भारतीय और पाश्चात्य ज्योतिष

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भारतीय ज्योतिष पद्धति निरयण (Indian Nirayan Astrology) के सिद्धांत को मानती है। जबकि पाश्चात्य ज्योतिष सायन (Sayan Astrology) पर आधारित है। भविष्य को जानने की चाहत सभी मनुष्य में रहती है चाहे वह भारत का हो अथवा पश्चिमी देशों में रहना वाला हो। भविष्य जानने का तरीका भले ही अलग है परंतु ग्रह और ज्योतिष सिद्धांत को वह भी स्वीकार करते हैं एवं कई स्थानों पर दोनों में समानताएं भी हैं।

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भारतीय और पाश्चात्य ज्योतिष के परिचय तथा तत्व

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ज्योतिष परिचय

आकाश मंडल में ग्रहों की चाल और गति का मानव जीवन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव का अध्ययन जिस विधि से किया जाता है उसे ज्योतिष कहते हैं। भारतीय ज्योतिष वेद का एक भाग है। वेद के छ अंगों में इसे आंख यानी नेत्र कहा गया है जो भूत, भविष्य और वर्तमान को देखने की क्षमता रखता है। वेदों में ज्योतिष को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वैदिक पद्धति पर आधारित भारतीय ज्योतिष फल प्राप्ति के विषय में जानकारी देता है साथ ही अशुभ फलों और प्रभावो से बचाव का मार्ग भी देता है लेकिन पाश्चात्य ज्योतिष सिर्फ दृष्ट फलों की बात करता है। दोनों समान रूप से अवैज्ञानिक है।

भारतीय और पाश्चात्य ज्योतिष के तत्व

आकाश में चमकते हुए पिण्डों को ज्योतिः कहते हैं तथा उनको आधार मानकर प्रणीत किया गया शास्त्र ज्योतिष शास्त्र कहलाता है। वैदिककाल से ही आकाश और आकाश में विचरण करने वाले ये पिण्ड मानवों की जिज्ञासा का विषय बने हुए है और प्रकृति पर इनका प्रभाव सदा से ही उत्सुक्ता व अनुसंधान के लिए उन्हे प्रेरित करता रहा। भारतीय पद्धति निरयण (Indian Nirayan Astrology) के सिद्धांत को मानता है जबकि पाश्चात्य ज्योतिष सायन (Sayan Astrology) पर आधारित है। भारतीय ज्योतिष पद्धति (Vedic Astrology) में अदृष्ट फल का विचार अदृष्ट निरयण मेषादि ग्रहों या निरयण पद्धति (Nirayan Astrololgy System) और ग्रह-वेध, ग्रहण सहित दृष्ट फल का विचार दृष्ट सयन मेषादि ग्रहों के आधार पर होता है। वेदों में कर्म के आधार पर तीन प्रकार के फलों का वर्णन किया गया है इसे ही अदृष्ट फल कहा गया है। इन अदृष्ट फलों के विषय में पाश्चात्य ज्योतिष खामोश रहता है क्योंकि पाश्चात्य ज्योतिष में अदृष्ट फलों की परिकल्पना ही नहीं है। यहां दृष्ट फल का आंकलन सर्वेक्षण पद्धति के आधार पर होता है।

वेदों मे ज्योतिष के तीन स्कंध बताये गये हैं- सिद्धांत स्कन्ध, संहिता स्कन्ध और होरा स्कन्ध। व्यक्ति के जीवन पर ग्रहों का फल फल जानने के लिए जिस जन्म कुण्डली का निर्माण होता है उसका आधार होरा स्कन्ध है, यानी जन्म कुण्डली का निर्माण होरा स्कन्ध के आधार पर होता है। सिद्धांत स्कन्ध सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय काल के दौरान ग्रहों की स्थिति एवं काल गणना के काम आता है। संहिता स्कन्ध के आधार पर ग्रह, नक्षत्रों एवं आपदाओं, वास्तु विद्या, मुहूर्त, प्रश्न ज्योतिष के विषय में गणना किया जाता है।

भारतीय ज्योतिष की मान्यता के अनुसार व्यक्ति का जन्म और भाग्य का आधार कर्म होता है यानी भारतीय ज्योतिष कर्मफल और पुनर्जन्म को आधार मानता है। पाश्चात्य ज्योतिष में पुनर्जन्म और कर्मवाद की मान्यता नहीं होने से सभी प्रकार के फलों का विचार सायन पद्धति से होता है। सायन पद्धति और निरयन पद्धति में यह अंतर है कि जहां निरयन में कोई ग्रह किसी राशि से ७ अंश पर होता है वहीं सायन पद्धति में वही ग्रह उससे दूसरी राशि के १ अंश पर होता है।

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ हिन्दी ज्योतिष साँचा:navbox