प्रवेशद्वार:इतिहास/चयनित लेख/4

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कार्कोट साम्राज्य की भूसीमा

कर्कोट या कर्कोटक कश्मीर का एक कायस्थ क्षत्रिय राजवंश था, जिसने गोनंद वंश के पश्चात् कश्मीर पर अपना आधिपत्य जमाया। 'कर्कोट' पुराणों में वर्णित एक प्रसिद्ध नाग का नाम है। उसी के नाम पर इस वंश का नाम पड़ा। गोनंद वंश के अंतिम नरेश बालादित्य पुत्रहीन था। उसने अपनी कन्या का विवाह एक कायस्थ दुर्लभवर्धन से किया जिसने कर्कोंट कायस्थ क्षत्रिय वंश की स्थापना लगभग ६२७ ई. में की। इसी के राजत्वकाल में प्रसिद्ध चीनी चात्री युवान्च्वांग भारत आया था। उसके ३० वर्ष राज्य करने के पश्चात् उसका पुत्र दुर्लभक गद्दी पर बैठा और उसने ५० वर्ष तक राज्य किया। फिर उसके ज्येष्ठ पुत्र चंद्रापीड़ ने राज्य का भार सँभाला। इसने चीनी नरेश के पास दूत भेजकर अरब आक्रमण के विरुद्ध सहायता माँगी थी।

अरबों आक्रमणकारी इस समय तक कश्मीर पहुँच चुके थे। यद्यपि चीन से सहायता नहीं प्राप्त हो सकी तथापि चंद्रापीड़ ने कश्मीर को अरबों से आक्रांत होने से बचा लिया। चीनी परंपरा के अनुसार चंद्रापीड़ को चीनी सम्राट् ने राजा की उपाधि दी थी। संभवत: इसका तात्पर्य यही था कि उसने चंद्रापीड़ के राजत्व को मान्यता प्रदान की थी। कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार चंद्रापीड़ की मृत्यु उसके अनुज तारापीड़ द्वारा प्रेषित कृत्या से हुई थी। चंद्रापीड़ ने साढ़े साठ वर्ष राज्य किया। तत्पश्चात् तारापीड़ ने चार वर्ष तक अत्यंत क्रूर एवं नृशंस शासन किया। उसके बाद ललितादित्य मुक्तापीड़ ने शासनसूत्र अपने हाथ में ले लिया। अधिक पढ़ें…