पृथ्वी का गुरूत्व

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नासा (NASA) के ग्रेस (GRACE) मिशन द्वारा मापा गया धरती का गुरुत्व

पृथ्वी के सतह के निकट किसी पिण्ड के इकाई द्रव्यमान पर लगने वाला पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी का गुरुत्व कहलाता है। इसे g के रूप में निरूपित किया जाता है। यदि कोई पिण्ड धरती के सतह के निकट गुरुत्वाकरण बल के अतिरिरिक्त किसी अन्य बल की अनुपस्थिति में स्वतंत्र रूप से गति कर रही हो तो उसका त्वरण g के बराबर होगा। इसका मान लगभग 9.81 m/s2होता है। (ध्यान रहे कि G एक अलग है; यह गुरूत्वीय नियतांक है।) g का मान पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है।

g को त्वरण की भातिं भी समझा जा सकता है। यदि कोई पिंड पृथ्वी से ऊपर ले जाकर छोड़ा जाय और उस पर किसी प्रकार का अन्य बल कार्य न करे तो वह सीधा पृथ्वी की ओर गिरता है और उसका वेग एक नियत क्रम से बढ़ता जाता है। इस प्रकार पृथ्वी के आकर्षण बल के कारण किसी पिंड में उत्पन्न होने वाली वेगवृद्धि या त्वरण को गुरूत्वजनित त्वरण कहते हैं। इसे अंग्रेजी अक्षर g द्वारा व्यक्त किया जाता है। ऊपर कहा जा चुका है कि इसे किसी स्थान पर गुरूत्व की तीव्रता भी कहते हैं।

पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के अनुसार g के मान में परिवर्तन

गुरूत्वजनित त्वरण अर्थात g का मान पृथ्वी के केंद्र से दूरी के अनुसार घटता बढ़ता है, अर्थात इस दूरी के बढ़ने पर यह घटता है और दूरी घटने पर बढ़ता है। इसलिए समुद्रतल पर इसका मान अधिक तथा पहाड़ों पर कम होता है। इसी प्रकार भूमध्य रेखा पर इसका मान ध्रुवों की अपेक्षा कम होता है, क्योंकि पृथ्वी ध्रुवों पर कुछ चिपटी है जिसके कारण पृथ्वी के केंद्र से ध्रुवों की दूरी भूमध्यरेखा की अपेक्षा कम है।

समुद्रतल पर g0 का मान निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्राप्त किया जा सकता है:

g0 = 978.049 (1 + 0.0052884 Sin2 f - 0.0000059 Sin22f)

सें.मी. प्रति सें. प्रति सें.; जहाँ f उस स्थान का अक्षांश (latitude) है।

यदि कोई स्थान समुद्रतल से h ऊँचाई पर हो तो वहां g का मान अर्थात g h. निकटतम मान तक निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है:

gh = (g0 - .0003086 h) cm. sec. sec.

सामान्यतया पृथ्वीतल पर g का मान अक्षांशों के अनुसार ९७८ और ९८३.२ सेंमी./से. से. अथवा ३२.०९ और ३२.२६ फुट/से. से. के बीच मे रहता है। ये मान समुद्रतलों पर होते हैं। g का मात्रक सेमी/सेकण्ड2 होता हैं |पृथ्वी तल से ऊंचाई पर जाने पर g का मान घटता है

विश्व के विभिन्न शहरों में गुरुत्व जनित त्वरण का मान

अम्सटर्डम 9.813 m/s² इस्तानबुल 9.808 m/s² पेरिस 9.809 m/s²
एथेंस 9.807 m/s² हवाना 9.788 m/s² रियो डी जेनेरियो 9.788 m/s²
आकलैण्ड 9.799 m/s² हेल्सिंकी 9.819 m/s² रोम 9.803 m/s²
बैंकाक 9.783 m/s² कुवैत 9.793 m/s² सैन फ्रांसिस्को 9.800 m/s²
ब्रसेल्स 9.811 m/s² लिस्बन 9.801 m/s² सिंगापुर 9.781 m/s²
Buenos Aires 9.797 m/s² लन्दन 9.812 m/s² स्टॉकहोम 9.818 m/s²
कोलकाता 9.788 m/s² लॉस एंजेल्स 9.796 m/s² सिडनी 9.797 m/s²
केप टाउन 9.796 m/s² मैड्रिड 9.800 m/s² तैपेयी (Taipei) 9.790 m/s²
शिकागो 9.803 m/s² मनीला 9.784 m/s² टोक्यो 9.798 m/s²
कोपेनहैगन 9.815 m/s² मैक्सिको सिटी 9.779 m/s² वैंकुवर (Vancouver) 9.809 m/s²
निकोसिया 9.797 m/s² न्यू यॉर्क नगर 9.802 m/s² वाशिंगटन डीसी 9.801 m/s²
जाकर्ता 9.781 m/s² ओस्लो 9.819 m/s² वेलिंगटन 9.803 m/s²
फ्रैंकफुर्त 9.810 m/s² ओटावा 9.806 m/s² ज्युरिक 9.807 m/s²

g का मान ज्ञात करने की विधियाँ

g का मान ज्ञात करने की विधियों को दो कोटियों में विभक्त कर सकते हैं:

(अ) प्रत्यक्ष विधि और

(ब) दोलक विधि।

प्रत्यक्ष विधि

इस विधि में किसी पिंड को निश्चित ऊँचाई से गिराया जाता है और समान अवधि में उसके द्वारा पार की हुई दूरियाँ नाप ली जाती हैं। इससे g के मान की गणना की जाती है। इस विधि का प्रयोग ऐटवुड की मशीन (Atwood’s Machine) में किया जाता है। इसमें दो संहतियाँ m1 और m2 जिनमें परस्पर अत्यंत सूक्ष्म अंतर होता है, एक तागे द्वारा जुड़ी होती हैं जो एक घिरनी (Pulley) पर से होकर गुजरती है। यदि m2 अपेक्षाकृत भारी हो तो यह नीचे उतरने लगेगी और m1 ऊपर चढने लगेगी। यदि s दूरी पर कर चुकने पर उसका वेग v हो जाए और त्वरण f हो तो न्यूटन के गतिनियम के अनुसार

v‍^2 = 2 f s

त्वरण f का मान निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है:

f = m1 + m2 g r^2 / (I + (m1 + m2) r^2)

यहाँ I केंद्र के चारो ओर घिरनी का अवस्थितत्व घूर्ण है तथा r घिरनी का अर्धव्यास है।

अत: इस विधि में घिरनी के घर्षण तथा वायु के प्रतिरोध इत्यादि का कोई विचार नहीं किया जाता, इसलिये इसके द्वारा प्राप्त g के मान में पर्याप्त त्रुटि रहती है। इन कारणों से इस विधि का अनुसरण सामान्यत: नहीं किया जाता है।

लोलक की विधि (Method of Pendulums)

इस विधि में एक लोलक को उसकी मध्यमान स्थिति के दोनों ओर दोलन कराकर आवर्तकाल T ज्ञात किया जाता है। यदि निलंबन बिंदु (point of suspension) से लेकर लोलक के गुरुत्वकेंद्र तक की दूरी ल (I) हो और यह मान लिया जाय कि लोलक का संपूर्ण भार उसके गुरूत्वकेंद्र पर ही संघनित हो तो दोलनकाल (आवर्तकाल) T और गुरूत्व की त्व्रीाता g पर परस्पर निम्नलिखित सूत्र द्वारा संबंधित होते हैं:

T = 2 p ÖI/g

या, g = 4p 2 I/T2

इस विधि में यह ध्यान रखा जाता है कि लोलक का दोलन विस्तार या आयाम (amplitude) ४० से अधिक न हो, अन्यथा सूत्र में निम्नलिखित संशोधन करना पड़ेगा :

T = 2 (1+ 1/4 Sin2 q/2 + 9/64 Sin4 q/2 + ¼) Ö1 / g

यहाँ q आयाम हैं।

g का अधिक सटीक मान ज्ञात करने के लिये एक दृढ़ पिंड को लोलक के रूप में लिया जाता है जो क्षैतिज़ क्षुरधार (knife edge) पर दोलन करता है। यदि गुरुत्वकेंद्र से क्षुरधार की दूरी I हो और k उसके गुरुत्वकेंद्र से होकर जानेवाली तथा क्षुरधार के समांतर अक्ष के चारों ओर विघूर्णन त्रिज्या (radius of gyration) हो तो सूत्र

g = 4 p 2 (k^2 + I^2) / IT^2

द्वारा g का मान अधिक ठीक ठीक ज्ञात किया जा सकता है। ऐसे लोलक को यौगिक लोलक (compound pendulum) कहा जाता है।

यदि यौगिक लोलक में I के भिन्न-भिन्न मानों के लिए आवर्तकाल T के पाठ लिए जायँ तथा I और T के बीच एक लेखाचित्र प्राप्त किया जाय तो लोलक के सिरे से नापने पर लंबाई का मान ज्यों ज्यों बढ़ता है, दोलनकाल घटता जाता है, किंतु न्यूनतम मान न तक पहुँचने के उपरांत पुन: बढ़ने लगता है (देखें चित्र ५)। लोलक के मध्यबिंदु के निकट पहँुचने पर दोलनकाल बड़ी द्रुत गति से अनंत मान की ओर अग्रसर होता है।

केटर (Capt. Henry Kater, सन्‌ १८१८) ने g का अधिक सटीक मान ज्ञात करने के लिये ऐसा लोलक लिया जो छड़ के रूप में था और जिसके मध्यबिंदु के दोनों ओर एक क्षुरधार था। दोनों क्षुरधारों से लटकाए जाने पर लालक का आवर्तकाल एक ही आता था। इसी छड़ में असमान संहतिवाले दो धातुखंड भी लगे थे। एक की संहति दूसरे से काफी अधिक थी। भारी संहति को समंजित करके दोनों क्षुरधारों पर लोलक के आवर्तकाल लगभग समान किए जा सकते थे और हलकी संहति को समंजित करके दोनों आवर्तकालों के बीच के अंतर को और भी कम किया जा सकता था। यदि T1और T2 क्रमश: दोनों क्षुरधारों से दोलन कराने पर आवर्तकाल हों और I1 तथा I2 उन क्षुरधारों की छड़ के गुरुत्वकेंद्र से दूरियाँ हों तो बेसेल (Bessel) के अनुसार

4 p 2/g = T12+T22/I1+I2 + T12-T22/I1-I2

इसमें I1 + I2 को ठीक ठीक नापा जा सकता है और अंतिम पद अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण त्याज्य है। अत: यह सूत्र g का ठीक ठीक मान दे सकता है।

प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए :

(१) आयाम या दोलनविस्तार कम हो,

(२) वायु के प्रतिरोध तथा वायु के घर्षण से लोलक की गति को यथासंभव कम से कम प्रभावित रखने की चेष्टा करनी चाहिए,

(३) लोलक का आलंब (support) ऐसा चुनना चाहिए कि वह लोलक के भार के कारण लचक न जाए तथा

(४) प्रयोग की अवधि भर कमरे का ताप अधिक न बदले, अन्यथा लोलक के प्रसार के कारण लंबाई I में अंतर आ जायगा।

धरती के गुरुत्व की अन्य आकाशीय पिण्डों के गुरुत्व से तुलना

आकाशीय पिण्ड पृथ्वी के
गुरुत्व का गुणक
m/s²
सूर्य 27.90 274.1
बुध (Mercury) 0.3770 3.703
शुक्र (Venus) 0.9032 8.872
पृथ्वी 1 (by definition) 9.8226[१]
चन्द्रमा 0.1655 1.625
मंगल (Mars) 0.3895 3.728
वृहस्पति (Jupiter) 2.640 25.93
शनि (Saturn) 1.139 11.19
अरुण (Uranus) 0.917 9.01
वरुण (Neptune) 1.148 11.28
यम (Pluto) 0.0621 0.610

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

साँचा:reflist

बाहरी कड़ियाँ

  1. This value excludes the adjustment for centrifugal force due to Earth’s rotation and is therefore greater than the 9.8 m/s² value of standard gravity.