फाटक

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साँचा:infobox ethnic group फाटक, अहीर जाति की एक शाखा है।

उत्पत्ति

उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र (मथुरा, आगरा, हाथरस, एटा, अलीगढ़, मैनपुरीफ़र्रूख़ाबाद)[१] में स्थानीय रूप से फाटकों को अहीर ही कहा जाता है।[२][३][४] इनके उद्भव कि कथा इस प्रकार है- "एक बार चित्तौड़ के राजा पर दिल्ली के मुस्लिम शासक ने आक्रमण किया। चित्तौड़ नगर के सारे फाटकों पर दिल्ली के सैनिकों ने कब्जा कर लिया परंतु वे 12 फाटकों मे से एक फाटक पर अंत तक विजय प्राप्त नहीं कर सके। इसी 12वें फाटक पर जीत की खुशी में राजा ने घोषणा की कि आज से उसका वंश फाटक नाम से जाना जाएगा।"[२]

इतिहास में

उत्तर प्रदेश डिस्ट्रिक्ट गजेटियर्स, भाग 24 फाटक अहीरों के बारे में उल्लेख है कि जनपद मैनपुरी में यमुना नदी के किनारे बसे हुये फाटक अहीरों ने शेरशाह सूरी को बहुत तंग किया हुआ था व उनके विद्रोह से निजात पाने के लिए शेरशाह सूरी 12000 घुड़सवारों की सेना भेजी थी।[५]

महाबन का किला मूलतः फाटकों के पूर्वज राणा कटेरा ने बनवाया था। उन्होने जलेसर के किले का भी निर्माण कराया था।[६]

फाटक राजकुमार बिजय सिंह ने 1106 (संवत् युग) में "समोहन चौरासी" क्षेत्र मेवाती मालिकों से छीनकर अपने कब्जे में ले लिया, समोहन चौरासी क्षेत्र पर कब्जा करने के बाद, फाटक यमुना नदी की ओर रवाना हुए व स्थानीय मूल निवासियों को विस्थापित करके पूरे शिकोहाबाद परगना पर अधिकार कर लिया।[३][७] विधि विधान का लगातार उल्लंघन करने के कारण फाटक ब्रिटिश शासन के मैनपुरी जिले के अधिकारियों के लिए एक बड़ी चिंता बने हुये थे।[३]

सबूत बताते हैं कि चौहान राजपूत और फाटक अहीर आमतौर पर कन्या भ्रूण हत्या के अभयस्थ थे।[८][९] 1865 में, मिस्टर कोलविन ने मैनपुरी में चौहान और फाटक गांवों की जनगणना के अध्ययन में पाया कि छह गांवों में एक भी कन्या शिशु नहीं थी।[१०]

1857 की क्रांति में

उन्नीसवीं सदी के मध्य में कंसिया नाम के एक फाटक अहीर ने अपने भाई कल्याण सिंह के साथ मिलकर मैनपुरी के ब्रिटिश ज़िला मजिस्ट्रेट उर्विन को मारने की योजना बनाई थी। क्योंकि उर्बिन ने कानून व्यवस्था हेतु बहुत कड़े नियम लागू किए थे जिनसे कंसिया तंग था। परंतु एन वक्त पर उर्बिन ने अपनी सवारी गाड़ी अन्य ब्रिटिश अधिकारी कप्तान अल्कोक के साथ बदल ली और दोनों भाइयों ने मिलकर घिरोरभारौल बीच सड़क पर उर्बिन के बदले कप्तान अल्कोक के टुकड़े टुकड़े कर डाले। पकड़े जाने पर कल्याण सिंह सरकारी गवाह बन गया व कंसिया को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी की सज़ा दी। इस घटना का बाकी के अहीरों पर हितकर असर पड़ा।[३]

1857 की क्रांति के समय अहीरों ने मैनपुरी के विद्रोही राजा तेज़ सिंह को पराजित करके उसकी दो तोपों को भी अपने कब्जे में ले लिया। उनकी इस बहदुरी के सम्मान में ब्रिटिश सरकार ने अहीर नेताओं मैक सिंह व गुलाब सिंह को एक गाँव अनुदान में दे दिया।[११] मैनपुरी जिले में आज़ादी के लिए राष्ट्रीय प्रयास के तहत ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कोई सक्रिय भागीदारी देखने को नहीं मिली। ब्रिटिश अधिकारियों के अनुसार मैनपुरी में कृषक जातियों द्वारा कोई समूहिक विद्रोह की घटना नहीं हुयी अपितु दो जमीदार वर्गों, चौहानों व अहीरों के मध्य जाति संप्रभुता के लिए आपसी संघर्ष हुआ।"[१२][१३]

मैनपुरी डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के लेखक ने यहाँ की स्थिति के बारे में लिखा कि साहूकारों द्वारा पैसे की वसूली हेतु ज़मीन के मालिकों (ठाकुरों या अहीरों) को जमीन से बेदखल करने के लिए सामान्य स्तर से ज्यादा हिम्मत की आवश्यकता होती थी और यह आसान काम न था बल्कि बहुदा अत्यंत खतरनाक साबित होता था।[१४]

मुस्तफाबाद के तहसीलदार रहीमुद्दीन खान के प्रभाव से फाटक अहीर बहुदा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ शांत व बफदार रहे व मैनपुरी के विद्रोही राजा तेज़ सिंह के खिलाफ लड़ रहे भारौल के अहीरों की सहायता करते रहे।[१५]

भारौल के अहीरों ने राजा तेज़ सिंह को सफलतापूर्वक खदेड़ दिया जबकि उन्ही के जाति भाई अन्य अहीरों राम रत्न व रामपुर गाँव के भगवान सिंह ने समूचे मुस्तफाबाद को विद्रोह की स्थिति मे रखा व ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी।[१६]

इन्हें भी देखें

संदर्भ सूत्र

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