बाह्यानुमेयवाद

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
चित्र:Externalism books and philosphers.jpg
बाह्यानुमेयवाद के तीन पुस्तकें (ऊपर), और, बाह्यानुमेयवाद में मान्ने वाले तीन दार्शनिकों (हिलेरी पुटनम, फ्रेड ड्रेट्सके और टेड होन्डेरिक; नीचे, बाएँ से दाएँ)।

बाह्यानुमेयवाद ज्ञानमीमांसा का एक सिद्धांत है। इसके अनुसार संसार का, बाह्य वस्तुओं का, ज्ञान वस्तुजनित मानसिक आकारों के अनुमान द्वारा प्राप्त होता है। हमें न तो बाह्य वस्तु का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है और न भ्रमवश अपनी मानसिक अवस्था ही बाह्य वस्तु के सदृश प्रतीत होती है। मन और बाह्य वस्तु दोनों की सत्ता है। बाह्य वस्तु के अनुरूप मन में आकार उत्पन्न होते हैं। उन आकारों से ही बाह्य वस्तु के स्वरूप का अनुमान लगता है।

भारत में बौद्ध दर्शन की सौत्रांत्रिक शाखा के प्रवर्तक इस सिद्धांत को स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार ज्ञान के चार प्रत्यय हैं- आलंबन, समनंतर, अधिपति और सहकारी। बाह्य वस्तु ज्ञान का आलंबन कारण है। मानसिक आकृतियाँ उन्हीं से निर्मित होती हैं। ज्ञान के अव्यवहित पूर्ववर्ती मानसिक अवस्था से उत्पन्न चेतना समनंतर कारण है। इसके बिना ज्ञान की प्रतीति हो ही नहीं सकती है। इंद्रियाँ अधिपति कारण हैं। हमें स्पर्शज्ञान प्राप्त होता है या अन्य कोई, यह इंद्रियों पर ही निर्भर है। प्रकाश, दूरत्व आदि सहकारी कारण है। इन चार कारणों या प्रत्ययों के उपस्थित होने पर ही किसी वस्तु का ज्ञान हो सकता है। इस प्रकार जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह प्रत्यक्ष नहीं है। प्रत्यक्ष तो केवल मानसिक प्रत्यय हैं। उनसे बाह्य वस्तुओं का अनुमानित ज्ञान होता है।

पश्चिम में बाह्य अनुमेयवाद के समतुल्य लॉक जैसे दार्शनिकों का 'प्रत्ययों का प्रतिकृति सिद्धांत' ध्यातव्य है। उसके अनुसार मन और वस्तु दोनों की सत्ता है। वस्तुएँ स्वच्छ पट्टिका (टेबुला रासा) जैसे मन पर अपनी प्रतिकृति उत्पन्न करती हैं। इन्हीं प्रतिकृतियों के ज्ञान को हम निश्चयात्मक कह सकते हैं। उनके परे यथार्थ क्या है यह जानने का कोई निश्चित साधन नहीं है। मानसिक प्रतिकृतियों के ज्ञान से ही बाह्य वस्तुओं का अनुमान लगाया जा सकता है।

आधुनिक युग का विवेचनात्मक वस्तुवाद (क्रिटिकल रियलिज़्म) भी बहुत कुछ बाह्य अनुमेयवाद का समर्थन करता है। इस सिद्धांत के प्रतिपादक प्रधानत: अमरीका के दार्शनिक ड्रेक, लवज्वाय, प्रेट. रोजर्स, सांतायना, सैलर्स, स्ट्रांग आदि हैं।