महासमर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
महासमर  
[[चित्र:|150px]]
मुखपृष्ठ
लेखक नरेन्द्र कोहली
देश भारत
भाषा हिंदी
विषय साहित्य
प्रकाशन तिथि

साँचा:italic titleसाँचा:main other

महासमर कालजयी कथाकार एवं मनीषी डॉ॰ नरेन्द्र कोहली का सर्वाधिक प्रसिद्ध महाकाव्यात्मक उपन्यास. हिन्दी साहित्य की सर्वप्रसिद्ध रचनाओं में अग्रगण्य. महाभारत पर आधारित कथानक. आधुनिक जीवनदृष्टि. चार हज़ार पृष्ठों का फैलाव. आठ खंड. आधुनिक हिन्दी साहित्य की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि.

'महाभारत' एक विराट कृति है, जो भारतीय जीवन, चिंतन, दर्शन तथा व्यवहार को मूर्तिमंत रूप में प्रस्तुत करती है। नरेन्द्र कोहली ने इस कृति को अपने युग में पूर्णत: जीवंत कर दिया है। उन्होंने अपने इस उपन्यास में जीवन को उसकी संपूर्ण विराटता के साथ अत्यंत मौलिक ढंग से प्रस्तुत किया है। जीवन के वास्तविक रूप से संबंधित प्रश्नों का समाधान वे अनुभूति और तर्क के आधार पर देते हैं। इस कृति में आप महाभारत पढ़ने बैठेंगे और अपना जीवन पढ़ कर उठेंगे। युधिष्ठिर, कृष्ण, कुंती, द्रौपदी, बलराम, अर्जुन, भीम तथा कर्ण आदि चरित्रों को अत्यंत नवीन रूप में देखेंगे। नरेन्द्र कोहली की मान्यता है कि वही उन चरित्रों का महाभारत में चित्रित वास्तविक स्वरूप है।

प्रत्येक खंड के बारे में संक्षिप्त परिचय ...[१]

महासमर-बंधन (खंड एक)

'बंधन' शांतनु, सत्यवती तथा भीष्म के मनोविज्ञान तथा जीवन-मूल्यों की कथा है  । घटनाओं की दृष्टि से यह सत्यवती के हस्तिनापुर में आने तथा हस्तिनापुर से चले जाने के मध्य की अवधि की कथा है,जिसमें जीवन के उच्च आध्यात्मिक मूल्य जीवन की निम्नता और भौतिकता के सम्मुख असमर्थ होतेमहासमर-बंधनप्रतीत होते हैं और हस्तिनापुर का जीवन महाभारत के युद्ध की दिशा ग्रहण करने लगता है  ।महासमर-बंधन (खंड एक) स्पष्ट तौर पर दिखाता है कि  किस प्रकार शांतनु, सत्यवती तथा भीष्म केमहासमर-बंधनकर्म-बन्धनों से हस्तिनापुर बँध चुका है और भीष्म भी उससे मुक्त होने की स्थिति में नहीं थे ।

महासमर-अधिकार (खंड दो)

'अधिकार' की कहानी हस्तिनापुर में पांडवों के शैशव से आरम्भ हो कर वारणावत के अग्निकांड पर जा कर समाप्त होती है । वस्तुत: यह खंड अधिकारों की व्याख्या, अधिकारों के लिए हस्तिनापुर में निरंतर होने वाले षड्यंत्र, अधिकार को प्राप्त करने की तैयारी तथा संघर्ष की कथा है ।

महासमर-कर्म ( खंड तीन)

'कर्म' की  कथा युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के पश्चात की कथा है । इस राज्याभिषेक के पीछे मथुरा की यादव शक्ति है । वारणावत से जीवित बच कर पांडव पांचालों की राजधानी काम्पिल्य पहुँचाने की योजना इस कथा खंड का महत्त्वपूर्ण पक्ष है  ।

महासमर-धर्म (खंड चार)

इस खंड में बताया गया है कि पांडवों को राज्य के रूप में खाण्डवप्रस्थ मिला, जहाँ न कृषि है, न व्यापार । सम्पूर्ण क्षेत्र में अराजकता फैली हुई है । महासमर-बंधनइस  खंड में  उस युग के चरित्रों  तथा उनके धर्म का विश्लेषण भी किया गया है । महासमर-बंधनअर्जुन और कृष्ण ने अग्नि के साथ मिलकर खांडववन को नष्ट कर डाला। क्या यह धर्म था? जरासन्ध जैसा पराक्रमी राजा भीम के हाथों कैसे मारा गया और उसका पुत्र क्यों खड़ा देखता रहा ?  अंत में हस्तिनापुर में होने वाली द्यूत-सभा ।  धर्मराज होते हुए भी क्यों युधिष्ठिर द्यूत में सम्मिलित हुए ?

महासमर-अंतराल (खंड पाँच)

इस खंड में द्यूत में हारने के पश्चात् पांडवों के वनवास की कथा है । कुंती, पाण्डु के साथ शत-श्रृंग पर वनवास करने गई थी । लाक्षागृह के जलने पर, वह अपने पुत्रों के साथ हिडिम्ब वन में भी रही थी ।महाभारत की कथा के अंतिम चरण में, उसने धृतराष्ट्र, गांधारी तथा विदुर के साथ भी वनवास किया था। किन्तु अपने पुत्रों के विकट कष्ट के इन दिनों में वह उनके साथ वन में नहीं गयी । वह न द्वारका गयी, न भोजपुर । वह हस्तिनापुर में विदुर के घर पर क्यों रही ? इस प्रकार अनेक प्रश्नों के उत्तर निर्दोष तर्कों के आधार पर अंतराल में प्रस्तुत किये हैं ।

महासमर-प्रच्छन्न (खंड छह)

पांडवों का अज्ञातवास, महाभारत-कथा का एक बहुत आकर्षक स्थल है । दुर्योधन की गृध्र दृष्टि से पांडव कैसे छिपे रह सके ? अपने अज्ञातवास के लिए पांडवों ने विराटनगर को ही क्यों चुना ?  पांडवों के शत्रुओं में प्रछन्न मित्र कहाँ थे और मित्रों में प्रच्छन्न शत्रु कहाँ पनप रहे थे ? ऐसे ही अनेक पश्नों कोमहासमर-बंधनसमेटकर आगे बढती है, महासमर के इस छठे खंड प्रच्छन्न की कथा ।

महासमर-प्रत्यक्ष (खंड सात)

इसमें युद्ध के उद्योग और फिर युद्ध के प्रथम चरण अर्थात भीष्म पर्व की कथा है । कथा तो यही है कि पांडवों ने अपने सारे मित्रों से सहायता माँगी । कृष्ण से भी । इस खंड में कुंती और कर्ण का प्रत्यक्ष साक्षात्कार हुआ है और कुंती ने प्रत्यक्ष किया है कर्ण की महानता को ।   बताया है उसे कि वह क्या कर रहा है, क्या करता रहा है ।   बहुत कुछ प्रत्यक्ष हुआ है, महासमर के इस सातवें खंड प्रत्यक्ष में ।

महासमर-निर्बन्ध (खंड आठ) निर्बन्ध, महासमर का आठवाँ खंड है । इसकी कथा द्रोण पर्व से आरम्भ होकर शांति पर्व तक चलती है। कथा का अधिकांश भाग तो युद्धक्षेत्र में से होकर ही अपनी यात्रा करता है । किन्तु यह युद्ध केवल शस्त्रों का युद्ध नहीं है । महासमर-बंधनयह टकराहट मूल्यों और सिद्धान्तों की भी है और प्रकृति और प्रवृत्तियों की भी ।  इस खंड में पांडवों के लिए माया का बंधन टूट गया है । वे खुली आँखों से इस जीवन और सृष्टि का वास्तविक रूप देख सकते हैं । अब वे उस मोड़ पर आ खड़े हुए हैं, जहाँ वे स्वर्गारोहण भी कर सकते हैं और संसारारोहण भी महासमर-बंधन

महासमर-आनुषंगिक (खंड नौ)

महासमर का यह नवम और विशेष खंड है।  इसे आनुषंगिक कहा गया, क्योंकि इसमें महासमर की कथा नहीं,  उस कथा को समझने के सूत्र हैं ।   हम इसे महासमर का नेपथ्य भी कह सकते हैं । यह समहासमर-बंधनामग्री पहले 'जहाँमहासमर-बंधन है धर्म, वहीँ है जय' के रमहासमर-बंधनूप में प्रकाशित हुई थी । अनेकमहासमर-बंधन विद्वानों ने इसे महासमर की भूमिका के विषय में देखा है । अत: इसे महासमर के रूप में ही प्रकाशित किया गया है  ।  प्रश्न महाभारत की प्रासंगिकता का भी है । अत: उक्त विषय पर लिखा गया यह निबंध, जो ओस्लो (नार्वे में मार्च 2008 की एक महासमर-बंधनअंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में महासमर-बंधन पढ़ा गया था, इस खंड में इस आशा से सम्मिलित कर दिया गया है, कि पाठक इसके माध्यम से 'महासमर' को ही नहीं ' 'महाभारत' को भी सघन रूप से ग्रहण कर पाएंगे ।

चित्र दीर्घा


सन्दर्भ सुची

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।