भगोरिया
भगोरिया पर्व नहीं भौंगर्या हाट है, आदिवासी भाषा का मूल शब्द भौंगर्यु है जिसे बहुवचन में भौंगर्या कहते हैं।
: राकेश देवडे़ बिरसावादी
भौंगर्या हाट क्या है ?
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"'केसेवणिया फूल🌺बयड़े रूलाये वो, आय गुया रे दादा भौंगर्या ने दहाड़ा"
आदिवासी भारत भूमि का इंडिजिनियस एबोरिजन आदिवासी गणसमूह है जो अरावली विंध्याचल सतपुड़ा सह्याद्री पर्वत माला और चंबल बनास लूनी साबरमती माही नर्मदा ताप्ती गोदावरी नदियों की उत्पत्ति काल से भारत की मूल मिट्टी पानी आबोहवा में जन्मा उपजा मूलबीज मूल वंश है।भोले भाले प्राकृतिक जीवनशैली के आदिवासी समाज मे आदिम परंपरा के कई अनगिनत प्राकृतिक उत्सव तथा त्यौहार मनाये जाते हैं।इनमे सबसे महत्वपूर्ण भौंगर्या हाट होता है।जब पुरा आदिवासी समाज खरिफ रबी की फसल काटकर खेतीबाड़ी के कामो से निवृत्त हो जाता है , केसवणिया के फूल अपनी सुंदरता से प्रकृति को सुशोभित करते है तब मार्च महीने में होली उत्सव से पहले अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सज धज कर उत्साह के साथ पूरे कुटुबं परिवार सगाजनो के साथ ढोल मांदल पर पारंपरिक आदिवासी लोक नृत्य करते हुए
पैदल या बैलगाड़ी मे बैठकर जाते है व नजदीक एक गाँव या कस्बे मे एक हाट (बाजार) मे इकट्ठा होते हैं जिसे भौंगर्या हाट कहा जाता है। आदिवासी भाषा का मूल शब्द भौंगर्यु हाट है जिसे बहुवचन मे भौंगर्या हाट कहते हैं।यह एक विशेष दिन होता है ।भौंगर्या का शाब्दिक अर्थ-इकठ्ठे होकर हल्ला-गुल्ला (आदिवासी में) है।बच्चों के इकठ्ठे होकर हल्ला गुल्ला करने पर आदिवासी भाषा मे बुजुर्ग बच्चों को डांटते हुए कहते है - 'अथा जाऊं काम वाम करू, या काई भौंगर्यू भर रया।' कई सालों पहले प्रकृति की गोद मे पहाड़ों जंगलो मे बसे आदिवासी क्षेत्रों में संचार तथा यातायात के साधन उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में दूर दूर रहने वाले कुटुबं परिवार के दोस्त रिश्तेदार कई महिनो तक नहीं मिल पाते थे, ऐसी स्थिति में इस भौंगर्या हाट के माध्यम से आपस मे एक दुसरे से मिलकर खुश हो जाते हैं।इस विशेष हाट मे सभी आदिवासी सगाजन सजधजकर आते है ।बहुत अधिक संख्या होने से मेला जैसे भर जाता है। मेले रूपी हाट को उत्सव के रूप मे मनाते है और दिन भर मांदल की थाप , बांसुरी की धुन पर आदिवासी लोकनृत्य करके खुशियाँ मनाते है। ढलती शाम को वापस नाचते गाते घर लौटते है। देश-दुनिया मे प्रख्यात आदिवासी संस्कृति,परम्परा की झलक इस विशाल हाट-बाजार में देखने को मिलती है जहा ढोल-मांदल,पावली(
बांसुरी)जैसे वाद्य यंत्र के साथ देशी महुआ की दारू , प्राकृतिक पेय ताड़ी की छाक के साथ सम्पूर्ण आदिवासी समाज एक रंग में रंगता हुआ दिखाई देता है । जहां सारे झगड़े गीले-शिकवे दूर कर एक दुसरे से मिलकर अभिवादन स्वरूप जय जोहार , आपकी जय, जय आदिवासी, जय सेवा ,राम रामी, करते है। हालचाल पूछते हुए कहते है वारला छै की?पुर्या पारी कसला? ,( मतलब हालचाल जानना) जहाँ उनकी एकता भी नजर आती है।यह आदिवासी समाज का कोई त्यौहार न होकर केवल और केवल हाट बाजार मात्र है । जिसमे प्राकृतिक रीति भांति मे लगने वाली आवश्यक घरेलू वस्तुए मूंगड़ा गुड़ दाली कांकण खजूर माजम आदि खरिदते है।
“मारू भोंगर्यू आपदे“: भौंगर्या हाट के बाद फाग मांगने की परंपरा आदिवासी समाज में हैं।बकरे की खाल से ढाक बनाकर उसे बजाते हुए उस पर लोकनृत्य करते हुए फाग मांगा जाता है।अलग-अलग गांव का दल बनता हैं जिसे “गेहर खेलना“ बोलते हैं। यह गेहर, तीन दिन, पांच दिन या सात दिन अलग-अलग गांवों में जाकर फाग मांगती हैं।इसमे अलग-अलग वेष-भूषा में लोग प्रत्येक घर के सामने ढोल-मांदल के साथ में नृत्य करते हैं और उसके बाद फाग के रूप में अनाज दाल प्राप्त करते हैं तथा इस गेहर में राहवी, काली व बुडला होते हैं। वह अपनी भाषा में बोलते हैं कि “मारू भोंगर्यू आपदे“ अर्थात मेरा भोंगर्या दे दो।
आदिवासी गीत संगीत मे भौंगर्या
भौंगर्या हाट के ऊपर कई गीतकारों ने गीत लिखे हैं जैसे - काई रे म्हारा भाया, भौंगर्या ना दहाणा आई ग्या रे, अर्थ एक बहन अपने भाई से उत्साह पूर्वक यह कहती है - भैया भौंगर्या के दिन आ गए हैं। "भौंगर्या मा आवी वो जुवानय , चाल म्हारा साथ धोरले म्हारू हाथ तुसे काजै भौंगर्यू देखाणु वो " अर्थ एक नवविवाहित पति अपनी पत्नी से कहता है भौंगर्या मे आई है यहाँ भीड़ बहुत है, तुम मेरा हाथ पकड़ कर मेरे साथ साथ चलो। केसवणिया फूल बयणे रूलाये रे, आई गया रे दादा भौंगर्या ने दहाणे। अर्थ केसवणिया के फूल पहाड़ पर खिलकर प्रकृति को सुशोभित कर रहे हैं,दादा भौंगर्या के दिन आ गयें।
भोंगर्या हाट को लेकर समाज में भ्रम
⏩भोंगर्या हॉट को लेकर समाज में कई प्रकार के भ्रम फैले हुए हैं । वह चाहे आदिवासी समाज की बात हो या गैर आदिवासी समाज की बात हो कोई भी व्यक्ति इसके तहत तक जाना नहीं चाहता है । ⏩गैर आदिवासी समाज के लिये यह एक ऐसा बाजार हैं जिसमें साल भर में जितनी आय नहीं होती हैं,उससे कई गुना अधिक आय होती हैं एवं मनोरंजन का साधन है तो दूसरी तरफ आदिवासी समाज के लिए भोंगर्या हाट का अवसर पर जहरिली शराब, सड़ी गली सामग्री ,महंगे वस्त्र आदि अनावश्यक चीजों की खरीदी मे साल भर मे जितना खर्च नहीं करता है उससे अधिक खर्च कर देता । ⏩हमारे कुछ साथी जो जागरूक हैं किंतु हम क्या कर रहे हैं इस पर चिंतन नहीं करते हैं और इसे ही बढ़ावा देने में लगे हुए । ⏩ जबकि भोंगर्या हाट होलिका पूजन की सामग्री खरीदने का हॉट है । जिसमें सभी समाज के लोग भी होलिका पूजन की सामग्री खरीदते हैं। ⏩ इसे कुछ समय पहले तक आदिवासियों के वैलेंटाइन डे, प्रणय पर्व आदि नाम देकर दुष्प्रचारित किया जा रहा था। किंतु पिछले 10-12 वर्षों से समाज के जागरूक कार्यकर्ताओं द्वारा इस दुष्प्रचार के खिलाफ एवं समाज में जागरूकता को लेकर लगातार कार्य किया गया । पंपलेट छपवाकर बांटे गए, जगह- जगह पर सभाएं एवं मीटिंग का आयोजन कर, प्रेस वार्ताओं का आयोजन कर, इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया के रिपोर्टरों से बहस,शासन-प्रशासन,सुचना प्रसारण मंत्रालय से पत्राचार आदि के माध्यम से समाज में जागृति लाए एवं इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया तथा शासन प्रशासन से भोंगर्या हाट की सच्चाई को लेकर तथ्य सामने लाएं । ⏩ भोंगर्या हाट को लेकर गलत स्टेटमेंट करने वाले विद्वानों एवं जनप्रतिनिधियों को एक के बाद एक लगातार सैकड़ों फोन लगाए जाते थे और शाम तक संबंधित व्यक्ति का मोबाइल नंबर बंद मिलता था । इस प्रकार एक बड़ा अभियान चलाया गया। ⏩ इसके बावजूद भी कुछ जगह पर गलत ढंग से खबरें छापी जाती है । किंतु इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में प्राय प्राय भ्रामक खबरों को छापने में कमी आई है ।
⏩ इसलिए समाज के जागरूक कार्यकर्ताओं से करबद्ध निवेदन है कि भोंगर्या हाट को लेकर फैलाई गई भ्रांतियों को दूर करने मे सहयोग प्रदान करें और इसे बढ़ावा देने का प्रयास ना करें तो समाज हित में होगा ।।bajavUwjJqoans
इतिहास
भोंगर्या पर लिखी कुछ किताबों के अनुसार भोंगर्या राजा भोज के समय लगने वाले हाटों को कहा जाता था। इस समय दो भील राजाओं राजा कसुमर औऱ बालून ने अपनी राजधानी भागोर में विशाल मेले औऱ हाट का आयोजन करना शुरू किया। धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया जिससे हाट और मेलों को भोंगर्या कहना शुरू हुआ। वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों के द्वारा भ्रामक कहा जाता है है कि इस हाट बाजार में युवक-युवतियाँ अपनी मर्जी से भागकर शादी करते हैं ऐसा कुछ भी नही होता हैं यह सरासर गलत जानकारी हैं प्राचीन समय में आवागमन के साधन कम होने के कारण एक दिन बैलगाड़ी से पूरे परिवार के सदस्य आते हैं और अपने रिश्तेदारों से मिलने की खुशी में उन्हें पान खिलाया जाता था आदिवासी समाज में होली का डांडा गाड़ने के बाद कोई भी मांगलिक कार्य नही होता है।
उल्लेखनीय लोग
- वाल्मीकि
- एकलव्य
- सरदार हेमसिंह भील
- टंट्या भील
- दिवालीबेन भील
- मनसुख भाई वसावा
- गुलाब महाराज
- काली बाई
- नानक भील
- मोतीलाल तेजावत
- वीर दुद्धा
- मेवाड़ भील कॉर्प
- सरदार हिरीया भील
- इब्राहीम ख़ाँ गार्दी
- कृशण भिल
- मालवा भील कॉर्प्स
भील राजा
बाहरी कड़ियाँ
- मदमाते मौसम में आदिवासियों का प्रणय-उत्सव 'भगोरिया'
- फिर बिखरे भगोरिया के रंगसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- [https://web.archive.org/web/20050830071136/http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2005/04/050401_bhagoria_tribe.shtml होली का डंडा गढ़ने के बाद भील समाज मे कोई मांगलिक कार्य सम्पन्न नहीं होते है। शादी तो बहुत दूर की बात है। किंतु भोगर्या को वेलेंटाइन डे का ही एक रूप जरूर मान सकते है। जहाँ ये मेहनती भील समाज के युवा वर्ष में एक बार मेले में आकर अपना साथी ढूढते है। किंतु शादी नही करते है । यहाँ सिर्फ एक दूसरे को पसंद किया जाता है फिर गणगोर के बाद पूरे रीति रिवाजों के साथ शादी सम्पन्न होती है।