भारतीय कॉमिक्स

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भारतीय कॉमिक्स स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। अथवा भारतीय चित्रकथा[१] (अंग्रेजी; Indian comics) वह कॉमिक्स पुस्तकें एवं ग्राफिक उपन्यास जिनका सांस्कृतिक संबंध भारत द्वारा प्रकाशन से जुड़ा हो जिन्हें अंग्रेज़ी अथवा विभिन्न भारतीय भाषाओं में जारी करता है।

भारत में कॉमिक्स पठन एवं उसके प्रसंगों को लेकर एक लंबी परंपरा जुड़ी हुई हैं जहाँ व्यापक पैमाने पर दशकों से लोककथाएं एवं पौराणिक गाथाओं को बाल चित्रकथाओं के शक्ल में पहुँचाया जा रहा है।[२] भारतीय कॉमिक्स बहुतायत संख्या में देश में प्रकाशित होती है। लगभग बीते १९८० से १९९० के दशक तक, जब कॉमिक्स उद्योग का दौर काफी शीर्ष पर था तब उस वक्त की कई लोकप्रिय कॉमिक्स की ५००,००० लाख से अधिक प्रतियाँ एक हफ्तें में बिक जाती थी लेकिन समय गुजरने के बाद अब बमुश्किल ५०,००० हजार प्रतियाँ ही बिक पाती हैं।[३] कभी भारतीय कॉमिक्स उद्योग का रहा स्वर्णकालिक दौर, आज की बढ़ती सैटेलाइट टेलीविजन (विशेषकर बच्चों पर बनने वाले चैनलों) एवं विडियो गेम उद्योगों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा से आज पतन के दौर में संघर्ष कर रहा है।[४] मगर आज भी विगत तीन दशकों से [[डायमंड कॉमिक्स], राज कॉमिक्स, टिंकल एवं अमर चित्र कथा अपनी व्यापक स्तर के वितर्क नेटवर्क के जरीए देश भर के हिस्से में अपनी पैठ जमाएं है और विभिन्न भाषाओं में उनके लाखों-हजारों की तादाद के नन्हें पाठक पसंद करते हैं।[५] भारत के प्रसिद्ध कॉमिक्स रचियता जिनमें आबिद सुरती, अंकल पैई, प्राण कुमार शर्मा एवं अनुपम सिन्हा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है उनके बनाये किरदार क्रमशः बहादुर एवं डिटेक्टिव मुंछवाला; सुप्पांदी तथा शिकारी शंभु; चाचा चौधरी एवं बिल्लू और नागराज व सुपर कमांडो ध्रुव काफी लोकप्रिय रहें हैं।[१] [३]

अनंत पैई, जिन्हें लोग स्नेह से "अंकल पैई" के नाम से संबोधित करते हैं, उनके सौजन्य से १९६० के दशक में भारतीय कॉमिक्स उद्योग की नींव उन्होंने प्राचीन हिंदू पौराणिक गाथाओं को ध्यान रखते हुए अमर चित्र कथा का प्रकाशन शुरू किया।[६]

प्रकाशन का इतिहास

भारतीय कॉमिक्स उद्योग का आरंभ १९६० के मध्य ही हुआ जब द टाइम्स ऑफ इंडिया के शीर्ष अखबार ने इंद्रजाल कॉमिक्स का प्रमोचन कराया। हालाँकि इंडस्ट्री द्वारा भारत में प्रस्तुत किया गया ज्यादातर विषय पश्चिम वर्ग के थे। वहीं गत १९६० के दौर तक कॉमिक्स का लुत्फ संभ्रांत परिवार के बच्चे ही ले पाते थे। लेकिन १९९० के दशक तक इन सभी ने भारतीय बाजार में खुद को स्थापित कर लिया था।[4] मोटे तौर पर भारतीय काॅकॉमिक्स क्रम-विकास को चार चरणों पर बाँटा जा सकता है। लगभग १९५० के दौरान में पश्चिम जगत के सिंडीकेट प्रकाशन अपने स्ट्रिप कॉमिक्स द फ़ैन्टम, मैण्ड्रेक, फ्लैश गाॅर्डन, रिप किर्बी को भारतीय भाषा में अनुवादित कर पेश किया गया। कॉमिक्स की इस कामयाबी ने लगभग कई प्रकाशकों को इन शीर्षकों को अनुसरण करने पर मजबूर कर दिया। दूसरा चरण विगत १९६० का दशक के आखिर में अमर चित्र कथा (जिसका लगभग तात्पर्य है "अविस्मरणीय चित्रों की कहानियों") आई, जो पूर्ण तौर भारतीय विषयों को लेकर समर्थित थी।[1] १९७० के दशक विभिन्न स्वदेशी कॉमिक्स पश्चिमी सुपरहीरो कॉमिक्स प्रतिद्वंद्विता देखते हुए उतारा गया।[4] ८० के दशक तक में जैसे सुपरहीरो काॅमिक्सों की लहर सी आ गई, जिसके साथ रचनाकारों एवं प्रकाशकों ने पश्चिम वर्ग के सुपरहीरो पीढ़ी की सफलता के लाभ को लेकर एक नई आशा बांधी।[1]

हालाँकि, पहले भारतीय सुपरहीरो बैतुल द ग्रेट की रचना, १९६० के दशक के दरम्यान हो चुकी थी।[3] सन् १९८० के आस-पास, हीरोज ऑफ फेथ नाम की कॉमिक्स की ५.५ करोड़ प्रतियाँ भारत में बिकने का कीर्तिमान है।[4] दर्जनों प्रकाशकों ने इसी मंथन के बीच हर माह सैकड़ों की संख्या में कॉमिक्स कराते, लेकिन ९० के दशक में इस व्यवसाय का स्तर गिरने लगा जब भारत में लोग केबल टेलीविजन, इंटरनेट और दूसरे साधनों के जरीए मनोरंजन जुटाने लगे थे। हालाँकि, अन्य प्रकाशक जैसे राज कॉमिक्स वं डायमंड कॉमिक्स तथा अमर चित्र कथा (सुप्पांदी जैसे किरदार[4]) अपने पाठकों के मध्य फलते-फुलते रहें। इस मंदी के दौर में भी, नई प्रकाशन कंपनियों जैसे वर्जिन कॉमिक्स फेनिल कॉमिक्स ग्रीन गोल्ड. जुनियर डायमंड आदि ने विगत वर्ष पहले बाजार में पैठ जमाने की कोशिश की।[1] वहीं कॉमिक्स प्रकाशकों को भी वर्तमान प्रतिस्पर्धा के दौर में नई रचनाओं को जन्म ना दे पाने का भी आलोचकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया सहनी पड़ी।[4]

वहीं २००० की शुरुआत में वेब कॉमिक्स भारत में एक लोकप्रिय माध्यम साबित हुआ। भारतीय वेब कॉमिक्स बड़ी संख्या में पाठकों के बीच मुफ्त मनोरंजन का साधन बना है।[७] और लगातार देश की युवा वर्ग के मध्य राजनीतिक एवं नारीवाद मुद्दों के बाद अपनी सामाजिक जागरूकता बढ़ा रहें हैं। लोगों में वेब कॉमिक्स पहुँच बनाने में विभिन्न सोशल मिडिया भी अपना योगदान दे रही है।[८]

इस तरह भारत ने पहली बार फरवरी २०११ में काॅन-कॉमिक्स की मेजबानी की।[९] साल २०१२ के अनुमान अनुसार, भारतीय काॅमिक्स प्रकाशक उद्योग का कारोबार अब $१०० करोड़ डाॅलर पार कर चुका है।[१०]

वहीं भारत में मैंगा तथा एनिमे की बढ़ती लोकप्रियता देखते हुए उन्हीं जापानी मैंगा प्रेरित काॅमिकॉमिक्सकों के जरिए, हिंदू पौराणिक गाथाओं को पौराणिक काॅमिकॉमिक्सप में भारत, सिंगापुर, मलेशिया एवं युरोप में बिक्री जारी कर रहा है।[११]

प्रमुख भारतीय कॉमिक्स

वार्षिक स्पर्धाएँ

काॅमिक कोन इंडिया भारतीय कॉमिक्स उत्सव नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला भारतीय कॉमिक्स फैंडम अवार्ड्स