भैरोंघाटी, उत्तराखण्ड
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गंगोत्री हिमानी (ग्लेशियर), इस क्षेत्र में सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल | |
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देश | साँचा:flag/core |
प्रान्त | उत्तराखण्ड |
ज़िला | उत्तरकाशी ज़िला |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी, गढ़वाली |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
भैरोंघाटी (Bhaironghati) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित एक गाँव है। यहाँ जाह्नवी नदी का भागीरथी नदी में संगमस्थल है। भैरोंघाटी धाराली से 16 किमी तथा गंगोत्री से 9 किमी दूर है और राष्ट्रीय राजमार्ग 34 (उत्तरकाशी-गंगोत्री राजमार्ग) यहाँ से गुज़रता है।[१][२][३]
परिचय
भैरों घाटी, जध जाह्नवी गंगा तथा भागीरथी के संगम पर स्थित है। यहां तेज बहाव से भागीरथी गहरी घाटियों में बहती है, जिसकी आवाज कानों में गर्जती है। वर्ष 1985 से पहले जब संसार के सर्वोच्च जाधगंगा पर झूला पुल सहित गंगोत्री तक मोटर गाड़ियों के लिये सड़क का निर्माण नहीं हुआ था, तीर्थयात्री लंका से भैरों घाटी तक घने देवदारों के बीच पैदल आते थे और फिर गंगोत्री जाते थे। भैरों घाटी हिमालय का एक मनोरम दर्शन कराता है, जहां से आप भृगु पर्वत श्रृंखला, सुदर्शन, मातृ तथा चीड़वासा चोटियों के दर्शन कर सकते हैं। गंगोत्री मंदिर तक पहुंचने से पहले इस प्राचीन भैरव नाथ मंदिर का दर्शन अवश्य करना चाहिये।
इतिहास
राजा विलसन द्वारा निर्मित जाह्नवी नदी पर एक रस्सी-पुल हुआ करता था जो विश्व का सर्वोच्च झूला-पुल था, जिसपर से आप बहुत नीचे नदी को भ्रमित करने वाला दृश्य निहार सकते थे। अब यहां दो कगारों से लटकते हुए कुछ रस्सियों के टुकड़े ही बचे हैं। परंतु ई.टी. एटकिंसन ने वर्ष 1882 के अपने द हिमालयन गजेटियर (भाग -1, वोल्युम- 3) में बताया है कि यहां एक झूला-पुल था, जिसे “वनाधिकारी श्री. ओ. कैलाघन द्वारा जाधगंगा पर एक हल्के लोहे के पुल का निर्माण कर बदल दिया गया।” उस 380 फीट लंबे तथा 3 फीट चौड़े पुल को तीर्थयात्री रेंगते हुए पार करते थे।
जाह्नवी के स्रोत का प्रथम खोजकर्त्ता हॉगसन भैरों घाटी के प्रभावशाली सौंदर्य को देखता रह गया! विशाल चट्टानों, खड़ी दीवारें, ऊंचे देवदार के पेड़ तथा कोलाहली भागीरथी सबों को निहारता रहा। उसने इस जगह को “सबसे भयानक तथा डरावनी जगह बताया है, जिसके ऊपर एक बड़ा चट्टान आगे तक बढ़ा हुआ है।" प्रसिद्ध जर्मन पर्वतारोही हेनरिक हैरियर भैरों घाटी से जाह्नवी के किनारे-किनारे तिब्बत गया था। तिब्बत में वह दलाई लामा का शिक्षक बन गया तथा उसने अपनी कृति ‘तिब्बत में सात वर्ष’ में अपने अनुभवों को बताया। हिमालयन गजेटियर में उदधृत फ्रेजर के अनुसार पुल पार करने तथा देवदार के घने जंगलों से गुजरने के बाद आप “एक छोटे मंदिर भैरों के समतल सफेद भवन पहुंचते हैं, जिसे अमर सिंह गोरखाली के आदेश पर बनाया गया तथा जिसे सड़क की मरम्मत तथा गंगोत्री की पूजा के लिये स्थान निर्मित करने के लिये धन दिया।”
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ "Uttarakhand: Land and People," Sharad Singh Negi, MD Publications, 1995
- ↑ "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994