मीर जाफ़र

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मीर जाफ़र १७५७ से १७६० तक बंगाल का नवाब था। शुरु में वह सिराजुद्दौला का सेनापति था। वह ऐसा आदमी था जो दिन रात एक ही सपना देखता था की वो कब बंगाल का नवाब बनेगा। वह प्लासी के युद्ध में रोबर्ट क्लाइव के साथ मिल गया क्योंकि रोबर्ट क्लाइव ने मीर जाफ़र को बंगाल का नवाब बनाने का लालच दे दिया था। इस घटना को भारत में ब्रिटिश राज की स्थापना की शुरुआत माना जाता है और आगे चलकर मीर जाफ़र का नाम भारतीय उपमहाद्वीप में 'देशद्रोही' व 'ग़द्दार' का पर्यायवाची बन गया। और इसी को भारतीय इतिहास में great betryal(महान विश्वाशघात) के नाम से भी जाना जाता है। १७६० ई० में उसके संबंध अंग्रेजों से खराब हो गए। और उसने तंग आकर गद्दी छोड़ दी। फिर, उसके दामाद मीर कासिम को गद्दी पर बैठाया गया। मगर जब उसने भी अंग्रेजो से दगा किया तब जुलाई,१७६३ ई० में उसे फिर से नवाब बनाया गया। फिर फरवरी,१७६५ में उसकी मृत्यु के कारण कलकता कौंसिल ने उसके दूसरे बेटे निजमुद्यौला को नवाब बना दिया। पर पूरे राज में अराजकता फैल गयी।

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