बदरीनाथ भट्ट

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

बदरीनाथ भट्ट (संवत् 1948 वि. की चैत्र शुक्ल तृतीया - 1 मई सन् 1934) हिन्दी के साहित्यकार, पत्रकार एवं भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।

जीवनी

श्री बदरीनाथ भट्ट का जन्म आगरे के गोकुलपुरा नामक मुहल्ले में संवत् 1948 वि. की चैत्र शुक्ल तृतीया को हुआ था। आपके पिता पं॰ रामेश्वर भट्ट हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान् थे। घर पर अध्ययन करने के पश्चात् आगरा कालेज से आपने दसवीं कक्षा पास की। अध्ययन के अतिरिक्त आप फुटबाल तथा क्रिकेट के भी अच्छे खिलाड़ी थे।

स्वदेशी आंदोलनों का भट्टजी पर व्यापक प्रभाव पड़ा और वह देशभक्ति की ओर उन्मुख हो गए। सन् 1911 ई. में इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा पास की। आपने डिग्री लेने के पश्चात् एक वर्ष तक कानून का भी अध्ययन किया परंतु उस ओर इनका मन अधिक नहीं रमा। आप बलवंत राजपूत कालेज में अध्यापक हो गए और आपने हिंदी में लिखना पढ़ना प्रारंभ कर दिया। आगरा नागरीप्रचारिणी सभा के प्रमुख कार्यकर्ता के रूप में भी आपने कार्य किया। इसी समय आपकी मैत्री पं॰ सत्यनारायण कविरत्न से हुई। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के प्रोत्साहन से आपने "सरस्वती" में भट्ट जी के साहित्यिक लेख तथा "मर्यादा" और "प्रताप" में आपके राजनीतिक लेख प्रकाशित होते थे। आपका हास्य और व्यंग्य बड़ा मर्मस्पर्शी होता था। "प्रताप" में आप गोलमालकारिणी सभा की कार्यवाही तथा आगरे से प्रकाशित होनेवाले "सैनिक" में हलचलकारिणी सभा के अंतर्गत हास्य तथा व्यंग लिखा करते थे।

अंधविश्वास और भाषा विषयक दकियानूसी विचारवाले व्यक्तियों की इन्होंने सदैव ही खबर ली। यह खड़ी बोली के समर्थक थे और ब्रजभाषा के प्रेमी। इसी समय इन्हें संगीत की रुचि हुई। इन्होंने आगरे के प्रसिद्ध गायक गुलाम अब्बास से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। संगीत की शिक्षा का उपयोग इन्होंने गीत लिखने में किया है। भट्ट जी के समय में पारसी थियेट्रिकल कंपनियों का बोलबाला था। पारसी रंगमंच के लिए लिखे गए नाटकों का स्तर बहुत ही नीचा था। हिंदी का अपना रंगमंच हो, यह इस मत के पक्षपाती थे। इन्होंने शुद्ध हिंदी में 'कुरु-वन-दहन' नामक नाटक (रामभूषण प्रेस, आगरा से प्रकाशित) का निर्माण किया। इस नाटक का हिंदी जगत् में स्वागत हुआ। उत्साहित होकर भट्ट जी ने अन्य नाटकों एवं प्रहसनों की रचना की। सन् 1916 ई. में द्विवेदी जी की आज्ञा से आप इंडियन प्रेस, प्रयाग में कार्य करने के लिए चले गए। इंडियन प्रेस में रहकर भट्ट जी ने वहाँ के हिंदी विभाग के अनेक सुधार किए और बालकों के लिए एक सचित्र मासिक "बालसखा" का संपादन कराया। बाल साहित्य संबंधी यह पत्रिका हिंदी जगत् में महत्वपूर्ण है। 1918 ई. में प्रयाग में कुंभ पड़ा। इस अवसर पर भट्ट जी की भेंट साधु-संतों से हुई और इसका इनके जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा। इनकी रहन-सहन में सरलता आ गई और वेदांत के अध्ययन की ओर इनकी अभिरुचि हुई। अस्वस्थ रहने और नेत्रकष्ट के कारण 1919 में इन्होंने इंडियन प्रेस का कार्य छोड़ दिया। प्रयाग से नौकरी छोड़ आपने देशाटन किया। आगरे आकर "सुधारक" पत्र का संपादन किया।

सन् 1922 में लखनऊ विश्वविद्यालय की स्थापना हुई और भट्ट जी हिंदी के प्रथम प्राध्यापक होकर लखनऊ आए। लखनऊ में ही उनका शेष जीवन व्यतीत हुआ। लखनऊ में भट्ट जी का संपर्क "माधुरी" संपादक मुंशी प्रेमचंद, पं॰ कृष्णबिहारी मिश्र तथा पं॰ रूपनारायण पांडेय से हुआ। माधुरी में प्राय: आपकी समालोचनाएँ छपती थीं। 1 मई सन् 1934 ई. को आपका स्वर्गवास हो गया। भट्ट जी का जीवन दृढ़ संकल्प तथा आत्मसम्मान के भाव से ओतप्रोत था। वह मनुष्य पहले थे, कवि नाटककार और आलोचक बाद में।