बाबू हुकुम सिंह

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

साँचा:mbox बाबू हुकुुम सिंह उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता रहे थे। बाबू हूंकुम सिंह भारत की सोलहवीं लोकसभा उत्तर प्रदेश की कैैराना लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। हुकुम सिंह कैैराना विधानसभा सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए थे। हुकुम सिंह उत्तर प्रदेश की कांग्रेस एवंं भाजपा सरकारों में मंत्री भी रहे थेशामली के बाबू हुकुम सिंह वेस्ट यूपी के कद्दावर नेता रहे थे। पढ़ाई के बाद जज बनना चाहते थे, पीसीएस जे परीक्षा पास भी की, लेकिन उसी दौरान 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया। पंडित जवाहर लाल नेहरू के आह्वान पर सेना में भर्ती हो गए। सेना से आने के बाद समाज सेवा में जुट गए। राजनीति में आए तो उस समय के दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और लोकदल उन्हें टिकट देना चाहते थे। 1974 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गए। उसके बाद कांग्रेस और भाजपा सरकारों में मंत्री रहे। कैराना पलायन मुद्दा उठाकर सुर्खियों में आए और 2014 में कैराना से भाजपा प्रत्याशी के रूप में सांसद चुने गए थे। कैराना के मोहल्ला आलकला में मान सिंह चौहान परिवार में पांच अप्रैल 1934 को जन्मे बाबू हुकुम सिंह ने कैराना में ही 12वीं तक की पढ़ाई की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय भेजा। वहां पर हुकुम सिंह ने बीए और एलएलबी की पढ़ाई की। इस बीच 13 जून 1958 को उनकी शादी रेवती सिंह से हो गई। उन्होंने वकालत का पेशा चुना और मुजफ्फरनगर के वकील ब्रह्म प्रकाश के साथ प्रेक्टिस करने लगे थे। इसी दौरान हुकुम सिंह ने जज बनने की परीक्षा पीसीएस (जे) भी पास की। जज की नौकरी शुरू करते, इससे पहले चीन ने भारत पर हमला कर दिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने युवाओं से देशसेवा के लिए सेना में भर्ती होने के आह्वान किया तो उससे प्रेरित होकर बाबू हुकुम सिंह नौसेना में चले गए। 1963 में बाबू हुकुम सिंह भारतीय सेना में अधिकारी हो गए। हुकुम सिंह ने बतौर सैन्य अधिकारी 1965 में पाकिस्तान के हमले के समय अपनी टुकड़ी के साथ पाकिस्तानी सेना का सामना किया। उस वक्त कैप्टन हुकुम सिंह राजौरी के पूंछ सेक्टर में तैनात थे। जब लड़ाई समाप्त हो गई और सब सामान्य हो गया तब 1969 में हुकुम सिंह ने सेना से इस्तीफा दे दिया और वापस आकर वकालत शुरू कर दी। कुछ ही समय में हुकुम सिंह अपने साथी वकीलों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए उनके कहने पर बार के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ लिया और 1970 में वे चुनाव जीत भी गए। फिर 1974 तक उन्होंने जन आंदोलनों में हिस्सा लिया और लोकप्रिय होते चले गए। हालत ऐसे हो गए थे इस साल कांग्रेस और लोकदल दोनों ही बड़े राजनीतिक दलों ने उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपने-अपने टिकट देने की बात कही। काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने 1974 में कैराना विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और चुनाव जीत गए। अब तक वह सात बार विधायक चुने गए। वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में कैराना लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर सांसद चुने गए। विधायक से सांसद बनने का सफर 1980 में उन्होंने पार्टी बदली और लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ा और इस पार्टी से भी चुनाव जीत गए। तीसरी बार 1985 में वह वीर बहादुर सिंह की सरकार में मंत्री भी बनाए गए। बाद में जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हुकुम सिंह को राज्यमंत्री के दर्जे से उठाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया। हुकुम सिंह को 1981-82 में लोकलेखा समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया। 1975 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के महामंत्री भी बने। 1980 में लोकदल के अध्यक्ष भी बने। और 1984 में वे विधानसभा के उपाध्यक्ष भी रहे। 1995 में हुकुम सिंह ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और चौथी बार विधायक बने। कल्याण सिंह और रामप्रकाश गुप्ता की सरकार में वह मंत्री रहे। 2007 में हुए चुनाव में भी विधानसभा पहुंचे। 2014 में भाजपा के टिकट पर हुकुम सिंह ने कैराना सीट पर पार्टी सांसद बने। जन्म- 5 अप्रैल 1934, देहावसान 03 फरवरी 2018 मां का नाम- खजानी देवी पिता का नाम- चौधरी मान सिंह शादी- 13 जून 1958 पत्नी का नाम- स्वर्गीय रेवती सिंह शिक्षा- बीए, एलएलबी जज की नौकरी के बजाए सीमा पर देश की सेवा को दी वरीयता पीसीएस जे परीक्षा पास कर चुके बाबू हुकुम सिंह सेना में हो गए थे अधिकारी सेना की नौकरी के बाद समाज सेवा में जुटे और राजनीति में आए तो एक मुकाम बनाया