बाज़ार विफलता

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अर्थशास्त्र में बाज़ार विफलता (market failure) ऐसी स्थिति को कहते हैं जहाँ लेन-देन में आर्थिक दक्षता न हो। ऐसी स्थिति में यह सम्भव होता है कि किसी लेन-देन में एक पक्ष का लाभ - बिना किसी अन्य पक्ष को हानि हुए - बढ़ सकता है लेकिन बढ़ता नहीं है।[१][२]

उदाहरण

यदि एक सरोवर से दो मछुआरे मछली पकड़ते हैं और हर एक यदि प्रत्येक दिन १० किलो मछली पकड़े तो मछलियों की संख्या प्रजनन द्वारा फिर पूर्ण होती रहती है, लेकिन यदि वे २० किलो पकड़ें तो संख्या इस प्रकार गिरने लगती है कि जल्दी ही सरोवर से मछलियाँ समाप्त हो जाएँगी। लालच में यदि दोनों अव्यवस्थित रूप से मछलियाँ पकड़ें तो दोनों का भारी नुकसान हो जाता है, क्योंकि यहाँ उत्पादकों व खरीदारों का बाज़ार ठीक प्रकार से संगठित नहीं है और विफल हो जाता है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Steven G. Medema (2007). "The Hesitant Hand: Mill, Sidgwick, and the Evolution of the Theory of Market Failure," History of Political Economy, 39(3), p p. 331 स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।-358. 2004 Online Working Paper. स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. Joseph E. Stiglitz (1989). "Markets, Market Failures, and Development," American Economic Review, 79(2), pp. 197-203. स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।