पौधशाला

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एक पौधशाला का दृष्य

पौधशाला (nursery) वह स्थान है जहाँ पौधे उगाए जाते हैं और अन्यत्र लगाए जाने योग्य आकार प्राप्त करने तक उनकी विशेष देखरेख की जाती है। पौधशालाएँ कई प्रकार की हो सकती हैं जिनमें से कुछ पौधशालाओं से सामान्य जनता पौधे खरीद सकती है।

पौधशालाएँ अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। इनसे बाग के लिए पौधे तो प्राप्त होते ही हैं पौधशालाएँ कृषि, वानिकी, संरक्षण जीवविज्ञान की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्व रखतीं हैं।

पौधशाला की तैयारी

पौधशाला एक सुरक्षित स्थान है, जहाँ नवजात पौधे विकसित किए जाते हैं। नवजात पौधों को रोपाई के लिए ले जाने से पूर्व तक उनकी देखभाल वहीं की जाती है। वैसे बीज जिन्हें सीधे बोना मुश्किल हैं जैसे- टमाटर, बैगन, मिर्च, फूलगोभी, बंधागोभी आदि।

नर्सरी बेड का आकार

33 फुट लंबा, 2 फुट चौड़ा तथा 2 फुट ऊँची माप की 10-15 क्यारियां एक एकड़ खेती करने के लिए बिचड़ा डालने के लिए पर्याप्त होती हैं। ईंट या स्थानीय पत्थरों या संसाधनों से उपरोक्त माप की क्यारियां बना लेते हैं। इन्हें सीमेंट या मिट्टी के गारा जोड़ाई कर सकते हैं। सीमेंटेड जोड़ाई करने पर जमीन की सतह से थोड़ा ऊपर अगल – बगल में सुराख (छेद) छोड़ देना चाहिए ताकि फालतू पानी इनसे होकर बाहर निकल जाएँ। क्यारी के ऊपर खंभे बने रहते हैं जिसपर तार की जाली रखकर सफेद प्लास्टिक रखा जा सके ताकि पौधों को तेज धुप एवं ओला वृष्टि बैगरह से बचाया जा सके। इसके अतिरिक्त, 2 फुट ऊँची दिवार के ऊपर एक तार की जाली रखकर काला प्लास्टिक से बीजों की क्यारी को ढँक देते है। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध लकड़ियों से भी तार की जाली की तरह का कम लिया जा सकता है। सब्जियों की खेती करने के लिए बिचड़ा डालने के लिए स्थायी पौधशाला मिट्टी को बदल देनी चाहिए। इस प्रकार यह हमारा स्थायी नर्सरी बेड रहेगा। एक एकड़ सब्जियों की खेती करने के इए बिचड़ा तैयार करने हेतु 3-4 डिसमिल जमीन की आवश्यकता होती है।

नर्सरी बेड (पौधशाला)) मे भरने हेतु मिश्रण तैयार करना

100 वर्ग फुट पौधशाला के लिए निम्न मिश्रण तैयार करते हैं – 1. गोबर खाद - 4 टोकरी (एक टोकरी = 25 कि.) 2. बकरी खाद - 4 टोकरी 3. कम्पोस्ट खाद - 4 टोकरी 4. धान का भूसा - 4 टोकरी 5. लाल मिट्टी या खेत का मिट्टी - 4 टोकरी 6. दोमट मिट्टी - 4 टोकरी 7. बालू (नदी का) - 4 टोकरी 8. राख - 3 टोकरी कुल: 31 टोकरी उपरोक्त सभी सामग्रियों को अलग-अलग महीन कर तार की छलनी से छानकर, जैसे सीमेंट का गारा तैयार करते हैं, वैसे ही मिला लेना चाहिए। केवल धान के भूसा को नहीं छानेगें। इस प्रकार मिश्रण तैयार हो जायेगा। अगर संभव हो सके तो भाप द्वारा इन मिश्रणों को स्ट्रालाइज कर लें।

नर्सरी में बेड को भरना

नर्सरी बेड में सबसे नीचे 6 ईंच तक छोटा - छोटा कंकड़ - पत्थर या झाँवा ईंट का टुकड़ा भरते हैं। इसके ऊपर एक फुट नदी का साफ बालू भरते हैं। इसके ऊपर एक किलो शुद्ध मिश्रण मिट्टी के साथ आधा किलो कॉपर समूह को कोई दवा जैसे- फाईटोलान, ब्लू कापर या कॉपर अक्सिक्लोराइड मिलकर छिड़क देते हैं जिसकी मोटाई लगभग एक ईंच होती है। अब इस दवा के ऊपर शुद्ध मिश्रण 4 ईंच छिड़क कर समतल कर लेते हैं। इसके बाद फौव्वारा से मिश्रण की मिट्टी को पूरा नाम कर लेते हैं। नर्सरी बेड की ऊँचाई ऊपर से एक दो ईंच खाली रखनी चाहिए। इसके बाद मार्कर से मार्क कर लेते हैं। मार्कर एक लकड़ी का बना होता है जिसमें कतार से कतार के लिए 4 सें. मी. तथा गहराई 1 सें.मी. रहती है। मार्कर को नाम मिश्रण के ऊपर हल्का दबाने से मार्क बन जाते हैं। इस तरह पूरे नर्सरी बेड में मार्क कर लेते हैं।

नर्सरी बेड मे बीज डालने का तरीका

इस प्रकार मार्कर (चिन्ह बनाने वाला) से पूरे बेड में सुराख या चिन्ह बनाकर प्रत्येक सुराख में एक - एक बीज को डालते हैं। यदि बीज सुराख में अंदर न जाए तो उसे सीक से अंदर कर दें। यदि बीज उपचारित है तो ठीक है अन्यथा बीज को थीरम, कैप्टन या वाविस्टिन से सूखा उपचारित कर लें। इससे बीज जनित बीमारियों से भी जा सकता है। बीज बोने के बाद मिश्रण का हल्का छिड़काव कर बीजों को ढँक तथा हाथ से हल्का दबा देते हैं। फिर एक किलो शुद्ध बालू में 250 ग्राम फाइटोलान दवा मिलाकर बीज को ऊपर छिड़क देते हैं। तत्पश्चात 100 ग्राम फ्यूराडान 3 जी डालकर फौव्वारा से सिंचाई कर देते हैं ताकि ये दवाइयां घुलकर मिट्टी में चली जायें जहाँ किसी तरह की बीमारी लगने की संभावना न रहें। बालू की सतह के ऊपर जो दवाई डाली गई उससे मिट्टी में से होकर आने वाली बीमारियों से बीज की रक्षा होती है। कंकड़ – पत्थर भी कुछ सीमा तक यह कार्य करता है। नर्सरी बेड का फालतू पानी बालू से लीचिंग का पत्थर के माध्यम से बाहर निकल जाता है। इस प्रकार नर्सरी बेड जारों तरफ से सुरक्षित हो जाता है। बिचड़ा तैयार करने वाले पौधों जैसे – टमाटर, बैंगन, मिर्चा फूलगोभी, बंधागोभी तथा विशेषकर शिमला मिर्च में नर्सरी बेड में बीज डालने के 14वें से 21वें दिन के भीतर पौधगलन बीमारी के प्रकोप की संभावना रहती है। अत: 14वें दिन पर नर्सरी बेड में 250 ग्राम फाइटोलान दवा या कॉपर औक्सिक्लोराईड समूह की कोई भी दवा आधा किलों बालू में मिलाकर छिड़क दें ताकि पौधों को बचाया जा सकें। नर्सरी बेड में कभी भी बीज को छिड़कर नहीं डालें। उपरोक्त विधियों के हिसाब से ही बीजों को नर्सरी बेड में डालें। विशेषकर सब्जियों की संकर किस्मों के लिए इस विधि का प्रयोग अवश्य करें। देशी या उन्नत किस्मों के लिए भी इस विधि का प्रयोग करें क्योंकि नवजात पौधों से ही आगे चलकर फल मिलता हैं। नवजात पौधे स्वस्थ एवं मजबूत होगें तभी उसमें स्वस्थ एवं अधिक फल आयेंगे।

नर्सरी बेड मे बीज डालना

नर्सरी बेड में बीज डालने के तुरंत बाद उसको काला प्लास्टिक से ढँक दें। काला प्लास्टिक से ढंकने से बेड में गर्मी रहती है। जो नमी वाष्प बनकर उड़ती है वह काला प्लास्टिक की निचली सतह में बूँद – बूँद कर जमा रहती है एवं पुन: मिश्रण में मिल जाती है। अत: बीज डालने के समय की नमी पर ही पौधा अंकुरित हो जाता है। शिमला मिर्च सात दिन बाद तथा टमाटर चार दिन बाद अंकुरित होने के उपरांत ही काला प्लास्टिक हटा दें। 1100 वर्ग फुट में संकर शिमला मिर्च के 50 ग्राम बीज तथा संकर टमाटर के 25 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज अंकुरित होने के पश्चात् सुबह-शाम आवश्यकतानुसार पौधों में फौव्वारा या हजारा से सिंचाई करेंगे। काला प्लास्टिक से 2-3 फुट ऊपर ऊँचे खंभों पर तार की जाली लगा कर उसे सफेद प्लास्टिक से ढँक दें ताकि पौधों की सुरक्षा हो सके। इस विधि द्वारा तैयार किए गए पौधे 21 दिन बाद रोपाई के लायक हो जाते हैं। ये पौधे काफी स्वस्थ, रोग एवं कीड़ा मुक्त हो जाते है। अत: इनमें फल भी अधिक लगते हैं। फलस्वरूप उपज की वृद्धि होती है। 21 दिन से पौधों की रोपाई शुरू कर 30 दिन के अंदर खत्म कर देनी चाहिए। इस प्रकार एक आदर्श नर्सरी बेड तैयार कर सकते हैं।

आवश्यक जानकारी

सब्जियाँ एवं फल हमारे भोजन का अनिवार्य अंग है। ये केवल सभी प्रकार के विटामिनों एवं खनिजों का स्रोत ही नहीं, बल्कि मानव के लिए आवश्यक प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराते हैं, भोजन विशेषज्ञों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की सामान्य वृद्धि एवं विकास के लिए 250 ग्राम सब्जी की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। सन्तुलित आहार के लिए 65 ग्राम जमीन के अंदर वाली, 110 ग्राम पचियों वाली सब्जियाँ एवं 65 ग्राम अन्य सब्जियाँ होनी चाहिए। किन्तु भारत में प्रति व्यक्ति सब्जी की खपत का अनुमान केवल 70 ग्राम लगाया गया है। जहाँ तक फल उपयोग का संबंध है। इसकी स्थिति बहुत ही दयनीय हैं ज्यादातर लोगों को फल की उपलब्धि “न” के बराबर होती है। खाने में सब्जी एवं फल का होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वास्तव में हमारा उद्देश्य “अधिक सब्जी व फल उगाओं एवं अधिक सन्तुलित आहार पाओ” होना चाहिए।

नर्सरी मे बीज ट्रे का उपयोग

सीड ट्रे रोपण एक नई अंकुर तकनीक है जो हाल के वर्षों में विपरीत मौसम सब्जी उत्पादन का उपयोग करता है। पारंपरिक अंकुर विधि की तुलना में,इसके निम्नलिखित फायदे हैं: बुवाई के बाद,अंकुर जल्दी से उग जाते हैं, बीज की बचत और अग्रिम में कटाई,आदि। बीज ट्रे मे बीज डालने से पहले हमे बीज ट्रे को 20 मिनट धूप मे रखना चाहिए एवं आवश्यकता अनुसार कोकोपीट को पानी मे भिगोएँ |अब पानी से कोकोपीट को निकालकर बीज ट्रे में भरें और उंगली से हल्के से दबाएँ | आप चाहें तो कोकोपीट मे थोड़ा जैविक खाद मिला सकते हैं |अब चुने हुये टमाटर, बैगन, मिर्च, फूलगोभी, बंधागोभी के अच्छे किस्म की बीज लेकर एक-एक बीज प्रत्येक खाने मे डालें | बीज डालने के पश्चात थोड़ा –थोड़ा कोकोपीट ऊपर से डाल दें | बीज ट्रे को नर्सरी के अंदर रखें आवश्यकता अनुसार पानी डालें | 7 से 10 दिन में बीज अंकुरित होना प्रारम्भ हो जायेगा | 21 दिन के तैयार पौधे को कृषी क्षेत्र मे लगाया जा सकता है | स्वस्थ पौधे से उत्पादन में वृद्धी होती है |

नर्सरी में सीडलिंग ट्रे का उपयोग से अनेक लाभ

1) भुजनित रोगों से मुक्ति | 2) शतप्रतिशत विषाणुरोग रहित पौध | 3) बेमौसमी पौध तैयार करना संभव | 4) कम क्षेत्र मे अधिक उत्पादन करना संभव व एक वर्ष मे 5-6 बार पौध तैयार की जा सकती है | 5) पौध को ट्रे सहित दूर स्थानों तक ले जाना संभव | 6) ऐसी सब्जियों जिनकी परंपरागत विधी से पौध तैयार करना संभव नहीं जैसे बेल वाली सब्जियाँ ,का भी पौध तैयार की जा सकती है | 7) पौध की बढ़वार एक समान होती है | 8) पौध तैयार कर बेचने का व्यवसाय किया जा सकता है | 9) पौध तैयार करने की अवधी निश्चित है जो लगभग 25 से 30 दिन होती है | 10) यह तकनीक सामान्य तथा संकर क़िस्मों के बीज उत्पादन में बहुत उपयोगी हो सकती है |


बाहरी कड़ियाँ

nursery addhyan ki drishti se mukhtaya 3 prakar ki hoti hai.