भूटानी शरणार्थी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

भूटानी शरणार्थी नेपाली मूल के हिन्दू धर्मावलम्बी लोग है जिन्हे १९९० के दशक में भूटान से निकाला गया वा भूटानी नीति के कारण से भूटान छोड़ने के लिए बाध्य हुए थे।

इतिहास

भूटान मे दो प्रकार के नेपाली मूल के लोग हैं- एक जो पहले से भूटान मे रहते थे, दूसरा जो १९५० के दशक में भारत से भूटान में रहने लगे। भूटानी महायान बौद्ध सम्प्रदाय, जो तिब्बत से भूटान में फैला, के विकास में नेपाली राजकुमारी भृकुटी और नेपाली कलाकार अरनिको का योगदान है। अतः, नेपाली कलाकार तथा शिल्पकार नेपाल के मध्ययुग से ही भूटान में कला, स्तूप निर्माण आदि के लिए जाते थे। भूटान में १९वीं शताब्दी से नेपाली मूल के लोग रहने का इतिहास है।

भारत के उत्तर-पूर्वी ७ राज्यों में भी नेपाली मूल के लोग भारत के स्वतंत्रता से पहले से रहते आ रहे थे। परन्तु इन राज्यों पर स्थानीय जातियों को ज्यादा अधिकार देने वाली व्यवस्था के निर्माण के बाद इन जगहों में रहने वाले नेपालियों का जीवन कठिन हो गया। अतः, १९५० के दशक में यह लोग भूटान के दक्षिणी भाग में तथा नेपाल, दार्जीलिंग, सिक्किम आदि जगहों पर बसने लगे।

१९५० तक इन स्थानांतरित जातियों ने नेपाल तथा भूटान में नागरिकता भी प्राप्त कर लिया। मध्य १९८० दशक में लिया गया भूटानी जनसंख्या तथ्यांक में देखा गया कि नेपाली मूल के लोगों की जनसंख्या ४० प्रतिशत हो गया था और भूटान के ड्रुक समुदाय की जनसंख्या वृद्धि नेपाली मूल के जनसंख्या वृद्धि से कम था। यह तथ्यांक के सम्प्रेषण के कुछ समय बाद भूटानी सरकार ने नेपाली समुदाय के भूटानी संस्कृति मे समाहित करने का प्रयास किया। इस प्रयास में विद्यालयौं में से नेपाली भाषा का पाठन रोक दिया गया; लोगों को दौरा, धोती, साडी, कुर्ता आदि के बजाय भूटानी राष्ट्रिय पोशाक पहनने के लिए जोड दिया गया। इन नयें नीतियौं को भारत से स्थानांतरीत नेपालीयौं और भूटान में पहले से ही अवस्थित नेपाली मूल के लोगों ने विरोध किया। इस विरोध का नेतृत्त्व भूटान के नरेश के सल्लाहकार टेकनाथ रिजाल नें किया। नेपाली भाषा, हिंदू धर्म, वैदिक संस्कार पर आधारित नेपाली संस्कृति को भी भूटानी मूलप्रवाह में समावेश करने का माग से शुरु हुवा विरोध बाद में प्रजातंत्र के स्थापना के माग तक पहुंच गया। इस विंदू पर भूटानी राजशाही नें इन आंदोलनकारीयौं को देशद्रोही के आरोप में पकड लिया। साथ ही में दक्षिणी भूटान में स्थित भारत से आकर स्थापित हुए नेपाली मूल के लोगों का नागरिकता फर्जी करार दिया। साथ ही मे नेपाली मूल के आंदोलनकारीयौं को भी गैह्र-नागरिक घोषित करके देश निकाला कर दिया।

दक्षिणी भूटान में नेपाली मूल के लोगों पर हुए दमन तथा कारवाही के डर से भी कुछ लोग भूटान छोडकर भाग गए।

भारत और भूटान के मैत्री संबन्ध के कारण इन शरणार्थीयौं को, जिनमे से बहुत आंदोलन में सरिक थे, भारत मे शरण देना कठिन हो गया। अतः, इन मे से ज्यादातर शरणार्थी नेपाल के झापा जिला में शरणार्थी शिविर पर रहने लगे।

नए विकास

नेपाल राष्ट्र यह समस्या को भूटानी आन्तरिक समस्या के रूप में लेना चाहता था क्यौंकी यह समस्या नेपाली नागरिक तथा नेपाल राष्ट्र से नहीं जुडा था। परन्तु एक लाख शरणार्थीयौं की पालन-पोषन करना नेपाल के लिए कठिन होने लगा। साथ मे, नेपाली मूल, हिंदू संस्कृति (उस समय में नेपाल एक मात्र हिंदू राष्ट्र था) आदि से संबन्धित (प्रेसर) बढने के बाद १९९९ में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री कृष्णप्रसाद भट्टराई नें संयुक्त राष्ट्र संघ को इस समस्या के बारे में सूचीत किया।

वर्षौं तक शरणार्थी के जीवन गुजारने के लिए मजबुर हुए इन शरणार्थीयौं ने माओवादीयौं के प्रभाव से भूटानी कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का स्थापना किया है जो भूटान के राजशाही को समाप्त कर एक कम्युनिस्ट गणतन्त्र भूटान का स्थापना करना चाहते है।

अन्तराष्ट्रिय समुदायौं ने लम्बे छानबीन के बाद तथा प्रतिहिंसा के सम्भावना को मध्यनजर करके इन शरणार्थीयौं को संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, अस्ट्रेलिया तथा अन्य युरोपी राष्ट्र में ले जाने का प्रस्ताव ले आए। इस प्रस्ताव पर भूटानी शरणार्थीयौं का मिश्रित प्रतिकृया देखा गया है। कुछ लोग अब कोही भी राष्ट्र में नागरिक बन कर रहना चाहते है तो कुछ लोग अपना बतन में ही लौटना चाहते है।

देखें