मानवाधिकार स्वाभिमान दिवस

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
मानवाधिकार स्वाभिमान दिवस (भारत)
अनुयायी साँचा:flag/core
प्रकार मानवाधिकार व स्वाभिमान के लिए संघर्ष दिवस
उत्सव उत्सव, महान ऐतिहासिक अभियान की स्मृति में
आरम्भ 1883
तिथि 26 अप्रैल
आवृत्ति प्रतिवर्ष

टेसूआ नदी का तट ग्राम पुरान मुंगेली छत्तीसगढ़ में जातिवादी सामंती असमानतावादियों के खिलाफ समतावादी सतनामी योद्धाओं के ऐतिहासिक विजय के स्मृति में प्रतिवर्ष 26 अप्रैल को मानवाधिकार स्वाभिमान दिवस मनाया जाता है।

इतिहास

यह गाथा गुरु बालकदास जी केे शहादत के 23 साल बाद सन् 1883 का है। 3 मार्च सन 1883 ई को भुजबल महंत मुंगेली क्षेत्र के दौरे पर गये थे , इसी दौरान चिरहूला में बखारी भण्डारी के घर जाते है, वहां बखारी भण्डारी की बेटी सुन्दरी को देखते है , उन्हें अपने पुत्र दयाल का विवाह भी करना था। इसलिए उन्होंने बखारी भण्डारी से सुन्दरी के विवाह के विषय में बात किया। बखारी भण्डारी ने बताया कि योग्य लड़का होने पर विवाह कर सकते है। इस पर भुजबल ने अपने पुत्र दयाल के विषय में बताया और कहा कि मैं अपने पुत्र का विवाह करना चाहता हूँ। बखारी ने भुजबल से कहा कि अपने बेटे दयाल को ले आयें , जिससे हम लोग भी उसे देखकर निर्णय ले सके.

10 मार्च को भुजबल अपने पुत्र दयाल , रिश्तेदारों और मित्रों को साथ लेकर चिरहुला पहुंचता है , वहां सुन्दरी और दयाल एक - दूसरे को पसंद कर लेते है। इस प्रकार दोनों का विवाह निश्चित हो जाता है।

25 मार्च को भुजबल महंत अपने पुत्र दयाल के विवाह का तिथि निश्चित करने के लिए बखारी भण्डारी के पर चिरहुला जा रहे थे। चिरहूला के पहले पुरान नाम का गांव है। जहां अमोली सिंह एक जातिवादी सामंती प्रवृत्ति का व्यक्ति था। जब अपने सहयोगियों के साथ , भुजबल पुरान गांव पहुंचे तब अपने साथियों के कहने पर यहां तालाब किनारे विश्राम करने के लिए रुकते है , उसी समय अमोली अपने आदमियों के साथ पहुंचता है और उनको देखकर पाय लागू साहेब ' कहता है.जवाब में भुजबल महंत साहेब सतनाम कहता है, यह सुनकर अमोली सिंह अपने आप को अपमानित महसूस करता है और भुजबल महंत से कहता है कि तुम लोग मुझसे माफी मांगो , अपने पगडी , जूता उतारकर घोड़ा और हथियार को यही छोड़कर पैदल जाओ। भुजबल महंत ऐसा करने से इंकार कर देता है, जवाब में चुनौती देता है कि अभी तो हम कुछ लोग ही हैं, मै अपने पुत्र का बारात इसी गांव से होकर लाऊंगा और चिरहूला से वापस भी इसी रास्ते से होकर नवलपुर ले जाऊंगा, अगर तुम रोक सको तो रोक लेना। ऐसा कहकर चिरहुला चला जाता है।

चिरहुला में इस घटना की जानकारी बखारी भण्डारी को देता है। बखारी भण्डारी के द्वारा चिरहुला के लोगों को बुलाकर इस संबंध में विचार - विमर्श किया जाता है। सभी लोगों के द्वारा कहा जाता है कि अमोली के द्वारा किये गये व्यवहार हमे मंजूर नहीं, हम अपनी बेटी के विवाह को किसी भी हालात में नहीं रोक सकते। अगर इसमें कोई बाधा पैदा का प्रयास करता है, तो उसका उत्तर देने के लिए हम सभी तैयार है। विवाह का तिथि निश्चित किया जाता है। भूजबल महंत और उसके सहयोगियों को वापस जाते समय चिरहूला के कुछ लोग पुरान से आगे कोहड़िया होते हुए मोहता तक साथ गये। इस दौरान कोई रोक - टोक नहीं किया गया। चिरहूला के लोग मोहतरा से वापस आ गये।

इधर पुरान में अमोली सिंह भुजबल के जवाब से काफी तिलमिलाया हुआ था। भुजबल के द्वारा दिये गये चुनौती उसे कापी नागवार लगा था। जब उसे पता चला कि विवाह का तारीख नियत हो चुका है , तब यह और भी ज्यादा बौखला गया। इस विवाह को रोकने के लिए कई उपाय सोचने लगा। अमोली सिंह ने अपना संदेश वाहक 26 मार्च को चिरहुला में बखारी भण्डारी के पास भेजा और कहलवाया कि आप अपनी बेटी का विवाह नवलपुर के भुजबल महंत के बेटे दयाल से न करें। सिर्फ इतना ही नहीं उसने यह भी कहा कि चिरहूला के किसी भी लड़के या लड़की का विवाह ऐसे स्थान में न करें जिससे पुरान से होकर कोई बारात आये या जाये।

इस संदेश को पाकर चिरहुलावाशी भी क्रोधित हो गये उन्होंने तय किया कि हमारी सुन्दरी के विवाह को ऐसा करेंगे कि दुनिया देखेगी। 27 मार्च को नवलपुर गये संदेशवाहक को चिरहुला के लोगों ने अपने तरफ से रुपये दिया था, जिससे कि एक शानदार डोला बनवाया जा सके, जैसे छत्तीसगढ़ में आज तक किसी ने भी न देखा हो। भुजबल को पुरान में चलने वाली गतिविधियों के बारे में भी विस्तार से बताया जाता है और कहा जाता है कि बारात आने व जाने के समय सावधान रहे। 28 मार्च को चिरहूला से पुरान में अमोली को पास , संदेश भेजा गया कि यह विवाह हर हाल में होगा। इसे रोकने के किसी भी प्रयास का कड़ा मुकाबला किया जायेगा। जिसे अपने जान का परवाह नहीं होगा , वही बारात के सामने रोकने के लिए आयेगा।

भूजबल महंत विवाह की तैयारी की जिम्मेदारी अपने रिश्तेदारों को देकर कुछ सहयोगियों को साथ लेकर राज्य के तत्कालीन राजधानी नागपुर के लिए 1 अप्रैल को रवाना हो जाते है। जहां वे उस समय के सर्वोच्च अंग्रेज अधिकारी से मिलकर यहां की स्थिति के बारे में बताते है। अधिकारी के द्वारा हर संभव सहयोग का वादा किया जाता है। उनके द्वारा अपने अधीनस्थ अधिकारियों को आदेश दिया जाता है, कि यहां शांति कायम रखने का हर संभव प्रयास किया जाये। अधिकारियों से मिलने के बाद भुजबल नागपुर में अच्छे कारीगरों से डोला बनवाते है।

पुरान में अमोली इस विवाह को रोकने के लिए एडी - चोटी का जोर लगा रहा था। उसने सभी जमीदारों सामंतों को अपना संदेश भेजा कि सतनामियों को सबक सिखाने के लिए वे उसका साथ दे। स्थानीय जमीदारों- सामंतीयों ने इस कार्य को करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से साथ देने में असमर्थता व्यक्त किया गया। लोगों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से साथ देने की बात कही गयी। अमोली ने वहां अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने पर बाहर के लोगों को आमंत्रित किया।

वर्तमान मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश के कुछ इलाकों जैसे - रीवा , ग्वालियर , चंबल आदि क्षेत्रों के सामंत व उनके समर्थकों को अपना संदेश भेजा। उन स्थानों से लोग अगोली को साथ देने के लिए तैयार हो गये और पुरान पहुंचने लगे। अमोली सिंह काफी खुश हुआ और उसे लगने लगा कि उनका मुकाबला सतनामी किसी भी हालात में नहीं कर पायेंगे। बाहरी लोगों ने आते ही पूरे पुरान गांव का निरीक्षण किया। आने जाने वाले रास्तों को देखा और स्थान - स्थान पर खंदक खोदा जाने लगा। कांटेदार झाड़ियों और पेड़ों को काटकर एकत्रित किया जाने लगा। खंदक खोदने के बाद उसे अच्छे से ढंक दिया गया जिससे किसी को यह न लगे कि यहां कोई खड्डा खुदा हुआ है। उन्होंने सतनामियों को रोकने और उनके ऊपर आक्रमण करने के लिए कई योजना बना लिया।

भुजबल महंत नागपुर से डोला लेकर 22 अप्रैल को नवलपुर पहुंचते हैं। उनके अनुपस्थिति में ही बारात की सारी तैयारी पूरा कर लिया गया था। सभी रिस्तेदारों , मित्रों और नवलपुर के लोगों को विवाह का निमंत्रण दिया गया था। साथ ही इस बारात को रोकने के लिए होने वाले प्रयास के बारे में भी बता दिया गया था,जिससे लोग सावधान रहे। चिरहुला में भी विवाह की तैयारी पूरा किया जा चुका था। बखारी भण्डारी ने भी अपने रिश्तेदारी , मित्रों और चिरहूला गांव के सभी लोगों को विवाह का निमंत्रण दिया। अमोली से हुए विवाद के बारे में भी सभी को पता चल गया था। बारातियों के स्वागत - भोजन आदि की तैयारी को पूरा कर लिया गया था। इसके साथ ही किसी भी संभावित खतरों को प्रति सभी सतर्क थे।

25 अप्रैल 1883 को नवलपुर से बारात चिरहुला के लिए निकलता है। यह बारात पूर्व से ही काफी चर्चित हो चुका था। इस बारात की सुरक्षा के लिए काफी संख्या में सतनामी आये हुए थे। शांति कायम रखने के लिए नागपुर के अधिकारियों के निदेशों को स्थानीय भारतीय अधिकारियों ने अवहेलना कर कोई भी उपाय नहीं किये थे। उन्होने अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा कर जातिवादी सामंतों का ही साथ दिया। नवलपुर से निकला बारात रास्ते में जिस भी गांव स्थान में पहुंचता , वहां के लोग उसे देखने के लिए उमड़ पड़ते। अनेक लोग बारात में शामिल भी हो जाते, भूजबल ने पुरान पहुंचने से पहले मोहतरा में अपने बारात को व्यवस्थित किया। जब वे पूर्ण रूप से संतुष्ट हूए तब आगे बढ़ने का आदेश दिया। मोहतरा से आगे कोहड़िया के बाद पुरान गांव आता है। पुरान से बारात गुजरने लगा। जैसे ही बारात आधा से ज्यादा निकल गया , पुरान में छिपे हुए सामंतियों ने बारात के आखिरी पिछले हिस्से पर आक्रमण कर दिया। खडैत पहले से सतर्क थे। उन्होंने तत्काल उत्तर दिया आक्रमणकारी उनके सामने नहीं टिक पाये और उनको भागना पड़ा। कुछ लोगों को पकड़ लिया गया और बंदी बनाकर चिरहूला लाया गया।

चिरहला पहुंचते ही बारात का स्वागत किया गया। एक मैदान में बखारी और भुजबल पक्ष के खडैतों द्वारा हथियारों का प्रदर्शन किया गया। काफी समय तक वह शौर्य प्रदर्शन का कार्यक्रम चलता रहा। बखारी भण्डारी के द्वारा , इसे बंद करने का संकेत पाकर यह कार्यक्रम रोका गया। बारातियों के भोजन आदि का व्यवस्था किया गया। शाम - रात में विवाह की औपचारिकता पूरा हो गया।

भूजबल ने पूरान से बंदी बनाकर लाये लोगों को बखारी के सामने प्रस्तुत किया। विवाह स्थल से दूर एकांत स्थान मे उनसे पूछताछ किया गया। जिससे अमोली और उसके बाहरी सहयोगियों के द्वारा बनाये गये गुप्त रणनीति सामने आया। इस बात की जानकारी सतनामियों के सभी दल प्रमुखों को दिया गया। साथ ही उनके घेराबंदी को तोड़कर सुरक्षित निकलने और उनको उत्तर देने का भी जवाबी रणनीति बना लिया गया।

26 अप्रैल 1883 ई. को तड़के सुबह बारात विदा किया गया। सतर्क बारात चिरहुला से निकलकर टेसुआ नदी को पार किया। नदी पारकर जैसे जी आगे रास्ते में बड़े तो रास्ता बंद पाया. खड़इतों के कई छोटे - छोटे दल उस रास्ते को छोड़कर अलग - अलग रास्तों से आगे बढ़े, खंदकों के जानकारी उनको पूर्व में मिल पाया। उन खंदकों में हमला कर दिया गया। दुश्मन जान बचाकर भागने लगे। दुश्मनों के बहुत से साथी खंदकों के अलावा पुरान गांव में छिपे हुए थे। वे भी अपने साथियों की सहायता के लिए आ गये। जातिवादी सामंतियों और सतनामी खड़तों के बीच लड़ाई शुरु हो गया।

इस लड़ाई के अफरा तफरी का फायदा उठाते हुए दुश्मनों का एक समूह डोला में सवार सुन्दरी के तरफ बड़ा दुश्मनों को अपने तरफ आते देखकर सुन्दरी और उसके अंगरक्षक खडैत सावधान हो गये। जब दुश्मन नजदीक पहुंच गये तो सुन्दरी भी दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए खड़तों के साथ तलवार चलाने लगी। दुस्मनों को जल्दी ही पता चल गया कि इनका मुकाबला नही किया जा - सकता। वे अपने जान बचाने के लिए भागने लगे। दुश्मनों के भागने का सिलसिला सूर्य निकलने के बाद और भी बढ़ गया , जब उन लोगों ने देखा कि उनके ही आदमियों को हानि उठाना पड़ रहा है। कोई भी सतनामी जमीन पर नहीं गिरा है। जबकि वे अपने साथियों को स्थान स्थान पर जमीन पर गिरे,किसी को कराहते तो किसी को निश्चल देख रहे थे। जैसे जैसे सूर्य का प्रकाश बढ़ते गया , उसी तरह से दुश्मनों से पुरान का मैदान खाली होते गया। खडैत खुशी से नाचने लगे। बखारी सुन्दरी को गले लगाता है। फिर उसे डोला तक ले जाता है। सुन्दरी डोला में बैठती है। भुजबल बारात को आगे बढ़ने का इशारा करता है और बारात आगे बढ़ता है।

इस लड़ाई में दर्जनों जातिवादी सामंती लडाके मारे गये। सतनामीयों ने अपने दुश्मनों को धूल चटा दिया था। इसके बाद कई वर्षों तक यह क्षेत्र शांत रहा।

सन्दर्भ

साँचा:cite book