मेइजी पुनर्स्थापन

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मेइजी पुनर्स्थापन के अंत में शोगुन ने अपने शासक-अधिकार औपचारिक रूप से सम्राट मेइजी को सौंप दिए
१८७० में बने इस चित्र में चित्रकार ने जापान की पुरानी और नयी व्यवस्था की मुठभेड़ दर्शाने की कोशिश करी
इतो हिरोबुमी मेइजी पुनर्स्थापन संग्राम के एक मुख्य नेता थे

मेइजी पुनर्स्थापन (明治維新, मेइजी इशिन) उन्नीसवी शताब्दी में जापान में एक घटनाक्रम था जिस से सन् 1868 में सम्राट का शासन फिर से बहाल हुआ। इस से जापान के राजनैतिक और सामाजिक वातावरण में बहुत महत्वपूर्ण बदलाव आये जिनसे जापान तेज़ी से आर्थिक, औद्योगिक और सैन्य विकास की ओर बढ़ने लगा।[१] इस क्रान्ति ने जापान के एदो काल का अंत किया और मेइजी काल को आरम्भ किया। इस पुनर्स्थापन से पहले जापान का सम्राट केवल नाम का शासक था और वास्तव में शोगुन (将軍) की उपाधि वाले सैनिक तानाशाह राज करता था।

अन्य भाषाओँ में

मेइजी पुनर्स्थापन को अंग्रेज़ी में "मेइजी रॅस्टोरेशन" (Meiji Restoration) कहते हैं।

घटनाक्रम

बंद देश

सन् 1543 में पुर्तगाली जापान से संपर्क करने वाली पहली यूरोपियाई शक्ति बने। जापान उस समय अपने मध्यकालीन युग में था। भालों और तलवारों के अलावा जापानियों के पास कोई अस्त्र न थे। जापान का राजनैतिक वातावरण सामंतवादी था जिसमें देश भिन्न हिस्सों में बंटा हुआ था और हर क्षेत्र पर एक तानाशाह का राज था। जापान के केंद्र में एक सम्राट था लेकिन वह केवल नाम का राजा था। असली शक्ति शोगुन के पास हुआ करती थी, जो स्वयं एक सैन्य तानाशाह होता था। जापान ने अपनी संस्कृति और आर्थिक व्यवस्था बचने के लिए यूरोपियाई व्यापार को बहुत सीमित रखा। 1633 में जापान ने सकोकू (鎖国, बंद देश) नीति की घोषणा करी। इसके अंतर्गत किसी जापानी को जापान छोड़कर जाने का प्रयास करने पर या किसी विदेशी को जापान में घुसने के प्रयास करने पर मृत्युदंड दिया जाता था। कुछ जापानी संगठनों को केवल पांच ग़ैर-जापानी लोगों से व्यापर करने की बहुत सीमित इजाज़त थी: उत्तर के होक्काइदो द्वीप पर स्थित आइनू लोग, दक्षिण में स्थित रयुक्यु द्वीपसमूह के लोग, कोरिया का जोसेयोन वंश और नागासाकी के शहर में स्थित व्यापारी केंद्र में चीनी और डच सौदागर।

अमेरिकी दबाव

अमेरिकी सरकार ने उन्नीसवी सदी के मध्य में जापान से व्यापर करने का फ़ैसला किया। 1843 में एक नौका और एक युद्धनौका लेकर अमेरिकी नौसेना के कप्तान जेम्ज़ बिडल ने टोक्यो के बंदरगाह में लंगर डालकर जापान से व्यापारी समझौता करने की विनती करे। उसे दुत्कार कर वापस भेज दिया गया। 1849 में कप्तान जेम्ज़ ग्लिन ने नागासाकी जाकर बातचीत करी और अमेरिका वापस आकर अमेरिकी सरकार को राय दी कि जापान को ज़बरदस्ती व्यापार के लिए रज़ामंद करना चाहिए। 1853 में कप्तान मैथ्यू पॅरी ने टोक्यो बंदरगाह पर लंगर डाला। उस समय तोकुगावा परिवार का वंश शोगुन की गद्दी संभाले हुए था। उन्होंने जब पॅरी के जहाज़ों को हटने के लिए कहा तो पॅरी ने उनको तोपों से डराया। जापान को इसके बाद व्यापार के लिए सहमत होना पड़ा।

१८५३ के बाद

इस घटना का जापान पर गहरा असर पड़ा। जापानी समाज और भिन्न क्षेत्रों के बहुत से शक्तिशाली व्यक्तियों ने भांप लिया के अगर जापान को पश्चिमी ख़तरे से सुरक्षित रखना है तो उसे मज़बूत बनाना होगा और पश्चिमी विज्ञान को जापानी समाज का हिस्सा बनाना होगा। शोगुन व्यवस्था के विरुद्ध एक लहर उठी और ९ नवम्बर १८६७ में उस समय के शोगुन, तोकुगावा योशिनोबू, ने औपचारिक रूप से अपने शासक-अधिकार उस समय के सम्राट मेइजी (明治天皇) के नाम कर दिए। १० दिनों बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया और शोगुन प्रथा का अंत हुआ। इसके बाद भी वास्तव में शासकीय शक्तियाँ सम्राट को नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली गुट को मिलीं, लेकिन उनका ध्येय जापान को तेज़ी से आधुनिक बनाना था जिस से जापान में एक औद्योगिक और सैन्य क्रांति का मंच तैयार हो गया।

प्रभाव

मेइजी पुनर्स्थापन से जापान में औद्योगीकरण की रफ़्तार बहुत तेज़ हो गई। "देश को धनवान बनाओ, फ़ौज को शक्तिशाली बनाओ" (富国強兵, फ़ुकोकू क्योहेई) के नारे के अंतर्गत विकास कार्य हुआ। बहुत से जापानी पश्चिमी विश्वविद्यालयों में पढ़ने भेजे गए और विज्ञान और तकनीकी ज्ञान वापस लाए। जापानी समाज चार वर्णों में बंटा था, लेकिन शासकों ने जातपात मिटने पर बहुत ज़ोर लगाया। धीरे-धीरे क्षेत्रीय तानाशाहों की ज़मीने ज़ब्त करके राष्ट्र को राजनैतिक रूप से संगठित किया गया। पुरानी व्यवस्था में क्षत्रीय जैसे सामुराई योद्धाओं को सरकार वेतन दिया करती थी जो सरकारी ख़ज़ाने के लिए बहुत बड़ा बोझ था। इसे बंद कर दिया गया। बहुत से सामुराई सरकारी नौकरियाँ करने लगे लेकिन कुछ ने विद्रोह और दंगा-फ़साद किया, जिन्हें नई बनी शाही जापानी सेना ने कुचल दिया।

विश्व मंच पर जापान का नया स्थान

जापान का व्यापार फला-फूला और सेना भी शक्तिशाली बन गई। 1894-1895 के चीनी-जापानी युद्ध में जापान विजयी रहा और कोरिया को जापान द्वारा नियंत्रित क्षेत्र बना लिया गया। 1904-1905 के रूसी-जापानी युद्ध में भी जापान विजयी हुआ। यह पहली बारी थी जब किसी एशियाई देश ने किसी यूरोपियाई देश को युद्ध में हराया था। इसके बाद जापान को विश्व-स्तर की एक महान शक्ति माना जाने लगा। सन् 1900 तक जापान की गिनती विश्व की दस सब से बड़ी औद्योगिक शक्तियों में भी होने लगी थी।[२]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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