बुलबुल

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बुलबुल
Brown-eared Bulbul 1.jpg
भूरी आंखों वाली बुलबुल, माइक्रोसेलिस अमॉरोटिस
Scientific classification
जनेरा

पाठ देखें

Synonyms

ब्रैकाइपोडिडी स्वैनसन, १८३१
ट्राइकोफॉरिडी स्वैनसन, १८३१
आइक्सोसिडी बोनापार्ट, १८३८
हिप्सीपेटिडी बोनापार्ट, १८५४
क्राइनिगेराइडी बोनापार्ट, १८५४ (१८३१)
फिलैस्ट्रेफिडी माइल्न-एड्वर्ड्स & ग्रैडिडायर, १८७९
टिलैडिडी ओबरहोल्सर, १९१७
स्पाइज़ीक्सीडी ओबरहोल्सर, १९१९

बुलबुल, शाखाशायी गण के पिकनोनॉटिडी कुल (Pycnonotidae) का पक्षी है और प्रसिद्ध गायक पक्षी "बुलबुल हजारदास्ताँ" से एकदम भिन्न है। ये कीड़े-मकोड़े और फल फूल खानेवाले पक्षी होते हैं। ये पक्षी अपनी मीठी बोली के लिए नहीं, बल्कि लड़ने की आदत के कारण शौकीनों द्वारा पाले जाते रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है।[१] बुलबुल कलछौंह भूरे मटमैले या गंदे पीले और हरे रंग के होते हैं और अपने पतले शरीर, लंबी दुम और उठी हुई चोटी के कारण बड़ी सरलता से पहचान लिए जाते हैं। विश्व भर में बुलबुल की कुल ९७०० प्रजातियां पायी जाती हैं।[२] इनकी कई जातियाँ भारत में पायी जाती हैं, जिनमें "गुलदुम बुलबुल" सबसे प्रसिद्ध है। इसे लोग लड़ाने के लिए पालते हैं और पिंजड़े में नहीं, बल्कि लोहे के एक (अंग्रेज़ी अक्षर -टी) (T) आकार के चक्कस पर बिठाए रहते हैं। इनके पेट में एक पेटी बाँध दी जाती है, जो एक लंबी डोरी के सहारे चक्कस में बँधी रहती है।

प्रजातियाँ

कई वनीय प्रजातियों को ग्रीनबुल भी कहा जाता है। इनके कुल मुख्यतः अफ़्रीका के अधिकांश भाग तथा मध्य पूर्व, उष्णकटिबंधीय एशिया से इंडोनेशिया और उत्तर में जापान तक पाये जाते हैं। कुछ अलग-थल प्रजातियाँ हिंद महासागर के उष्णकटिबंधीय द्वीपों पर मिलती हैं। इसकी लगभग १३० प्रजातियाँ, २४ जेनेरा में बँटी हुई मिलती हैं। कुछ प्रजातियाँ अधिकांश आवासों में मिलती हैं। लगभग सभी अफ़्रीकी प्रजातियाँ वर्षावनों में मिलती हैं। ये विशेष प्रजातियाँ एशिया में नगण्य हैं। यहाँ के बुलबुल खुले स्थानों में रहना पसन्द करते हैं। यूरोप में बुलबुल की एकमात्र प्रजाति साइक्लेड्स में मिलती है, जिसके ऊपर एक पीला धब्बा होता है, जबकि अन्य प्रजातियों में स्नफ़ी भूरा होता है। भारत में पाई जानेवाली बुलबुल की कुछ प्रसिद्ध जातियाँ निम्नलिखित हैं :

  1. गुलदुम (red vented) बुलबुल,
  2. सिपाही (red whiskered) बुलबुल,
  3. मछरिया (white browed) बुलबुल,
  4. पीला (yellow browed) बुलबुल तथा
  5. काँगड़ा (whit checked) बुलबुल।

नयी प्रजाति

पक्षी वैज्ञानिकों ने हाल ही में बुलबुल की एक नयी प्रजाति खोजी है, जो उनके अनुसार पिछले सौ वर्षों में पहली बार दिखाई पड़ी है। इसे लाओस में देखा गया है। वन्य जीवन संरक्षण सोसाइटी ने बताया है कि इस नन्हीं सी चिड़िया के सिर पर बहुत कम बाल हैं उन्होंने कहा है कि उसके वैज्ञानिकों और ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न विश्वविद्यालय ने इस चिडि़या की पहचान बुलबुल की नयी प्रजाति के रूप में की है।[३] उनके अनुसार दक्षिण पूर्वी एशियाई देश लाओस के सावनाखत प्रान्त में चूने की चट्टानों से प्राकृतिक रूप से निर्मित गुफा में २००९ में यह देखी गई थी। इसका नाम बेयर फेस्ड बुलबुल रखा गया है। इसके सिर पर नगण्य बाल हैं और बालनुमा पंखों की एक बारीक सी कतार है। इसका मुँह भी विशिष्ट है, पंख विहीन और गुलाबी; और आँखों के पास उसकी त्वचा नीलिमा लिये हुए हैं।

सिपाही बुलबुल

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी क्रान्तिकारी व उर्दू शायर पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल ने तत्कालीन भारत में बहुतायत में पायी जाने वाली प्रजाति सिपाही बुलबुल को प्रतीक के रूप में प्रयोग करते हुए अनेकों गज़लें लिखी थीं। उन्हीं में से एक गज़ल वतन के वास्ते[४] का यह मक्ता (मुखडा) बहुत लोकप्रिय हुआ था:

क्या हुआ गर मिट गये अपने वतन के वास्ते।
बुलबुलें कुर्बान होती हैं चमन के वास्ते॥

विशेष जानकारी: जैसा कि चित्र दीर्घा में दिये गये फोटो से स्पष्ठ है सिपाही बुलबुल (en. Red whiskered Bulbul) की गर्दन में दोनों ओर कान के नीचे लाल निशान होते हैं जो कुर्बानी या बलिदान भावना का प्रतीक है। इसीलिये गज़ल में बुलबुल शब्द प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. वैज्ञानिकों ने अपना शोध आलेख फोर्कटेल नामक विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित कराया था।
  4. मदनलाल वर्मा 'क्रान्त' सरफरोशी की तमन्ना भाग-२ पृष्ठ-५७ दिल्ली प्रवीण प्रकाशन संस्करण १९९७

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साँचा:commonscat

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