महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण

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महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण रामविलास शर्मा द्वारा लिखित हिंदी की आलोचनात्मक कृति है। १५ अगस्त १९७६ को इस पुस्तक की भूमिका लिखी गई थी। हिंदी नवजागरण में द्विवेदी जी की भूमिका को अहम मानते हुए रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- "द्विवेदी जी की युगान्तकारी भूमिका यह है कि उन्होंने वैज्ञानिक ढंग से अनेक समस्याओं का विवेचन गहराई से किया।"[१] द्विवेदी की इस युगान्तकारी भूमिका को रेखांकित करते हुए मधुरेश मानते हैं कि इस पुस्तक में रामविलास शर्मा ने कई विवादास्पद तथा एकांगी स्थापनाएँ की हैं। जैसे- "राष्ट्रीय नवजागरण के बरक्स 'हिंदी नवजागरण' की उनकी स्थापना इसका एक उदाहरण है जो गुजरात, महाराष्ट्र और बंगाल के राष्ट्रीय नवजागरण से अलग करके संकीर्ण क्षेत्रीय दृष्टि से समस्या को देखने का ही परिणाम अधिक है।"[२]

अध्याय विभाजन

इस पुस्तक में भूमिका तथा तीन परिशिष्ट के अतिरिक्त पाँच अध्यायों का समावेश किया गया है-

  • भूमिका
  • अंग्रेज़ी राज में भारत
  • भारतीय विवेक-परंपरा और आधुनिक विज्ञान
  • भारत की भाषा-समस्या
  • साहित्य-समालोचना और रीतिवाद-विरोधी अभियान
  • महावीरप्रसाद द्विवेदी और सरस्वती
  • परिशिष्ट-१
  • परिशिष्ट-२
  • परिशिष्ट-३

विशेषताएँ

इस पुस्तक की अध्यायगत विशेषताओं को रेखांकित करते हुए रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- "पहले भाग में भारत और साम्राज्यवाद के सम्बन्ध में द्विवेदी जी ने और 'सरस्वती' के लेखकों ने जो कुछ कहा है, उसका विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है । दूसरे भाग में रूढ़िवाद के संघर्ष, वैज्ञानिक चेतना के प्रसार और प्राचीन दार्शनिक चिन्तन के मूल्याङ्कन का विवेचन है । तीसरे भाग में भाषा-समस्या को लेकर द्विवेदी जी ने जो कुछ लिखा है, उसकी छानबीन की गई है । चौथे भाग में साहित्य-सम्बन्धी आलोचना का परिचय दिया गया है तथा पाँचवें भाग में इस साहित्य की कुछ विशेषताओं की ओर संकेत मात्र किया गया है ।"[३]

संदर्भ

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