मरुस्थल

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मरुस्थल या रेगिस्तान ऐसे भौगोलिक क्षेत्रों को कहा जाता है जहां जलपात (वर्षा तथा हिमपात का योग) अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा काफी कम होती है। प्रायः (गलती से) रेतीले रेगिस्तानी मैदानों को मरुस्थल कहा जाता है जोकि गलत है। यह बात और है कि भारत में सबसे कम वर्षा वाला क्षेत्र (थार) एक रेतीला मैदान है। मरूस्थल (कम वर्षा वाला क्षेत्र) का रेतीला होना आवश्यक नहीं। मरुस्थल का गर्म होना भी आवश्यक नहीं है। अंटार्कटिक, जोकि बर्फ से ढका प्रदेश है, विश्व का सबसे बड़ा मरुस्थल है ! विश्व के अन्य देशों में कई ऐसे मरुस्थल हैं जो रेतीले नहीं है।

प्रकार

मरुस्थलों को वर्षा, औसत तापमान, साल में बिना वर्षा (या हिमपात) के दिनों की संख्या इत्यादि के आधार पर बांटा जा सकता है। भारत का थार मरुस्थल एक ऊष्ण कटिबंधीय मरुस्थल है जिसके कारण ही यह रेतीला भी है।

जलपात की दृष्टि से

वर्षा तथा हिमपात के कुल को जलपात कहते हैं। यदि किसी क्षेत्र का जलपात 200 मिलिमीटर से भी कम हो तो वह एक प्रकार का प्रदेश है। इसी प्रकार 250-500 मिलिमीटर तक के क्षेत्र को अलग वर्ग में रखा जा सकता है। इसी प्रकार अन्य क्षेत्र भी वर्गीकृत किए जा सकते हैं।

तापमान की दृष्टि से

इन क्षेत्रों को तापमान की दृष्टि से भी वर्गीकृत किया जा सकता है।

वृष्टिछाया क्षेत्र

जब एक विशाल पर्वत वर्षा के बादलों को आगे की दिशा में बढ़ने में बाधा उत्पन्न करता है तब उसके आगे का प्रदेश वृष्टिहीन हो जाता है और इसे वृष्टिछाया क्षेत्र कहते हैं।

पर्वतीय क्षेत्र

अधिक ऊंचे पर्वतों (जैसे कि हिमालय) पर वर्षा नहीं होती इसलिए इन्हें भी मरुस्थल का श्रेणी में रखा जाता है।

सामान्य दशा

मरुस्थल का सामान्य गुण तो यह है कि इसमें वर्षा कम होती है। ये क्षेत्र प्रायः विरल आबादी, नगण्य वनस्पति, पतो की जगह काटें, जल के स्त्रोतों की कमी, जलापूर्ति से अधिक वाष्पीकरण हैं। विश्व के केवल 20% मरुस्थल रेतीले हैं। रेत प्रायः परतों में बिछी होती है। रेतीले क्षेत्रों के दैनिक तापमान में बहुत विविधता होती है। लगभग सभी मरुस्थल समतल हैं। कुछ में टीले भी बनते है परंतु रेत के होने के साथ वो बनते व नष्ट होते रहते है ।

प्रसिद्ध मरुस्थल

मुख्य लेख - विश्व के मरुस्थल