प्राणवाद

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एक सामान्य अवैयक्तिक शक्ति पर विश्वास प्राणवाद (Animatism) कहलाता है। इसे 'सप्राणवाद', 'सचेतनवाद', 'जीवात्मावाद' आदि भी कहते हैं। उपरोक्त विश्वास के लिए 'एनिमेटिज्म' नामक शब्द ब्रितानी नृविज्ञानशास्त्री रॉबर्ट मैरेट द्वारा प्रयुक्त हुआ था।

दार्शनिक भाषा में प्राणवाद वह सिद्धांत है जिसके अनुसार भौतिक पदार्थों एवं प्राकृतिक घटनाओं के अंतस्थल में भी (जिनकी व्याख्या वैज्ञानिक व्यक्ति एकमात्र नैसर्गिक नियमों के अन्वेषण और प्रतिपादन द्वारा करते हैं) इच्छाशक्ति के अस्तित्व पर विश्वास किया जाता है।

परिचय

कुछ व्यक्ति जड़ प्रपंच अथवा प्राकृतिक पदार्थों में आत्माओं (spirits) या जीवात्माओं (souls) का तो अस्तित्व स्वीकार नहीं करते, परंतु उनमें भी एक प्रकार का व्यक्तित्व और इच्छाशक्ति या समीहा (will) मानते हैं। उदाहरणार्थ, वे यह तो नहीं कहेंगे कि कीट पंतगों, पेड़ पौधों ग्रह उपग्रहों या तारागण आदि में मनुष्य की जैसी आत्माएँ हैं, परंतु वे यह विश्वास अवश्य करते हैं कि इस प्रकार के पदार्थों में भी इच्छाशक्ति या समीहा होती है। मानवों की ऐसी ही आस्था को प्राणवाद कहते हैं।

कुछ विचारकों एवं आधुनिक वैज्ञानिकों की दृष्टि में सर्वजीववाद या जड़समीहावाद मानव का एक प्रारंभिक विश्वासमात्र है, प्रमाणपुष्ट सिद्धांत नहीं। उनके अनुसार वह मनुष्य के उन मानसिक प्रयत्नों में से एक है जो उसने अपने बौद्धिक जीवन के शैशवकाल में जड़ जगत् के क्रियाकलाप को समझने के लिए किए। चूँकि उसने अपनी अनेक शारीरिक क्रियाओं को अपनी व्यक्तिगत समीहा से समुद्भूत या संचालित होती हुई अनुभव किया था, अत: यह उसके लिए स्वाभिक ही था कि वह समय समय पर घटनेवाली या सतत होनेवाली प्राकृतिक घटनाओं का भी उद्गम एक प्रकार की व्यक्तिगत समीहा या इच्छाशक्ति को ही माने। परंतु उसकी यह मान्यता या आस्था मानवीय क्रियाओं और प्राकृतिक घटनाओं के अपर्याप्त एवं केवल बाह्य सादृश्य पर ही आधारित होने के कारण तार्किक दृष्टि से समीचीन नहीं समझी जाती और उसे आवश्यक एवं संबंधित तथ्यों के निरीक्षण न करने के दोष से युक्त भी कहा जा सकता है। जब स्वयं मनुष्य के शरीर की भी अनेक क्रियाएँ, जैसे हृदय की गति, रक्त का संचरण, पाचनक्रिया आदि, उसकी ऐच्छिक क्रियाएँ नहीं कही जा सकतीं, तो फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि वृक्षादि के विकास एवं ग्रहों के गमनादि की क्रियाएँ समीहापूर्वक संचालित होती हैं?