भगवा ध्वज

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मराठा साम्राज्य का भगवा ध्वज

भगवा ध्वज भारत का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक ध्वज है [१]। यह हिन्दुओं और बौद्धो के महान प्रतीकों में से एक है। इसका रंग भगवा (saffron) होता है। यह त्याग, बलिदान, ज्ञान, शुद्धता एवं सेवा का प्रतीक है। यह भारतीय संस्कृति का शास्वत सर्वमान्य प्रतीक है[२]

भगवा ध्वज, हिन्दू संस्कृति और बौद्ध संस्कृती एवं धर्म का शाश्वत प्रतीक है[३]। यही ध्वज सभी मंदिरो, आश्रमों में लगाया जाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना का यही ध्वज था।[४] [५][६] प्रभु श्री राम, भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के रथों पर यही ध्वज लहराता था। [७]

छत्रपति शिवाजी के अनुसार ध्वज का भगवा रंग उगते हुए सूर्य का रंग है; अग्नि की ज्वालाओ का रंग है। उगते सूर्य का रंग और उसे ज्ञान, वीरता का प्रतीक माना गया और इसीलिए हमारे पूर्वजों ने इसे सबका प्रेरणा स्वरूप माना।[८]

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने परम पवित्र भगवा ध्वज को ही अपना गुरु माना है। संघ की शाखाओं में इसी ध्वज को लगाया जाता है, इसका ही वंदन होता है और इसी ध्वज को साक्षी मानकर सारे कार्यकर्ता राष्ट्रसेवा, जनसेवा की शपथ लेते हैं। और उनको समझाया जाता है कि राष्ट्राध्वज तिरंगा के जैसे ही धर्म ध्वज का भगवा ध्वज सम्मान करे।

भारत की स्वतंत्रता के बाद भगवा ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज घोषीत करना चाहिए, ऐसा संघ तथा हिंदू संघटनों का आग्रह था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्य कार्यालय नागपुर में हमेशा भगवा ध्वज लहराता है किन्तु स्वातंत्र्य दिवस तथा गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रध्वज तिरंगा को भी मानवंदना दी जाती है। भगवा ध्वज सनातनियों का प्रतीक वा पवित्र ध्वज है । , सिक्ख, बौद्ध, जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है ।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ