बाज़ार (अर्थशास्त्र)

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हॉग मार्केट, कोलकाता का प्रवेश

साँचा:economics sidebar साँचा:financial markets अर्थशास्त्र में बाज़ार (market) उन प्रणालियों, संस्थाओं, विधियों, सम्बन्धों और अधोसंरचनाओं का समूह होता है जिनके द्वारा अलग-अलग पक्ष विनिमय (यानि अदला-बदली) कर सकते हैं। मानव इतिहास के सबसे रूढ़ि बाज़ारों में सीधा वस्तु विनिमय होता था, अर्थात दो पक्षों में ऐसा विनिमय जिसमें पहला पक्ष दूसरे से स्वयं चाही कोई वस्तु लेता है और दूसरे पक्ष को उसके द्वारा चाही कोई वस्तु बदले में देकर व्यापार पूर्ण करता है। अधिकांश आधुनिक बाज़ारों में मुद्रा को विनिमय का माध्यम बनाकर एक पक्ष अपने द्वारा बनाई माल या सेवाएँ दूसरे पक्ष को मुद्रा (पैसे) के बदले में देता है। बाज़ार समाज में व्यापार, वितरण और संसाधन आवंटन को सम्भव करते हैं और मुक्त बाज़ार का सुचारु व नियमित रूप से, लेकिन बिना आर्थिक संतुलन में अधिक हस्तक्षेप करे, चलना समाजिक समृद्धि के लिए आवश्यक है। सरकारें या अन्य आधिकारिक संस्थाएँ जब बाज़ारों में सही नीयत से भी हस्तक्षेप करती हैं - जैसे कि मूल्य छत या अधिक कर का डालना - तो अक्सर अनपेक्षित परिणाम-स्वरूप इस से मृतभार घाटा उत्पन्न होता है और अभाव अर्थव्यवस्था, कालाबाज़ारी जैसे भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और निर्धनता जैसी बुराईयों को बढ़ावा मिलता है।[१][२][३]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite journal
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. "Principles of Microeconomics," Nicholas Gregory Mankiw, Dryden Press, 1997, ISBN 9780030245022

और पढ़ें

  • Robert Pindyck and Daniel Rubinfeld, Microeconomics, Prentice Hall 2012.
  • Robert H. Frank, Microeconomics and Behavior, 6th ed., McGraw-Hill/Irwin 2006.
  • Philip Kotler and Kevin Lane Keller, Marketing Management, Prentice Hall 2011.
  • Michael Baker and Michael Saren, Marketing Theory: A Student Text, Sage 2010. ऑनलाइन प्रति.
  • Patrik Aspers, Markets, Polity Press 2011. ऑनलाइन प्रति.
  • Leonard Bauer and Herbert Matis (1988) From moral to political economy: The Genesis of social sciences, History of European Ideas 9 (2), 125–143.
  • Klaus Nathaus and David Gilgen (Eds.), Change of Markets and Market Societies: Concepts and Case Studies. Historical Social Research 36 (3), Special Issue, 2011.