मूलाधार चक्र

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मूलाधार चक्र तंत्र और योग साधना की चक्र संकल्पना का पहला चक्र है। यह अनुत्रिक के आधार में स्थित है। इसे पशु और मानव चेतना के बीच सीमा निर्धारित करने वाला माना जाता है। इसका संबंध अचेतन मन से है, जिसमें पिछले जीवनों के कर्म और अनुभव संचित रहते हैं। कर्म सिद्धान्त के अनुसार यह चक्र प्राणी के भावी प्रारब्ध निर्धारित करता है।

मानव के भीतर एक रहस्यमयी शक्ति निवास करती है । जो गहरे आवरण में छिपी हुई है । जो सरपरी की तरह मुलाधार चक्र में गोल घूम रही हैं । मनुष्य ने सहस्त्र वर्षो के अनुसंधान से अपनी भीतर की इस शक्ती को ढुंढ निकाला । यह शक्ति मानव के भीतर मूलाधार चक्र से लेकर मस्तिष्क तक प्रकाशित होती रहती हैं ओर यह शक्ति ब्रह्मांड से जुडी है । संपूर्ण ब्रह्मांड एक चक्र से जुडा है । जिसे सहस्त्रहार चक्र कहा जाता है । हमारे शरीर में सप्त प्रकार के सप्तचक्र होते है । एक - एक चक्र में सहस्त्र प्रकार की शक्तियां और अनेक प्रकार के अनुभव छूपे हुये है । जिन्हे शब्दों में वर्णित नहीं कर सकते । यदि साधक इस शक्ति को जागृत कर ले तो उसका जीवन बदलने लगता है ओर यह संपूर्ण ब्रह्मांड को संचालित करने वाली ऊर्जा मनुष्य के भीतर धीरे - धीरे उतरने लगती हैं और साधक विराट अस्तित्व से जुडकर उसका स्वामी बनने लगता है । हमारे सप्त चक्रो में से मूलाधार चक्र एक दिव्य चक्र है । इसको जागृत करने के लिये हमें एक अच्छे गुरु के सानिध्य में इस विराट आसक्ति को जागृत करना चाहिये ।

विशेषता

  • इसके सकारात्मक गुण हैं - स्फूर्ति, उत्साह और विकास।
  • इसके नकारात्मक गुण हैं- सुस्ती, निष्क्रियता, आत्म-केंद्रन और विषयासक्ति ।
  • कायाकल्प का मार्ग - योग का एक पूरा सिद्धांत मूलाधार से विकसित हुआ जो इस शरीर के विभिन्न उपयोग से लेकर इंसान के अपनी परम संभावना तक पहुचने से जुडी है ।
  • चट्टान की तरह बने - मानव शरीर के कई पहलू समय के साथ खराब होने लगते है । पर आप उन्हें इस तरह से स्थिर कर देते हैं कि ये बदलाव पूरी तरह रुक नहीं जाता पर इस हद तक धीमा हो जाता है कि आपकी उम्र ढल ही नहीं रही ।
  • मूलाधार चक्र हमें शारिरिक रुप से मजबूत करता है ।
  • यह चक्र नये जीवन की शुरुआत होने वाले ग्रंथियों को नियंत्रित करता है ।
  • मानसिक रुप से भी आप स्थिर हो जायेंगे ।
  • भावनाओं में आप Balance Position में आयेंगे ।
  • यह चक्र आपके कामवासना को भी Balance करेंगा ।
  • इंद्रियों के सुख को भी यह चक्र Balance करता हैं।

प्रतीक

  • इस चक्र के देवता पशुपति महादेव के रूप में ध्यानावस्थित भगवान शिव हैं। यह निम्नस्तरीय गुणों पर नियंत्रण करने का प्रतीक है।
  • इस चक्र का सांकेतिक प्रतीक चार पंखुड़िय़ों वाला कमल है। चारों पंखुड़ियाँ इस चक्र में उत्पन्न होने वाले मन के चार तत्वों: मानस, बुद्धि, चित्त और अहंकार के प्रतीक हैं।
  • इस चक्र का दूसरा प्रतीक चिह्न उल्टा त्रिकोण है। यह ब्रह्माण्ड की ऊर्जा खिंचते चले आने का द्योतक है। यह चेतना के ऊर्ध्व प्रसार का भी बोध कराता है।
  • इस चक्र का प्रतिनिधि पशु ७ सूंडों वाला हाथी है। हाथी बुद्धि का प्रतीक है। ७ सूंडें पृथ्वी के ७ खजानों (सप्तधातु) की प्रतीक हैं।

इस चक्र का अनुरूप तत्त्व पृथ्वी है।

इन्हें भी देखें

  1. मूलाधार चक्र
  2. स्वाधिष्ठान चक्र
  3. मणिपुर चक्र
  4. अनाहत चक्र
  5. विशुद्धि चक्र
  6. आज्ञा चक्र
  7. बिंदु चक्र
  8. सहस्रार चक्र

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ

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२. https://www.sahitydrshan.com/2021/05/Muladhar-chakra-in-hindi.html