मार्ग वृक्षपालन

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
Mothugudem road near Chintoor.jpg

मार्ग वृक्षपालन के अंतर्गत सड़कों के किनारे वृक्ष लगाना और फिर उनका अनुरक्षण करना आता है। वृक्ष विज्ञान से इसका सीधा संबंध है। मार्ग वृक्षपालन के लिए वृक्षों की वृद्धि और उनकी क्रिया-प्रणाली संबंधी ज्ञान तो अनिवार्यत: आवश्यक है ही, साथ ही साथ सजावट के उद्देश्य से, दृढ़ता के आधार पर, प्रतिरोधात्मक गुणों की दृष्टि से पौधों के चुनाव और समूहन संबंधी कौशल भी अपेक्षित हैं। इसलिए मार्ग वृक्षपालन का दायित्व निभाने के लिए पादप-क्रिया-प्रणाली, मृदा-विज्ञान, विकृति आदि का कामचलाऊ ज्ञान होना चाहिए।

परिचय

सजावट, शिक्षा संबंधी या वैज्ञानिक प्रयोजनों के लिए काष्ठ उत्पादक वृक्ष बहुत प्राचीन काल से लगाए जाते रहे हैं। प्राचीन साहित्य में वृक्षारोपण और वृक्षों की देखभाल की पर्याप्त चर्चा हैं। वैदिक संस्कृति मूलत: आश्रम संस्कृति है और भारत गरम देश है, अत: यहां आदिकाल से ही वृक्षारोपण की महत्ता मान्य रही है एवं सड़कों के किनारे पेड़ लगाना एक पुनीत कार्य समझा जाता रहा है। पाश्चात्य जगत्‌ में सड़कों का इतिहास जब से आरंभ होता है, उसके शताब्दियों पहले से भारतीय यात्रियों को छाया देनेवाली, शोभावाली वृक्षावलियों के लिये प्रसिद्ध थीं। सड़कों के किनारे कुआँ, बावली, या सराय की अपेक्षा वृक्षारोपण का महत्व कम न था।

वृक्ष सड़क के किनारे प्राय: दोनों ओर, समानांतर एवं लगातार, पंक्तियों में, गोले से काफी दूर लगाए जाते हैं। बहुधा इकहरी पंक्ति ही दोनों ओर लगाई जाती है, किंतु यदि सड़क के किनारे बहुत चौड़ी पट्टी हो तो वहाँ दो पंक्तियाँ भी लगाई जा सकती हैं। वृक्षों के बीच आड़े-बेंड़े कम से कम चालीस चालीस फुट का अंतर होना चाहिए, ताकि वृक्षों की स्वस्थ वृद्धि संभव हो और उनका पूर्ण विकास होने पर एक की पत्तियाँ दूसरे से न छू जाएँ। बरगद सरीखे कुछ विशाल वृक्षों के लिये यह अंतर और भी अधिक रखना पड़ सकता है। प्रत्येक दशा में सड़क के दोनों ओर इतनी दूरी होनी चाहिए कि यदि इकहरा यानपथ हो तो दस-बारह फुट और दुहरा यानपथ हो, तो बीस-चौबीस फुट जगह सड़क पर बिल्कुल खुली रह सके। इस दृष्टि से स्थानीय मिट्टी के लिये उपयुक्त वृक्षों का चुनाव करने के साथ यह भी आवश्यकता होती है कि पेड़ कम घेरे वाले हों। सड़क के किनारे की भूसंपत्ति का भी ध्यान रखना पड़ता है, जैसे विशेष उपजाऊ भूमि हो तो ऐसे पेड़ लगाने चाहिए कि उनकी छाया से फसल को विशेष हानि न पहुँचे। शहरी क्षेत्रों में ऐसे पेड़ लगाने चाहिए जो वर्तमान, अथवा प्रस्तावित, मार्ग-प्रकाशन-व्यवस्था में बाधा न दें और न वर्तमान संरचनाओं को ही कोई हानि पहुंचाएँ।

वृक्षारोपण के प्रथम चरण में गड्ढे खोदना और पौध तैयार करना सम्मिलित है। वृक्षों की स्थिति निश्चित हो जाने पर वहाँ कम से कम तीन फुट लंबे, तीन फुट चौड़े और तीन फुट गहरे गड्ढे खोदे जाते हैं और खुदी हुई कुछ मिट्टी से गड्ढे के चारों ओर एक बाँध जैसा बना दिया जाता है। इसे 'थाला' कहते हैं। थाला बनाने का काम वर्षा के पहले ही पूरा कर लिया जाता है। खुदी हुई मिट्टी में आस पास उपलब्ध पंत्तियों एवं गोबर आदि की खाद मिलाकर, फिर थाले में इस प्रकार भर दी जाती है कि गड्ढा भूमितल से लगभग एक बालिश्त नीचा रहे। इसे वर्षा में (या कभी कभी पानी सींच कर) बैठने के लिये छोड़ देते हैं। पौध किसी सुविधाजनक स्थान पर क्यारियों में ही तैयार की जाती है। यहाँ प्रशिक्षित और अनुभवी माली की देख रेख में पौधे बढ़ते हैं। क्यारियाँ ऐसी जगह बनानी चाहिए जहाँ पानी सदा मिल सके और पशुओं से उनकी रक्षा की जा सके। कड़ी धूप से भी पौधों को बचाना आवश्यक होता है।

पौधे प्राय: वर्षा में, या उसके बाद ही, लगाए जाते हैं, जब गड्ढे गीले हों और पौधे लगाने के लिये ठीक हों। थाले के बीचों बीच लगभग छह इंच चौकोर और 12 इंच गहरा गड्ढा खोदकर, उसमें स्वस्थ और सामान्य बाढ़वाला कोई पौधा चुनकर लगा दिया जाता है। फिर उसमें रोज पानी दिया जाता है, जबतक कि पौधा जड़ न पकड़ ले। धीरे धीरे उसकी कुछ या सारी पत्तियाँ झड़ जाती हैं और नई निकलने लगती हैं। यदि डंठल हरा है और उसमें अंकुर निकल रहे हैं, तो पौधा जीवित समझना चाहिए। इस अवधि में विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। थालों के चारों ओर मिट्टी, ईंट या लकड़ी के घेरे बना दिए जाते हैं, ताकि जानवर पौधे न चर जाएँ। पौधे की और मिट्टी की किस्म के अनुसार लगभग तीन से पाँच वर्ष तक सिंचाई और निराई गुड़ाई की आवश्यकता रहती है। बड़े हो जाने पर पौधों पर नंबर डाल दिए जाते है। सब पेड़ों की एक सूची बना ली जाती है, जिसमें भविष्य में आवश्यकतानुसार यदि कभी कोई परिवर्तन हो तो संशोधन किया जा सके।

सड़क के किनारे बहुधा लगाए जाने वाले पेड़ आम, इमली, जामुन, बरगद, पीपल, नीम, बकायन, अशोक, शीशम, सागौन, महुआ, नारियल और खजूर आदि हैं। बबूल सरीखे काँटेदार पेड़ लगाना ठीक नहीं होता, क्योंकि इनके सूखे काँटे गिर गिर कर पैदल तथा सवारीवाले, सभी यात्रियों को कष्ट देते हैं। वृक्षों का चुनाव बहुधा मिट्टी की दृष्टि से किया जाता है।

पौधों में अनेक प्रकार के रोग भी लग जाते हैं ऐसी दशा में शीघ्र ही उपचार होना चाहिए। कभी कभी पत्तियों में नीचे की आरे छोटे छोटे सफेद अंडे जैसे अथवा टहनियों में फफूंद जैसी लगी दिखाई देती हैं। इन्हें तुरंत नष्ट कर देना चाहिए और पौधों पर चूने का पानी और नीला थोथा (तूतिया) के हलके घोल का मिश्रण, अथवा तंबाकू का पानी, छिड़क देना चाहिए। यदि तुरंत इस पर ध्यान न दिया गया, तो यह बीमारी अन्य पौधों तक फैल सकती है। कभी-कभी तो थालों मे भरी हुई मिट्टी या खाद में ही कीटाणु मौजूद रहते हैं और वहीं से पेड़ों में फैल जाते हैं और कभी-कभी निकटस्थ वनस्पति से।

मार्ग-वृक्षपालन का एक महत्वपूर्ण अंग है काट छाँट या शाख तराशी। यदि पौधे में अत्यधिक टहनियाँ या शाखाएँ निकल आती हैं, तो उसकी बाढ़ रूक जाती है। शाखाओं के फैलाव से सड़क के ऊपर यानों के अबाध आवागमन में कठिनाई होती है। इसलिये किसी तेज चाकू, कैंची या कुल्हाड़ी से ऐसी सभी अनावश्यक शाखाएँ और टहनियाँ काट देनी चाहिए जो बेढंगी लगती हों, या यातायात में बाधक होती हों। मोटी डालें तेज कुल्हाड़ी या आरी से इस प्रकार काटनी चाहिए कि छिलका न उतर जाये और पेड़ को क्षति न पहुँचे। पतले और झुके हुए तनेवाले पौधे यदि बदले न जा सकें, तो उन्हें थाले में एक लकड़ी गाड़कर उससे बाँध देना चाहिए, ताकि वे धीरे-धीरे सीधे हो जायँ। यह सब काम सुव्यवस्थित ढंग से, सावधानी पूर्वक, किसी अनुभवी व्यक्ति की देख रेख में, उपयुक्त मौसम में किया जाय, तो अत्यंत चित्ताकर्षक मार्ग तैयार होता है।

वृक्षारोपण और वृक्षों के पालन की लागत-स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार भिन्न भिन्न होती है। यह मजदूरी की दरों, पानी की उपलब्धि, मिट्टी की किस्म और वृक्ष की जाति पर बहुत अंश तक निर्भर होता है। मार्ग वृक्षपालन पर हुआ व्यय यदि लकड़ी और फलों के रूप में वसूल न हो, तो यह व्यर्थ नहीं जाता। यात्रियों की सुख सुविधा की दृष्टि से वह लाभदायक ही ठहरता है। इतना ही नहीं, उपयुक्त जाति के वृक्ष चुनकर उन्हें सुंदर ढंग से लगाने से निर्जन मार्ग भी सुंदरता से भर जाता है और मनोहारी वीथी का रूप ग्रहण कर लेता है। इसलिए सड़क इंजीनियरों को इस दिशा में भी उतना ही ध्यान देना चाहिए जितना सड़क निर्माण और मरम्मत पर दिया जाता है।

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें