ब्लैक जुलाई

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
ब्लैक जुलाई का नरसंहार

मानचित्र में श्री लंका
स्थान श्री लंका
लक्ष्य Primarily Sri Lankan Tamil and some Sinhalese civilians
हथियार चाकू, लाठी, अग्नि, बंदूक
अपराधी सिंहल

साँचा:श्री लंका में युद्ध साँचा:श्री लंका में तमिल विरोधी दंगे

जुलाई 23, 1983 को श्रीलंका में तमिलों के विरुद्ध सिंहलों द्वारा किए गए दंगों का नाम 'काली जुलाई' या 'ब्लैक जुलाई' है।[१] इसमें 400 से लेकर 3000 की मौत का अनुमान है।[२] बहुत से तमिलों को मौत के घाट उतार दिया गया। हजारों घरों को तबाह कर दिया गया। इस कारण सैकडों तमिलों ने श्रीलंका छोड़ दिया और विदेशी शरण की मांग की। एलटीटीई (लिट्टे /LTTE) द्वारा किए गए आक्रमण में श्रीलंका के ४३ सैनिकों के मारे जाने के बाद ये दंगे शुरु हुए थे।

ब्लॅक जुलाई श्रीलंका में तमिल उग्रवदियों एवं श्रीलंका सरकार के मध्य गृहयुद्ध का कारण बना।[३][४][५] श्रीलंका के तमिल लोगों के लिए यह दुखद स्मरण का दिन बन गया है।

परिचय

ब्रिटिश सरकार ने बहुत श्रीलंकाई तमिलों (अधिकतर जाफना से) को मिशनरी द्वारा स्थापित शिक्षा सुविधाओं एवं 'बांटो और राज करो' के प्रत्यय का उपयोग करके अल्पसंख्यक तमिलों को सरकार में तारतम्यहीन शक्ति प्रधान किया। तमिलों को सिविल सेवाओं एवं अन्य पदों के लिए चुना गया। जब श्री लंका को 1948 में स्वतन्त्रता प्राप्त हुई, बहुसंख्यक सरकारी पद तमिलों के हाथों में थे, जब कि उनकी जनसंख्या अल्प थी। निर्वाचित नेताओं ने सिन्हलों को नियन्त्रण में रखने का यह एक चाल समझा, तथा इस स्थिति को बदलने कि कोशिश शुरु हो गई। सन् 1956 के केवल सिंहाल नियम के अनुसार तमिल एवं अनग्रेजी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। तमिलों के इस प्रत्यय के विरोध करने के कारण सिन्हाल भडक गये तथा 1958 में भयानक दंगे शुरु हो गये। 1960 के दशक, विरोध और इन पर सरकारी निरोध बढते बैर का कारण बना। 1971 में, मानकीकरण नियम के कारण शत्रुता बढ गई। यूनाइटेड नेशनल पार्टी में 1977 के चुनवों में विजय के कारण दो समुदाय फिर भिड़ गये।[६] 1981 में जाफना के प्रसिद्ध पुस्तकालय को जला कर बरबाद कर दिया गया। जाफना के प्रसिद्ध पुस्तकालय में तमिल उग्रवादी संघटन के बैठक होथें थें। 1983 तक बढती तमिल उग्रवादियों एवं सरकार के बीच मुठभेड के घटनाएँ हुए और दोनों और लोगों के लापता होने एवं यातनाएं देनें के आरोप लगाये गये।

जुलाई 1983 में

ब्लैक जुलाई के घटनाओं का आरंभ् तब हुआ जब एल.टी.टी.ई संघटन के सदस्य जुलाई 23 के सायंकाल जाफना के समीप् श्रीलंका के फौजी काफिले पर आक्रमण किया। सिन्हाला रक्षकबल पर यह नवीनतम आक्रमण था। काफिले के प्रमुख एक जीप था जिसके नीचे एक बम विस्फोट के कारण दो सैनिक घायल हुए। साथियों के मदद करने के कारण जब सैनिक काफिले के गाडियों से उतर रहे थे, तमिल टागरों ने घात लगाना शुरु कर दिया बारूद एवं गोलियों के जरिये। लडाई में एक अफ्सर् एवं 12 सैनिक् तुरंत् मारे गये और दो बुरी तरह से घायल हो गये, जिस कारण 15 मारे गये टाइग्रों के अलावा .[७] किट्टू, एक तमिल टाईगर ने इस हमले के संचालक होन स्वीकर लिया।[८]

घात की समाचार को दबाने के लिए सिंहाला सर्कार ने १५ सैनिकों के लाशों को कोलोम्बो के कनात्ते श्मशान में चुपचाप अंतिम संस्कार कराया गया,[८], ताकि तमिलों के खिलाफ हमलें न हो.साँचा:citation needed. असल में मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार गाँव में किया जाया करता था।[८] जुलाई 15 के दिन जब अंतिम संस्कार किया जा रहा था, तब सिन्हालों की एक दल वहां पहुँच कर फैले गए घात की समाचार पर कोप प्रकट कर रहे थे[९] दंगें शुरू हो गए थे और सिंहलों के दल निर्दोष तमिल नागरिकों पे लूट मार आरम्भ कर दिया था। अंडरवर्ल्ड के अपराधी दल भी शामिल होगये। चुनाव मतदाता पंजीकरण सूचियों के सहायता से सिंहाला दलों ने केवल तमिल घरों एवं दुकानों पर वर करना शुरू कर दिया, इस बीच रक्षक बालों को देरी से तैनात किया। इसी कारण दंगों में शामिल दलों को सरकारी मदद मिलने का अनुमान लगाया गया .भय बीत तमिल प्रजा कोलोम्बो शेहेर छोड़ने लगे. बहुत सरे सिंहाला एवं मुस्सल्मान तमिलों की सहायता करने आगे बढे. तमिलों ने मंदिर, मस्जिद, सरकारी भवनों और सिंहल घरों में शरण लिए.[१०][११][१२]

24 के संध्याकाल पर श्री लंका की सरकार ने कर्फ्यू की घोषणा किया, लेकिन रक्षक बालों ने कर्फ्यू लागो करने से साफ़ इनकार कर रहे थे या थो अक्षम पाए गए थे[१०] Tश्री लंका की सेना पुलिस की सहायता करने बुलाया गया। इसके विपरीत अगले दिन् हिंसा जारी थी। श्री लंका के अन्य क्षेत्रों में भी हिंसा आरम्भ हो चूका था, अधिकतम तमिल बहुसंख्यक क्षेत्र जैसे कंडी, जहां कर्फ्यू सायंकाल के 6 पर लागू था, मतले, नवालापितिया, बादुल्ला नुवाराएलिया। वाहनों को जलाया गया और अन्दर लोगों को बहार खींच कर मारा या मार दिया गया।[१०].

दंगों में भयानक संघटन में से एक वेलिकादा जेल नरसंहार में हुआ था[१०] जो वेलिकादा के उच्च सुरक्षा कारगर जुलाई 25 के दिन हुआ था। 37 तमिल संदिग्ध अलगाववादियों को सिंहाला जेल बंधियों ने लाठी और चाकू का उपयोग करके मौत के घाट उतर दिए। सिंहाला जेल अधिकारीयों पे आरोप हैं कि चाबियों दे दी गयी लेकिन आगामी अन्वीक्षण में यह अप्रामानिथ घोषित किया गया .[१०] जुलाई 28 में दुबारा दंगों में 15 खैदी मारे गए[१३]

उनके बहुसंख्यक क्षेत्रों में तमिलों के विरुद्ध हिंसा के कारण जुलाई 26 तक कर्फ्यू को पुरे देश में घोषित किया गया। लेकिन पुलिस एवं सेना तैनात होने के कारण 26 के संध्याकाल तक हिंसा कम होती गयी और दंगाइयों के विरुद्ध कार्रवाई लेने लगे।[१४] जाफना के घातक हमले में मारे गए सैनिकों का अंतिम संस्कार रात के कुर्फ्यु के समय किया गया।.[१४] अगले दिन कोलोम्बो के दिन के समय कुर्फ्यु को उठा लिया गया लेकिन तमिल टाइगर के हमलों के दर से दोनों समुदायों के बीच मुटभेड अभी जारी थें।.[१४] 29 जुलाई को दंगों के एक दल ने हिंसा शुरू की लेकिन पुलिस कि फायरिंग में 15 दंगायें मारे गए[१३] २४ घंटों का कुर्फ्यु लगाया गया और रक्षक बालों ने शेहेर को फिर से शांतिपूर्वक बनाने में सफल रहे

सरकारी प्रतिक्रिया

साँचा:अधिक जानकारी के लिए श्रीलंका में तमिलों और सिन्हालों के बीच तनाव इन दंगों के पूर्व उपस्थित था और तमिल उग्रवादी दलों की स्थापना के बाद सिन्हालों के तमिल-विरुद्ध भावनाएं बढ़ गयी। हालांकी यह सिंहली सैनिकों के मारे जाने और गुप्त दफन की खबर से स्वभाविक रूप से भड़क गए थे, बाद में तमिल-विरोधी संघों के इकट्ठा होकर और भड़काया गया।[१५] दंगों के शुरुवात में पुलिस और फौज ने दंगों को रोखने की कोई कोशिश नहीं की थी।[१६] लेकिन जुलाई 26 तक पुलिस और फौज ने परिस्थितियाँ संभालने की कोशिशें शुरू कर दी और अधिकतर हिंसा रुख गयी। सरकार ने निषेधाज्ञा को लागू कर के हिंसा को श्रीलंका के और जगहों तक बढ़ने से रोक दी. जुलाई 29 में एक घठने में पुलिस 15 सिंहली लुटेरों को गोलियों से वार कर के मार दिया.

हालाँकि दंगों को ना रोकने के लिए तमिल राजनीतिज्ञों ने सरकार को दोषी ठहराया, सरकार के मुताबिक दंगाई दलों को रोकने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण कदम उठाये गए थें. दंगों की शुरुवात के बाद तुरंत कर्फ्यू की घोषणा की गयी थी। सरकार के मुताबिक, दंगाई दल अच्छी तरह से आयोजित थें और रेल, इमारतें और बसें पहले शिकार थें. उस समय के प्रधानमंत्री रणसिंहा प्रेमदासा ने तमिलों आश्रय और भोजन का आयोजन के लिए एक कमिटी की स्थापना किया था। यह आश्रय पांच स्कूल भवनों और एक हवाई अड्डे में स्थित था। जब शरणार्थियों की संख्या 20000 से 50000 बढ़ गयी, तब भारत सरकार ने जहाजों द्वारा मदद भेजी.

प्रत्यक्षदर्शी गवाहों का वर्णन

दंगाई दलों ने पहले सरकारी सम्पत्ती पर वार किया। भूत और भविष्य के कयी अवसरों की तरह बोरेल्ला कनात्ता के कब्रिस्तान में इक्कट्ठा हुए थें जहां श्री लंका के सैनिकों के अंतिम संस्कार होने को था। वे सरकार से अपनी नाराजगी जता रहे थें. उसके बाद तमिल जाती के खिलाफ बढक उठ गए।

लूट-मार और फसाद का आयोजन अच्छी तरह से की गयी थी। कोलोम्बो के सडकों पे तमिलों के लिए तलाश हो रही थी। तमिल नागरिकों को पहचानने के बाद उन्हें, गाडी समेत, ज़िंदा जला दिया था।

दंगाई भीड़ ने बसों को भी ना छोड़ा. तमिलों को बाहर ढकेल कर उन्हें चाकू, लाठी और आग से वार कर के मार दिया. एक नोर्वे के पर्यटक ने सिन्हालों के एक दल को तमिल यात्रियों के एक मिनीबस को जलाते हुए देखा था।[१५][१७]

सिन्हालों ने श्री लंका के अन्य शेहेरों में, जैसे अनुराधापुरा, कांडी, हट्टन, नुवारा एलिया, बादुल्ला, गिनिगाठेना, आदी, तमिलों पे वार करना शुरू कर दिया.[१५]

हताहतों की संख्या का अनुमान

हताहतों की संख्या के अनुमान भिन्न हैं . श्री लंका की सरकार के अनुसार 250 तमिल नागरिकों की हत्या की गयि, किन्तु गैर-सरकारी संस्थाओं के अनुसार 400[२] और 3000 के बीच का अनुमान हो सकता है,[२] जिनमे श्री लंका स्थानीय तमिल और भारत से बसे हुए तमिल भी मौजूद हैं। अकेले वेलिकादे जेल कत्लेआम में ही 53 आतंकवाद के संदिग्धों की मौत हुई।. अंत में श्री लंका सरकार ने हताहतों की संख्या 300 लगा दी।[१८][१९]

18,000 से ज्यादा घर और बहुत सारे व्यापारी प्रतिष्ठान बर्बाद हो गए और लाखों तमिल यूरोप, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के लिए देश छोड़ दी।[१८] बहुत सारे तमिल नौ जवान एल.टी.टी.ई में बरती हो गए।

मुक़दमे और मुआवजा

राष्ट्रपति के और से एक मुकदमा जारी किया गया था और बाद के पीपलस अलायन्स सरकार ने हताहतों और बर्बाद हुए घरों की संख्या तय कर के यह ऐलान किया मुआवजा भरना चाहिए। लेकिन आज तक यह भरपाई कभी दी नहीं गयी और किसी भी तरह का मुकदमा शुरू नहीं हुआ।[१८]

स्मरण का दिन

यह तारीख दुनिया के सभी तमिल लोगों के लिए स्मरण का विषय बन गया है। कनाडा के तमिल कांग्रेस ने 2009 के 23 जुलाई के दिन इक्कट्ठा होकर कनाडा के सर्कार के शरणदेन की और अहसान व्यक्त किया था। इस तरह के घटनाए स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क, जर्मनी, फ़्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यू ज़ीलैण्ड में घटित हुई।[२०]

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. साँचा:cite news
  3. साँचा:cite web
  4. साँचा:cite book
  5. साँचा:cite book
  6. साँचा:cite paper स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  7. साँचा:cite book p.21 see also Edgar O'Ballance
  8. O'Ballance, The cyanide war, p.21
  9. O'Ballance, The cyanide war, p.22
  10. O'Ballance, The cyanide war, p.23
  11. साँचा:cite book
  12. साँचा:cite journal
  13. O'Ballance, The cyanide war, p.25
  14. O'Ballance, The cyanide war, p.24
  15. साँचा:cite book
  16. साँचा:cite book
  17. साँचा:cite web
  18. साँचा:cite web
  19. साँचा:cite book p. 132
  20. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

साँचा:Sri Lankan Civil War

साँचा:coord missing