प्रकार्यात्मक मनोविज्ञान

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

मनोविज्ञान में प्रकार्यवाद (functionalism) एक ऐसा स्कूल या सम्प्रदाय है जिसकी उत्पत्ति संरचनावाद के वर्णनात्मक तथा विश्लेषणात्मक उपागम के विरोध में हुआ। विलियम जेम्स (1842-1910) द्वारा प्रकार्यवाद की स्थापना अमेरिका के हारवर्ड विश्वविद्यालय में की गयी थी। परन्तु इसका विकास शिकागो विश्वविद्यालय में जान डीवी (1859-1952) जेम्स आर एंजिल (1867-1949) तथा हार्वे ए॰ कार (1873-1954) के द्वारा तथा कोलम्बिया विश्वविद्यालय के ई॰एल॰ थार्नडाइक तथा आर॰एफ॰ बुडवर्थ के योगदानों से हुयी।

प्रकार्यवाद में मुख्यतः दो बातों पर प्रकाश डाला- व्यक्ति क्या करते है? तथा व्यक्ति क्यों कोई व्यवहार करते है? वुडवर्थ (1948) के अनुसार इन दोनों प्रश्नों का उत्तर ढूढ़ने वाले मनोविज्ञान को प्रकार्यवाद कहा जाता है। प्रकार्यवाद में चेतना को उसके विभिन्न तत्वों के रूप में विश्लेषण करने पर बल नहीं डाला जाता बल्कि इसमें मानसिक क्रिया या अनुकूल व्यवहार के अध्ययन को महत्व दिया जाता है। अनुकूल व्यवहार में मूलतः प्रत्यक्षण स्मृति, भाव, निर्णय तथा इच्छा आदि का अध्ययन किया जाता है क्योंकि इन प्रक्रियाओं द्वारा व्यक्ति को वातावरण में समायोजन में मदद मिलती है। प्रकार्यवादियों ने साहचर्य के नियमों जैसे समानता का नियम, समीपता का नियम तथा बारंबारता का नियम प्रतिपादित किया जो सीखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका बनाता है।

कोलम्बिया प्रकार्यवादियों में ई॰एल॰ थार्नडाइकआर॰एस॰ वुडवर्थ का योगदान सर्वाधिक रहा। थार्नडाइक ने एक पुस्तक 'शिक्षा मनोविज्ञान' लिखी जिसमें इन्होने सीखने के नियम लिखे हैं। थार्नडाइक के अनुसार मनोविज्ञान उद्दीपन-अनुक्रिया (एस॰आर॰) सम्बन्धों के अध्ययन का विज्ञान है। थार्नडाइक ने सीखने के लिये सम्बन्धवाद का सिद्धान्त दिया, जिसके अनुसार सीखने में प्रारम्भ में त्रुटियाँ अधिक होती है किन्तु अभ्यास देने से इन त्रुटियों में धीरे-धीरे कमी आ जाती है।

वुडवर्थ ने अन्य प्रकार्यवादियों के समान मनोविज्ञान को चेतन तथा व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान माना। इन्होने सीखने की प्रक्रिया को काफी महत्वपूर्ण बताया क्योंकि इससे यह पता चलता है कि सीखने की प्रक्रिया क्यों की गयी। वुडवर्थ ने उद्वीपक-अनुक्रिया के सम्बन्ध में परिवर्तन करते हुये प्राणी की भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हुये उद्वीपक-प्राणी-अनुक्रिया (S.O.R. ) सम्बन्ध को महत्वपूर्ण बताया।

प्रकार्यवाद का शिक्षा में योगदान

  • (१) प्रकार्यवाद ने मानव व्यवहार को मूलतः अनुकूल तथा लक्ष्यपूर्ण बताया। अतः स्कूलों का प्रमख लक्ष्य बच्चों को समाज में समायोजित करना होना चाहिये। सीखने की प्रक्रिया में वातावरण की महत्ता पर बल दिया गया। अतः अध्यापकों का यह प्रयास होना चाहिये कि विद्यार्थियों को स्वस्थ वातावरण प्रदान किया जाये जो उनकी सीखने की प्रक्रिया को प्रेरित करे।
  • (२) इस विचारधारा ने पहले से चले आ रहे सैद्धान्तिक प्रत्ययों (कॉन्सेप्ट) जोकि पाठ्यक्रम के अंग थे, में क्रांतिकारी बदलाव लाये। स्कूल पाठ्यक्रम में करके सीखना ( Learnning by doing ) पर बल दिया जाने लगा।
  • (३) शिक्षार्थियों की क्षमता में वैयक्तिक भिन्नता पर बल डाला गया।
  • (४) प्रकार्यवाद ने इस बात पर बल दिया कि अलग-अलग आयु स्तरों के बच्चों की आवश्यकतायें भिन्न-भिन्न होती हैं।
  • (५) प्रकार्यवाद ने शिक्षा में 'उपयोगिता सिद्धान्त' (प्रैग्मटिज्म) को जन्म दिया। इसने सीखने की प्रक्रिया में बालक की महता पर बल दिया। पाठ्यक्रम में केवल उन्हीं विषयों को सम्मिलत करना चाहिये जिनकी समाज में उपयोगिता हो।
  • (६) इस सम्प्रदाय (स्कूल) ने शिक्षा में वैज्ञानिक जानकारी पर बल डाला। साथ ही शिक्षण व सीखने के लिये नयी विधियों जैस, कार्य क्रमित सीखना (Programmed Learning ) जैसी शिक्षण विधि को विकसित किया।
  • (७) प्रकार्यवाद में (विशेषकर थार्नडाइक ने) इस बात पर बल दिया कि शिक्षक को अध्यापन कार्य करने के पहले शैक्षिक उद्देश्यों को परिभाषित कर लेना चाहिए, तभी शिक्षार्थी के व्यवहार में परिवर्तन ला सकते है। शिक्षक को उन परिस्थितियों पर अधिक बल डालना चाहिये जो आम जीवन में अक्सर देखे जाते है तथा उन अनुक्रियाओं पर बल डालना चाहिये जिनकी जीवन में आवश्यकता हो।

इन्हें भी देखें