फीदो
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फीदो (ग्रीक: Φαίδων ὁ Ἠλεῖος, जीवनकाल- चौथी शताब्दी ईसापूर्व) यूनान का दार्शनिक तथा प्राचीन यूनानी दर्शन के इतिहास में सुकरातवादियों के 'ईलियायी संप्रदाय' का संस्थापक था।
वह पाँचवीं शती ई.पू. में उत्पन्न हुआ था और एलिस (Elis) नगर का निवासी था।[१] स्पार्टा ओर एलिस के वीच ४०१-४०० ई.पू. में हुए युद्ध में वह दास बना लिया गया था और सुकरात ने उसे दासता से छुड़ाया था। कदाचित् वह बहुत तर्कप्रिय था और उसे नीतिशास्त्र में विशेष रुचि थी। विश्वास किया जाता है कि उसने कुछ संवार्ताएँ लिखी थीं परंतु उनमें से कोई भी अब उपलब्ध नहीं। उसका मत नैतिक बुद्धिवाद कहा जाता है। सुकरात की भाँति उसने भी ज्ञान को ही सद्गुण माना एवं दर्शन को बुद्धिसंगत जीवन का सर्वश्रेष्ठ पथप्रदर्शक बताया। उस समय के बहुत से अन्य चिंतकों की भाँति उसको भी अपने समय का समाज अति पतित अवस्था में प्रतीत होता था और वह दर्शन का यह प्रकार्य समझता था कि समाज का नैतिक उत्थान संभव करे और उसे सच्ची स्वतंत्रता के स्तर पर पहुँचाए।
सुकरात के शिष्यों में फ़ीदो के महत्व का इससे पता चलता है कि उसके गुरुभाई अफ़लातून ने अपने ग्रंथ का नाम ही फ़ीदो रखा था। इसमें अफ़लातून ने अपने अमरत्व सिद्धांत का प्रतिपादन किया। आत्मा को शरीर से श्रेष्ठ एवं स्वतंत्र, जन्मजन्मांतरों में भी अक्षय, सदासम, अगोचर, शुद्ध, अपने में ही संतुष्ट, शारीरिक विकारों से मुक्त, तथा नित्य अमूर्त के ध्यान में रत, अत: सदा ही मरने अर्थात् देहत्याग में लगी हुई बताया। यह विश्वास भी प्रकट किया कि मृत्यु के साथ आत्मा विद्या के दैवी, अमर, अदृश्य जगत् को प्रयाण कर त्रुटि, मूर्खता, भय, कामवासना आदि से मुक्त हो, सदा के लिए देवताओं के संग के अक्षुण्ण आनंद का लाभ उठाती है और जीवन के शुद्ध सत्य प्रत्यय को प्राप्त हो जाती है। परंतु प्राचीन यूनानी व्याकरणशास्त्री राथेनेअस ने लिखा है कि फ़ीदो स्वयं अफ़लातून के इस ग्रंथ में उसके मुख से कहलाई गई वार्ताओं में अपने मत का यथार्थ चित्रण नहीं मानता था। फ़ीदो के एक अन्य समकालीन ऐस्किनेस ने भी फीदो शीर्षक से एक संवार्ता लिखी थी, परंतु उसमें व्यक्त विचारों का कुछ पता नहीं चलता।
सन्दर्भ
- ↑ Gellius, Aulus. Noctes Atticae (Attic Nights). ii. p. 18.