पुस्तक की काव्य-मीमांसा[३] समीक्षा-गीत के रूप में मदनलाल वर्मा 'क्रान्त' ने लिखी है जिसमें प्रत्येक कविता के शीर्षक का प्रयोग करते हुए बहुत ही सटीक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।