मूर्वा

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मूर्वा

मूर्वा (वानस्पतिक नाम : Clematis Gouriana) या 'मरोड़फली' नाम की लता हिमालय के उत्तराखण्ड को छोड़ भारतवर्ष में और सब जगह होती है। इसमें सात-आठ डंठल निकलकर इधर उधर लता की तरह फैलते हैं। फूल छोटे छोटे, हरापन लिए सफेद रंग के होते हैं। इसके रंशे बहुत मजबूत होते हैं जिससे प्राचीन काल में उन्हें वटकर धनुष की डोरी बनाते थे। उपनयन में क्षत्रिय लोग मूर्वा की मेखला धारण करते थे। एक मन पत्तियों से आधा सेर के लगभग सुखा रेशा निकलता है, जिससे कहीं कहीं जाल बुने जाते हैं। त्रिचिनापल्ली में मूर्वा के रेशों से बहुत अच्छा कागज बनता है। ये रेशे रेशम की तरह चमकीले और सफेद होते हैं। मूर्वा की जड़ औषध के काम में भी आती है। वैद्य लोग इसे यक्ष्मा और खांसी में देते हैं। आयुर्वेद में यह अति तिक्त, कसैली, उष्ण तथा हृदयरोग, कफ, वात, प्रमेह, कुष्ठ और विषमज्वर को दूर करनेवाली मानी जाती है।