परिधीय संवहिनी रोग

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परिधीय संवहिनी रोग
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
Pvd002.jpg
पी.वी.डी. में हाथ-पैरों में सूजन भी आ सकती है।
आईसीडी-१० I73.9
आईसीडी- 443.9
डिज़ीज़-डीबी 31142
ईमेडिसिन med/391  साँचा:eMedicine2
एम.ईएसएच D016491

परिधीय संवहिनी रोग (अंग्रेज़ी:पेरिफेरल वैस्कुलर डिज़ीज़, लघु:पीवीडी (PVD), जिसे परिधीय धमनी रोग (पेरिफेरल आर्टरी डिज़ीज़, PAD) या पेरिफेरल आर्टरी ऑक्ल्यूसिव डिज़ीज़ (PAOD) भी कहते हैं, हाथोंपैरों में बड़ी धमनियों के संकरा होने से पैदा होने वाली रक्त के बहाव में रुकावट के कारण होने वाली सभी समस्याओं को कहते हैं। इसका परिणाम आर्थेरोस्क्लेरोसिस, सूजन आदि जिनसे स्टेनोसिस, एम्बोलिज़्म, या थ्रॉम्बस गठन हो सकती है।[१] इससे विकट या चिरकालिक एस्केमिया (रक्त आपूर्ति में कमी), विशेषकर पैरों में हो सकती है। यह रोग होने की संभावना उन लोगों में अधिक होती है, जो उच्च रक्तचाप, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, उच्च कॉलेस्ट्रॉल और निष्क्रिय जीवनशैली के रोगी होते हैं या उनके रक्त में वसा या लिपिड की मात्रा अधिक होती है। साथ ही धूम्रपान ज्यादा करने वालों को भी ये समस्या होती है।[२] इसके अलावा, रक्त का थक्का जमने के कारण रक्त-शिराएं अवरोधित हो जाती हैं। इस रोग में रक्त धमनियों की भीतरी दीवारों पर वसा जम जाती है। ये हाथ पाँवों के ऊतकों में रक्त के प्रवाह को रोकता है। रोग के प्राथमिक चरण में चलने या सीढ़ियां चढ़ने पर पैरों और कूल्हों में थकान या दर्द महसूस होता है। इस समय रोगी इन लक्षणों पर ध्यान नहीं देते हैं।[३] समय के साथ-साथ इसके अलावा अन्य लक्षणों में दर्द, सुन्न होना, पैर की माँसपेशियों में भारीपन आते हैं। शारीरिक काम करते समय मांसपेशियों को अधिक रक्त प्रवाह चाहिए होता है।[१] यदि नसें संकरी हो जाएं तो उन्हें पर्याप्त रक्त नहीं मिलता। आराम के समय रक्त प्रवाह की उतनी आवश्यकता नहीं होती इसलिए बैठ जाने से दर्द भी चला जाता है।

उपचार

आरंभ में रोगी शारीरिक श्रम करते हुए दर्द महसूस करते हैं। फिर जैसे जैसे रोग बढ़ता जाता है रोगी को आराम के समय भी दर्द रहने लगता है। अनुसंधानों के अनुसार रेशा युक्त भोजन शुरु करने से कार्डियोवैस्कुलर आशंकाओं में लगभग १० प्रतिशत तक की कमी आती है। जिन रोगियों में इस रोग होने का पता लग चुका है उनको शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय होना पड़ेगा तभी उनकी सेहत सुधरेगी। नियमित रूप से त्वचा व पैरों की देखभाल महत्त्वपूर्ण होती है जिससे इस रोग से बचा जा सके। रोगी को चाहिए की प्रतिदिन अपने पैरों की जांच करें कि उनमें कोई खरोंच, कटना-फटना, ज़ख्म जैसी समस्या तो नहीं है।[१] पैरों को गुनगुने पानी में धोना चाहिए उन्हें नरम साबुन से साफ कर अच्छी तरह सुखाना चाहिए। इसके अलावा धूम्रपान कम करें, दैनिक व्यायाम करें, कम-वसा और कम कोलेस्ट्रॉल वाले भोजन का सेवन करें। और सबसे महत्त्वपूर्ण अपने रक्त चाप पर नियंत्रण रखें।

सांख्यिकी

सामान्यत: पुरुषों में ये समस्या महिलाओं की तुलना में अधिक होती है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन में हाल में हुए शोधों से ज्ञात हुआ है कि पेरिफेरल वैस्कुलर डिजीज से ग्रसित १० प्रतिशत रोगियों में मरोड़ उठने यानि इंटरमिटेंट क्लॉडिकेशन के लक्षण होते हैं। ४० प्रतिशत लोग पैर के दर्द की शिकायत नहीं करते और शेष ५० प्रतिशत लोगों में विभिन्न किस्म के लक्षण प्रकट होते हैं। अन्य वैज्ञानिक अनुसंधान दर्शाते हैं की पीवीडी बढ़ती के साथ बढ़ती है। ४० वर्ष से अधिक के ८० लाख पुरुषों और महिलाओं को पीवीडी की समस्या है। अनुमानत: यह दर ५० से ६० वर्ष के लोगों में १ से २.५ प्रतिशत होती है और ६५ वर्ष से अधिक आयु के लोगों में ५-९ प्रतिशत होती है। पीवीडी के ३० प्रतिशत रोगियों को हृदयाघात से मृत्यु का जोखिम होता है।[२] गैर मधुमेह ग्रस्त महिलाओं की तुलना में मधुमेह की शिकार महिलाओं में पेरीफेरल वेस्कुलन डिजीज का खतरा ७.६ गुना अधिक होता है।[४]

सन्दर्भ

  1. पी.वी.डी. स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।। हिन्दुस्तान लाइव। १३ अप्रैल २०१०
  2. कहीं सुन्न न हो जाएं पैर। हिन्दुस्तान लाइव। ४ अगस्त २०१०
  3. कार्डियक व मधुमेह रोगी नसों के प्रति रहे सचेतसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]। याहू जागरण
  4. मधुमेह की जांच जरूर कराएं महिलाएंसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]। याहू जागरण

बाहरी कड़ियाँ