महर्षि दुर्वासा
हिंदू धर्म में, दुर्वासा एक महर्षि थे, जो अत्रि और अनुसूया के पुत्र तथा महर्षि दत्तात्रेय और चंद्रदेव के भाई थे। दुर्वासा भगवान शिव के अवतार थे। दुर्वासा अपने क्रोध के कारण प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने शाप से कई लोगों की जिंदगी तबाह कर दी थी। इसलिए वे जहां कहीं जाते थे, लोग देवता की तरह उनका आदर करते थे। महाकवि कालिदास की महान रचना अभिज्ञान शाकुंतलम में उन्होंने शकुंतला को शाप दिया था कि उसका प्रेमी उसे भूल जाएगा जो सच साबित हुआ।
अंबरीश से भेंट
श्रीमद भागवत में अंबरीश के साथ दुर्वासा के झगड़े की कहानी बहुत ही प्रसिद्ध है। अंबरीश भगवान भगवान विष्णु जी का महान भक्त था और सच बोलता था। अंबरीश ने अपने राज्य की सुख, शांति और समृद्धि के लिए पूरी श्रद्धा से एक यज्ञ कराया। एकबार, अंबरीश ने एकादशी का व्रत किया। जिसमें एकादशी को व्रत की शुरूआत होगी और द्वादशी को व्रत तोड़ा जाएगा। व्रत तोड़ने के बाद साधुजनों को भोजन कराना होगा। द्वादशी को जब व्रत तोड़ना का समय करीब आया तो अंबरीश के घर महर्षि दुर्वासा पधारे। अंबरीश ने महर्षि दुर्वासा का सादर स्वागत किया। अंबरीश ने उन्होंने भोजन करने के लिए आग्रह किया। महर्षि दुर्वासा ने अंबरीश का आग्रह स्वीकार कर लिया और कहा कि जब तक वो नदी से स्नान करके नहीं आते तब तक वो व्रत नहीं तोड़ें। काफी समय बीत गया, लेकिन महर्षि दुर्वासा नहीं आए। अंबरीश को व्रत तोड़ना था। गुरु वरिष्ठ के आग्रह पर अंबरीश ने तुलसी के दल से उपवास तोड़ा और ऋषि की प्रतीक्षा करने लगे। महर्षि दुर्वासा को लगा की अंबरीश ने उनके आये बिना व्रत तोड़कर उनका अपमान किया। गुस्साये दुर्वासा ने अपने जटा से एक राक्षस पैदा किया और उसे अंबरीश को मारने को कहा, उसी समय भगवान नारायण के सुदर्शन चक्र ने राक्षस का वध कर दिया और अंबरीश की रक्षा की। इसके बाद सुदर्शन चक्र दुर्वासा का पीछा करने लगा। भय से कातर महर्षि दुर्वासा ने पहले ब्रह्मा जी और फिर शिव जी के पास अपनी रक्षा के लिए गया। दोनों ने दुर्वासा को बचाने में अपनी असमर्थता जताई और कहा कि वो अंबरीश से क्षमा मांगे। महर्षि दुर्वासा ने ऐसा ही किया। अंबरीश ने भगवान विष्णु को याद किया और उनसे दुर्वासा की रक्षा के लिए प्रार्थना की। हालांकि शिव पुराण में कहानी थोड़ी भिन्न है। शिव पुराण के अनुसार, अंबरीश ने दुर्वासा को भोजन कराने से पहले व्रत तोडकर महर्षि दुर्वासा का अपमान किया। इसलिए महर्षि दुर्वासा ने अंबरीश को मारने का निर्णय कर लिया। अंबरीश को बचाने के लिए सुदर्शन चक्र उत्पन्न हुआ। लेकिन महर्षि दुर्वासा के रूप में साक्षात शिव को पाकर वह रुक गया। उसी समय आकाशवाणी हुई, नंदी ने कहा, कि अंबरीश की परीक्षा लेने स्वयं शिव आए हैं इसलिए वह उनसे माफी मांग ले। अंबरीश ने ऐसा ही किया और महर्षि दुर्वासा ने उसे आशीर्वाद दिया।