प्रवेशद्वार:दर्शनशास्त्र/चयनित लेख/2

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तर्कशास्त्र, अनुमान के वैध नियमों का व्यवस्थित अध्ययन है, अर्थात् ऐसे संबंध जो अन्य तर्कवाक्यों (परिसर) के एक सेट के आधार पर एक तर्क (निष्कर्ष) की स्वीकृति की ओर ले जाते हैं। अधिक मोटे तौर पर, युक्ति का विश्लेषण और मूल्यांकन तर्कशास्त्र है।

यूरोप में तर्कशास्त्र का प्रवर्तक एवं प्रतिष्ठाता यूनानी दार्शनिक अरस्तू (३८४-३२२ ई० पू०) समझा जाता है, यों उससे पहले कतिपय तर्कशास्त्रीय समस्याओं पर वैतंडिक (सोफिस्ट) शिक्षकों, सुकरात तथा अफलातून या प्लेटो द्वारा कुछ चिंतन हुआ था। भारतीय दर्शन में अक्षपाद गौतम या गौतम (३०० ई०) का न्यायसूत्र पहला ग्रंथ है जिसमें तथाकथित तर्कशास्त्र की समस्याओं पर व्यवस्थित ढंग से विचार किया गया है। उक्त सूत्रों का एक बड़ा भाग इन समस्याओं पर विचार करता है, फिर भी उक्त ग्रंथ में यह विषय दर्शनपद्धति के अंग के रूप में निरूपित हुआ है। न्यायदर्शन में सोलह परीक्षणीय पदार्थों का उल्लेख है। इनमें सर्वप्रथम प्रमाण नाम का विषय या पदार्थ है। वस्तुतः भारतीय दर्शन में आज के तर्कशास्त्र का स्थानापन्न 'प्रमाणशास्त्र' कहा जा सकता है। किन्तु प्रमाणशास्त्र की विषयवस्तु तर्कशास्त्र की अपेक्षा अधिक विस्तृत है। अधिक पढ़ें…