बलदेव

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बलदेव (कार्तिक बदी १२, संवत् १८९७ विक्रमी --) हिन्दी के साहित्यकार और कवि थे।[१]

इनका उपनाम 'द्विज बलदेव' था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के मानूपुर ग्राम में हुआ था। पिता ब्रजलाल अवस्थी कृषिकर्मी कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। 'द्विज बलदेव' ने प्रांरभ में ज्योतिष, कर्मकांड और व्याकरण की शिक्षा ली किन्तु काव्यरचना में प्रवृत्त होने के कारण काशी के स्वामी निजानंद सरस्वती से ३२ वर्ष की उम्र में काव्यशास्त्र की शिक्षा ग्रहण की। रामपुर, मथुरा (जि. सीतापुर) तथा इटौजा (जि. लखनऊ) के राजा इनके आश्रयदाता थे जिनके नाम पर इन्होंने ग्रंथों की रचनाएँ कीं। इन राजाओं से इन्हें पर्याप्त भूमि, धन और वाहन की प्राप्ति हुई। कविता ही इनकी जीवनवृत्ति थी। इनके पुत्र गंगाधर, 'द्विजगंग' भी अच्छी कविता करते थे।

'द्विज बलदेव' में प्रखर कवित्वप्रतिभा थी। अपने समृद्ध आशुकवित्व के बल पर समस्यापूर्तियाँ बड़ी जल्दी और अच्छी करते थे। इसीलिए समस्यापूर्ति के सबंध में 'द्विज बलदेव' की गर्वोक्ति थी -

देहि जो समस्या तापै कवित बनाऊँचट, कलम रुकै तो कर कलम कराइए।

रचनाएँ

'प्रतापविनोद' (र.का.सं. १९२६); 'शृंगार-सुधाकर' (सं. १९३०); 'मुक्तमाल'; 'रागाष्टयाम' और समस्या प्रकाश (सं. १९३१-३२); 'शृंगार-सरोज' (सं. १९५०); 'हीरा जुबिली और चंद्रकला काव्य' (सं. १९६३); 'प्रेमतरंग' (सं. १९५८); 'बलदेव विचारार्क' (सं. १९६२)। अंतिम ग्रंथ का अधिकांश गद्य में है जिसमें कवि ने विविध विषयों पर अपने विचार प्रकट किए हैं।

सन्दर्भ