विशाल नेपाल

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नेपाल का विशालतम स्वरूप

विशाल नेपाल का मतलब है, नेपाल का वह भौगोलिक स्वरुप जो सबसे अधिक विस्तृत था। आज के नेपाल का भौगोलिक स्वरुप इतिहास के असमान सन्धि और उन सन्धियों पर कोई क्रियान्वयन न हो पाने का नतिजा है। इतिहास के उसी विशाल भौगोलिक स्वरुप को याद कर के नेपाली लोग प्राचीन नेपाल को विशाल नेपाल कहते हैं।

इतिहास

प्राचीन अहीर, गोपाल, खसकाल और किरांत काल में नेपाल विशाल हुआ करता था और इस की सीमाएं पूर्व में कामरु, कामक्ष, दक्षिण में कतूर और पश्चिम में कांगड़ा तक हुआ करती थी और इस बात कि सच्चाई स्कन्द पुराण के ८१ वे अध्याय से मालूम की जा सकती है। स्कन्द पुराण के इस अध्याय में स्पष्ट उल्लेख है कि नेपाल की सीमाएं कहाँ से कहाँ तक थीं। इस बात की सच्चाई ईसा पुर्व १००० वर्ष पहले के अथर्ववेद से भी लगाई जा सकती है और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी इस बात की पुष्टी है। २२०० वर्ष पुरानी सम्राट अशोक के लुम्बिनी में स्थापित अशोक स्तम्भ जहाँ लिखा गया है कि "हिंद बुद्ध गाते नेपाल, अर्थात बुद्ध इस जगह जन्मे हैं और यह नेपाल है।" सम्राट समुंद्रगुप्त के इलाहाबाद स्थित एक शिलालेख पर नेपाल की पूर्वी सीमा कामरु, कामक्ष, दक्षिणी सीमा पाटलीपुत्र, कतूर और पश्चिम की सीमा उधमपुर लिखा हुआ है। कामक्ष अर्थात आसाम में, पाटलीपुत्र का मतलब है पटना और कतूर अर्थात इलाहाबाद नजदिक और उधमपुर अर्थात उत्तर-पश्चिम पंजाब और यह शिलालेख ईसा पुर्व ३५० की है।

विशाल नेपाल का विभाजन

किरांत काल के अन्त और लिच्छवियों के नेपाल में शासन का शुरु होना नेपाल के लिए एक दुर्भाग्य था। लिच्छवियों के शासन काल के अन्त में वे इतने शक्तिहीन हो गयें कि नेपाल ५३ टुकड़ो में बँट गया। लिच्छवियों के बाद मल्ल वंश का शासन आया पर वो भी नेपाल का एकिकरण करने में नाकाम रहें। मल्ल वंश के शासन के बाद नेपाल में शाह वंश के शासन का उदय हुआ। शाह वंश के काल को नेपाल के आधुनिक युग कि शुरुआत भी कहते हैं।

विशाल नेपाल का एकिकरण

५३ टुकड़ो में विभाजित नेपाल में ही एक टुकड़ा था जो गोरखा अधिराज्य (Gorkha Kingdom) के नाम से जाना जाता था। गोरखा के राजा थें पृथ्वीनारायण शाह। पृथ्वीनारायण शाह ने ५३ टुकड़ो में विभाजित नेपाल को फिर से एक करने की ठानी और नेपाल एकिकरण का अभियान शुरु कर दिया। विक्रम सम्वत १७९९ में पृथ्वीनारायण शाह गोरखा के राजा बने उस के एक साल बाद ही पड़ोसी राज्य नुवाकोट पर पृथ्वीनारायण शाह ने हमला बोल दिया और विजय हासिल कि और इसी के साथ एकिकरण का अभियान शुरु कर दिया। बाद में उन्होने विक्रम सम्वत १८१९ में सेन राज्य मकवानपुर पर विजय हासिल की और उसे अपने राज्य में सम्मिलित करने में सफल हो गये और खुब उत्साहित होकर १८२३ में उन्होने किर्तीपुर पर हमला किया और किर्तीपुर पर भी विजय का झंडा गाड़ दिया। इसी के साथ विक्रम सम्वत १८२५ में लगातार कान्तिपुर, ललितपुर तथा १८२६ में भक्तपुर को अपने अधिकार में लेकर तीनों राज्यों को जोड़ कर काठमाण्डू उपत्यका (Kathmandu Valley) बनाया और काठमाण्डुको अपनी राजधानी बनाया। उसके बाद पृथ्वीनारायण शाह ने नेपाल एकीकरण के लिए पूर्व की ओर ध्यान दिया और विक्रम सम्वत १८३० में चौडण्डी के ऊपर विजय हासिल किया। अगले वर्ष विजयपुर राज्य को एकीकरण कर पूर्व तरफ की सीमा को मेची के आस-पास पहुँचाया। पृथ्वीनारायण शाह के मृत्यु के पश्चात उनका बड़ा लड़का प्रताप सिंह शाह ने चित्तवन को नेपाल में सम्मिलित किया लेकिन उनकी जल्दी ही निधन हो जाने के कारण नाबालक रण बहादूर शाह नेपाल के राजा बने। नाएबी के रूप में राजमाता राजेन्द्रलक्ष्मी ने शासन का डोर अपने हाथों में लेकर ससुर के एकिकरण अभियान को निरन्तरता दिया। विक्रम सम्वत १८३४ से १८४२ तक चौबीसे राज्य अन्तर्गत लम्जुंग, तनहु तथा काश्कि को नेपाल में सम्मिलित किया। राजमाता राजेन्द्रलक्ष्मी के मृत्यु के बाद नाबालक रण बहादूर के नाएबी में पृथ्वीनारायण शाह का छोटा लड़का बहादूर शाह सत्ता में आये और उन्होने अपने पिता के एकीकरण अभियान को पूर्वी तरफ के सीमा के पास के सिक्किम का तीन तिहाई भू-भाग जीत कर तिश्ता नदी तक पहुँचाया। उसके बाद उन्होने पश्चिम तरफ ध्यान केन्द्रित किया और चौबीसे राज्यों पर १८४४ तक अधिकार जमा लिया। बहादूर शाह ने बाइसे राज्यों पर भी आक्रमण किया और कर्णाली प्रदेश के राज्यों को जीतते हुए जुम्ला को अपने अधिन में कर लेने के बाद १८४७ में डोटी राज्य पर विजय हासिल कर नेपाल का पश्चिमी सीमा महाकाली नदी तक पहुँचाया। उसी वर्ष उन्होने कुमॉऊ के राजधानी अल्मोड़ा पर आक्रमण कर कुमॉऊ के ऊपर भी विजय हासिल कर लिया। दूसरे वर्ष उन्होनें गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर पर हमला कर इसे आश्रित राज्य बनाया, लेकिन तिब्बत के साथ हुए युद्ध के कारण यह एकीकरण रोकना पड़ा। बहादूर शाह के मृत्यु के बाद ये अभियान प्रधानमंत्री भीमसेन थापा और सेनापति अमर सिंह थापा के नेतृत्व में आगे बढ़ा। विक्रम सम्वत १८६१ में श्रीनगर पर पुनः आक्रमण किया गया और गढ़वाल को पुर्ण रूप से नेपाल में सम्मिलित कर लिया गया। इस तरह नेपाल की पश्चिमी सीमा यमुना नदी तक पहुँच गई, उसके बाद तुरन्त नेपाली सेना ने यमुना नदी पार कर यमुना नदी से सतलज नदी के बीच के सभी १२ और १८ ठकुराई के नाम से चल रहे बहुत से छोटे छोटे राज्यों का एकीकृत किया। विक्रम सम्वत १८६३ में अमर सिंह थापा ने सतलज पार कर विभिन्न राज्यों को जीतते हुए कांगड़ा शहर पर आक्रमण किया लेकिन रावी नदी तक पहुँच चुके नेपाली सेना कांगड़ा किले को जीत नहीं सकें। एकिकरण के क्रम में नेपाली सेना ने कांगड़ा के राजा संसारचन्द को चार वर्ष तक कांगड़ा किला में घेराबन्दी कर के रखा। बाद में संसारचन्द की सहायता के लिए पंजाब के राजा रणजीत सिंह आए जिनके साथ नेपाली सेना ने युद्ध किया जिस के फलस्वरुप ज्वालामुखी सन्धि किया गया और इस सन्धि के अनुसार नेपाली सेना सतलज नदी के उस तरफ हट जाने के लिए बाध्य हो गये। इस तरह विशाल नेपाल का पुन: एकिकरण हुआ और नेपाल की पूर्वी सीमा तिष्टा नदी तक और पश्चिमी सीमा सतलज नदी तक विशतारित हो गया।

विशाल नेपाल का दुर्भांग्य

१ नवम्बर १८१४ को इस्ट इण्डिया कम्पनि क तरफ से जनरल हेस्टिग्स ने नेपाल विरुद्ध विधिवत रूप में युद्ध कि घोषणा कर दी। नेपाल-अंग्रेज बिच के पॉच मोर्चाओं में सुदूर पश्चिम तरफ के मोर्चा के रक्षा का भार अमर सिंह थापा के ऊपर था और वह इसी जगह से युद्ध का मोर्चा सम्भालते थें। सतलज सिमा कि ओर से नेपाल में आक्रमण करने के लिए कार्यरत अंग्रेज जनरल ऑक्टर लोनी ने अमर सिंह थापा को विभिन्न प्रकार के प्रलोभन दिए और अपने साथ मिलाने कि लाख कोशिश कि, लेकिन अमर सिंह थापा अंग्रेजों के प्रलोभन में नहीं फँसे और वह विरतापूर्वक लड़ते हुए किला कि सुरक्षा करते रहें। जब अंग्रेज इस तरह सतलज को अपने काबू में न कर सके तो, अंग्रेजों ने दूसरे युद्ध मार्ग से नेपाली भूमी में प्रवेश किया। अंग्रेज जब सतलज पर काबू न कर सके तो बाद में दूसरे रास्ते से होकर नालापानी के तरफ बढ़ें। नालापानी किले के युद्ध के मोर्चे का भार बलभद्र कुंअर के ऊपर था। सन् १८१४ अक्टुबर से नवम्बर तक हुए भिषण नालापानी युद्ध में जनरल जिलेस्पी सहित १००० अंग्रेज सेना मारे गए थें। अन्त में नेपाली सेना को नेपाली युद्ध कौशल से जब हरा न सके तो अंग्रेजों ने किले में आ रहे पीने के पानी के सप्लाई को काट दिया। कई दिनों तक जब पानी पीने को नहीं मिल पाया तो बाध्य होकर बलभद्र कुंअर बचे हुए अपने ७० जने योद्धाओं सहित नंगे खुकुरी को नचाते हुए जब किला से बाहर निकले तो अंग्रेज लोग चकित हो गये थें। नालापानी युद्ध के बाद एक दूसरा निर्णायक युद्ध मलोन के देवथल किले में हुआ। अंग्रेजों ने अपनी सम्पुर्ण शक्ती लगाई थी इस किले को हथियाने में और वे सफल हो गये बाद में ७० वर्ष काट चुके विर योद्घा भक्ति थापा पुन: इस किले को वापस लेने के लिए अंग्रेजों से भिड़ गये लेकिन अंग्रेजों के तोप से निकले आग के गोलों को अपनी छाती पे खाते हुए वो वहीं शहीद हो गये। इस तरह नेपाल के कुल पाँच मोर्चाओं मध्य तीन मोर्चाओं पर नेपाल कि जीत हुई और दो मोर्चाओं पर अंग्रेजों कि जीत हुई। अंग्रेजों के उसी जीत ने नेपाल को सुगौली सन्धि जैसे असमान सन्धि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर दिया।

सुगौली सन्धि

ब्रिटिश भारत के सीमा पर छोटो-छोटे राज्यों को एकिकरण करने के चक्कर में ब्रिटिश-ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के बिच विवाद उत्पन्न हो गया। जब नेपाल ने गढ़वाल और कुमाउँ का एकिकरण कर लिया वहाँ का शासक ब्रिटिश-ईस्ट इंडिया के शरण में सहायता माँग्ने चला गया वैसे हि सिक्किम के राजा ने भी ब्रिटिश-ईस्ट इंडिया से सहायता माँगी थी। इधर सारण जिल्ले के लोगों ने भी ब्रिटिश-ईस्ट इंडिया कंपनी से नेपाल कि शिकायत कि थी नतीजतन अंग्रेजो ने नेपाल के विरुद्ध युद्ध कि घोषणा कर दि। ब्रिटिश-ईस्ट इंडिया और नेपाल सरकार के बिच युद्ध 1814 से 1816 तक चली। युद्ध 5 मोर्चों पर हुआ जिसमें 3 मोर्चाओं को नेपाल ने संभाल लिया पर 2 मोर्चों पर ब्रिटिश-ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल को हरा दिया जिसके फस्वरूप नेपाल ने सार्वभौम बचाये रखने के लिए इस सन्धि पर हस्ताक्षर किया और पुर्व में तिस्टा से मेची नदी के बिच का सारा भू-भाग और पश्चिम में सतलज नदी से महाकाली नदी के सारे भू-भाग और दक्षिण के तराई का भू-भाग इस संधि के अनुरुप ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी का हो गया। हालाकि दक्षिण के कुछ तराई भाग अंग्रेजों ने नेपाल को १८५७ के भारतीय स्वतंत्रता विद्रोह में ब्रिटिश की सहायता करने पर अनाधिकारिक तौर पर दे दिया पर एक तिहाइ भाग वापस नहीं मिल पाया और 1947 में आजाद हुए भारत गणराज्य के उत्तराखंड, हिमाचल,उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम और पश्चिम बंगाल राज्य में सम्मिलित हो गया।

सन्दर्भ

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External links

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