मुसहफ़ी

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ग़ुलाम हमदानी मुसहफ़ी उर्दू के बड़े शायर हुए। इनके समकालीन और प्रतिद्वंदी इंशा और जुरअत थे। इंशा के साथ इनके शेरों की प्रतिद्वंदिता बहुत चली जो बाद में तूतू-मैमैं तक उतर गई।

शेख़ वली मुहम्मद के बेटे मुसहफ़ी अमरोहा में पैदा हुए। युवावस्था में ही शेरो शायरी का शौक इन्हें दिल्ली ले आया। यहाँ मीर, दर्द, सौदा और सोज़ जैसे शायर वृद्ध हो चले थे। इनका असर इनकी शाइरी पर पड़ा। लेकिन मुग़ल शासन के बुरे दिनों में उपरोक्त शायर (दर्द को छोड़कर) दिल्ली छोड़ गए। मुसहफ़ी भी फैज़ाबाद पहुँचे, वहाँ टाण्डा में नवाब मुहम्मद यार ख़ाँ के दरबार में मुलाज़िम हुए। पर इन्हें यहाँ से भी जाना पड़ा। वे लखनऊ और फिर दिल्ली चले गए। इसके बाद वे फिर लखनऊ लौटे। इस बार लखनऊ में मिर्ज़ा सुलेमान शिकोह की सरकार में इनकी धाक हो गई। इंशा और जुरअत भी यहाँ पहुँचे, जिनकी मसखरी के सामने ये बिगड़ते चले गए।

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