प्रबन्ध (संस्कृत)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

प्रबन्ध, मध्यकालीन संस्कृत साहित्य की एक विधा थी। इनमें प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवन के अर्ध-ऐतिहासिक विवरण हैं। इनकी रचना १३वीं शताब्दी के बाद के काल में मुख्यतः गुजरात और मालवा के जैन विद्वानों ने किया। प्रबन्धों की भाषा बोलचाल की संस्कृत है जिसमें स्थानीय बोलियों का भी पुट है।

प्रमुख प्रबन्ध

हेमचन्द्राचार्य द्वारा १२वीं शताब्दी में रचित त्रिशती-शलाका-पुरुष-चरित में लगभग ६३ व्यक्तियों के जीवनचरित दिए हुए हैं। किन्तु 'प्रबन्ध' शीर्षक से जो सबसे पुराना ग्रन्थ है, वह जिनभद्र द्वारा रचित 'प्रबन्धावली' (१२३४ ई) है। इसमें ४० ऐतिहासिक व्यक्तियों (अधिकांश पश्चिमी भारत के) के प्रबन्ध हैं। इसी में 'पृथ्वीराज प्रबन्ध' भी है। यह अपने पूर्ण रूप में उपलब्ध नहीं है लेकिन इसके कुछ भाग उपलब्ध हैं।

अन्य प्रमुख प्रबन्ध ये हैं-

  • प्रबन्धचन्द्र द्वारा रचित 'प्रबन्धचरित' (१२७७ ई)
  • लघुप्रबन्धसंग्रह (१३वीं शताब्दी का, रचनाकार अज्ञात)
  • मेरुतुंग द्वारा रचित 'प्रबन्धचिन्तामणि' (१३०५ ई) - यह गुजरात के आरम्भिक मध्यकाल के इतिहास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
  • जिनभद्र द्वारा रचित 'विविध-तीर्थ-कल्प' अथवा कल्पप्रदीप (१३३३ ई)
  • उपासक गच्छ के कक्कसूरि द्वारा रचित 'नाभि-नन्दन-निनोद्धार-प्रबन्ध' (१३३६ ई)
  • राजशेखर सूरि द्वारा रचित प्रबन्ध कोश (१३४९ ई) -- इसको 'चतुर्विंशति प्रबन्ध' भी कहते हैं। इसमें २४ प्रबन्ध हैं।
  • पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह (कई व्यक्तियों द्वारा स्सम्मिलित रूप से रचित, १५वीं शताब्दी के पूर्व)
  • जिनमण्डन द्वारा रचित 'कुमारपाल-प्रबन्ध' (१४३५ ई)
  • सुभद्रशील गनि द्वारा रचित 'पञ्चशती-प्रबन्ध-संग्रह' (१४६४ ई)

इन्हें भी देखें