महात्मा रामचन्द्र वीर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(महात्मा रामचंद्र वीर से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज
चित्र:Mahatma Veer.jpg
महात्मा रामचंद्र वीर महाराज
जन्मतिथि: आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, १९०९
निधन: २४ अप्रैल, २००९
महान गोभक्त
जन्मस्थान: विराटनगर, राजस्थान

रामचन्द्र वीर (जन्म १९०९ - मृत्यु २००९) एक लेखक, कवि तथा वक्ता और धार्मिक नेता थे। उन्होंने 'विजय पताका', 'हमारी गोमाता', 'वीर रामायण' (महाकाव्य), 'हमारा स्वास्थ्य' जैसी कई पुस्तकें लिखीं। भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन, गोरक्षा तथा अन्य विविध आन्दोलनों में कई बार जेल गये। विराट नगर के पंचखंड पीठाधीश्वर आचार्य धर्मेन्द्र उनके पुत्र हैं।

जीवन

रामचन्द्र वीर का जन्म भूरामल व विरधी देवी के घर पुरातन तीर्थ विराटनगर (राजस्थान) में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा संवत १९६६ वि. (सन १९०९) को हुआ।

१४ वर्ष में ये स्वामी श्रद्धानंद के पास जा पहुँचे। १८ वर्ष की अल्पायु में भारत भूमि स्वतंत्रता, अखंडता और गोहत्या के पाप मूलोच्छेद के उद्देश्य से वीर ने अन्न और लवण का सर्वथा त्याग कर दिया।


१३ वर्ष की आयु में ही वीर का विवाह हुआ था जो बन पाया। अपने पिता और अनुयायियों के आग्रह पर वीर ने ३२ वर्ष की आयु में पुन विवाह किया। जब विवाह की बात चली तो वीर छपरा जेल में थे। विवाह हुआ तो पिता भूरामल जी भी जेल में थे और स्वयं वीर पर जयपुर राज्य की पुलिस का गिरफ़्तारी वारंट था। विवाह शिष्यों के द्वारा जन्मभूमि विराट नगर से सैंकड़ो मील दूर संपन्न हुआ। पत्नी अल्पकालीन सामीप्य के पश्चात् पिता के घर लौटी एवं वहीँ उन्होंने रामचन्द्र वीर के एकमात्र आत्मज आचार्य धर्मेन्द्र को जन्म दिया।

२४ अप्रैल २००९ ई० को विराटनगर (राजस्थान) में इनका निधन हुआ।

योगदान

युवावस्था में ये पंडित रामचन्द्र शर्मा के नाम से जाने जाते थे। इन्होंने कोलकाता और लाहौर के कांग्रेस अधिवेशनों में भाग लेकर स्वाधीनता के संग्राम में सक्रिय रहने का संकल्प लिया। सन 1932 में इन्होंने अजमेर के चीफ़ कमिश्नर की उपस्थिति में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध भाषण के लिये इन्हें ६ माह के लिए जेल भेज दिया गया। काठियावाड़ के मांगरोल के शासक मुहम्मद जहाँगीर ने राज्य में वे सन १९३५ में मांगरोल जा पहुंचे और गोहत्या पर प्रतिबन्ध की मांग को लेकर अनशन शुरू कर दिया, परिणामस्वरुप शासन को झुकना पड़ा और गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

१९३५ में कल्याण (मुंबई) के निकटवर्ती गाँव तीस के दुर्गा मंदिर में दी जाने वाली निरीह पशुबलि के विरुद्ध संघर्षरत हुए. जनजागरण व अनशन के कारण मंदिर के ट्रस्टियों ने पशुबलि रोकने की घोषणा कर दी। उन्होंने भुसावल, जबलपुर तथा अन्य अनेक नगरों में पहुँच कर कुछ देवालयों में दी जाने वाली पशुबलि को घोर शास्त्रविरोधी व अमानवीय करार देकर इस कलंक से मुक्ति दिलाई. स्वामी रामचन्द्र वीर ने 1000 से अधिक मंदिरों में धर्म के नाम पर होने वाली पशु-बलि को बंद कराया था। कलकत्ता के काली मंदिर पर होने वाली पशुबलि का विरोध करने पर आप पर प्राणघातक हमला भी हुआ। तब स्वयं महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने आकर आपका अनशन तुडवाया था।

महात्मा रामचन्द्र वीर और उनके पुत्र आचार्य धर्मेन्द्र

रामचंद्र वीर ने सन १९३२ से ही गोहत्या के विरुद्ध जनजागरण छेड़ दिया था। इन्होंने अनेक राज्यों में गोहत्या बंदी से सम्बन्धी कानून बनाये जाने को लेकर अनेक अनशन किये। सन १९६६ में सर्वदलीय गोरक्षा अभियान समिति ने दिल्ली में व्यापक जन-आन्दोलन चलाया।

गोरक्षा आन्दोलन के दौरान गोहत्या तथा गोभाक्तों के नरसंहार के विरुद्ध पुरी के शंकराचार्य स्वामी निरंजनदेव तीर्थ, संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी व वीर जी ने अनशन किये। तब वीर जी ने भी पूरे १६६ दिन का अनशन करके संसार भर में गोरक्षा की मांग पहुँचाने में सफलता प्राप्त की थी।[१]

हिन्दू हुतात्माओं का इतिहास, हमारी गोमाता, श्री रामकथामृत (महाकाव्य), हमारा स्वास्थ्य, वज्रांग वंदना समेत दर्जनों पुस्तके लिख कर साहित्य सेवा में योगदान दिया और लेखनी के माध्यम से जनजागरण किया। विजय पताका नामक पुस्तक अटल बिहारी वाजपेयी के लिये प्रेरणास्रोत बनी।[२][३] महात्मा रामचन्द्र वीर की अन्य प्रकाशित रचनाएँ हैं - वीर का विराट् आन्दोलन, वीररत्न मंजूषा, हिन्दू नारी, हमारी गौ माता, अमर हुतात्मा, विनाश के मार्ग (1945 में रचित), ज्वलंत ज्योति, भोजन और स्वास्थ्य

वीर जी को उनकी साहित्य, संस्कृतिधर्म की सेवा के उपलक्ष्य में १३ दिसम्बर १९९८ को कोलकाता के बड़ा बाज़ार लाइब्रेरी की ओर से "भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार राष्ट्र सेवा" पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। गोरक्षा पीठाधीश्वर सांसद अवधेशनाथ जी महाराज ने उन्हें शाल व एक लाख रुपया देकर सम्मानित किया था। आचार्य विष्णुकांत शास्त्री ने उन्हें जीवित हुतात्मा बताकर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया था।

पशुबली और गोहत्या की बंदी के लिए इन्होंने "पशुबलि निरोध समिति" और इसे बाद में "अ.भा. आदर्श हिन्दू संघ" में संगठित किया।

वीर स्वामी श्रद्धानन्द, पंडित मदन मोहन मालवीय| मदनमोहन मालवीय, विनायक दामोदर सावरकर, भाई परमानन्द जी, केशव बलिराम हेडगवार जी के प्रति श्रद्धा भाव रखते थे।

उनके पशुबलि विरोधी अभियान ने विश्वकवि गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के हृदय को द्रवित कर दिया, उन्होंने ने वीर जी के इस मानवीय भावनाओ से परिपूर्ण अभियान के समर्थन में कविता लिख कर उनकी प्रशंसा की:

महात्मा रामचंद्र वीर
प्रन्घत्खेर खड्गे करिते धिक्कार
हे महात्मा, प्राण दिते चाऊ अपनार
तोमर जनाई नमस्कार

हिन्दी अनुवाद- श्रीयुत रामचन्द्र शर्मा, हे महात्मा हत्यारों के निष्ठुर खड्गों को धिक्कारते हुए हिंसा के विरुद्ध तुमने अपने प्राणों की भेंट चढ़ा देने का निश्चय किया। तुम्हें प्रणाम !

संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवालकर उपाख्य श्री गुरुजी, भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार, लाला हरदेव सहाय, संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, स्वामी करपात्री जैसे लोग वीर जी के त्यागमय, तपस्यामय, गाय और हिन्दुओं की रक्षा के लिए किये गए संघर्ष के कारण उनके प्रति आदर भाव रखते थे।

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

बाहरी कड़ियाँ