पौष पूर्णिमा

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यह विक्रम संवत के दसवें मास पौष के शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि है। इस दिन को देवी शाकम्भरी की याद मे भी मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन देवों की करूण पुकार को सुन आदिशक्ति जगदम्बा शाकुम्भरी के रूप मे शिवालिक हिमालय मे प्रकट हुई थी

शाकम्भरी देवी

महत्वपूर्ण घटनाएँ

इस दिन देवी शाकम्भरी का प्राकाट्य हुआ था सहारनपुर की शिवालिक पर्वत श्रृंखला मे माँ का प्राकाट्य स्थल मौजूद है। इस पावन शक्तिपीठ मे भीमा, भ्रामरी ,शताक्षी और गणेश जी भी विराजमान है।

पर्व त्योहार

शाकंभरी जयन्ती

जैन धर्मावलंवियों द्वारा इस दिन को शाकंभरी जयंती के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में लोग इस दिन को शाकंभरी जयंती के रूप में मनाते हैं। माता शाकंभरी देवी जनकल्याण के लिए पृथ्वी पर आई थी। यह मां प्रकृति स्वरूपा है हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रेणियों की तलहटी में घने जंगलों के बीच मां शाकंभरी का प्राकट्य हुआ था। माँ शाकंभरी की कृपा से भूखे जीवो और सूखी हुई धरती को पुनः नवजीवन मिला। माता के देश भर में अनेक मंदिर हैं पर सहारनपुर शक्तिपीठ की महिमा सबसे निराली है क्योंकि माता का सर्वाधिक प्राचीन शक्तिपीठ यही है यह प्राचीन विश्वविख्यात शक्तिपीठ सिद्धपीठ शाकम्भरी देवी के नाम से विख्यात है जो उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर में पड़ता है माता जी का यही स्थान प्रमुख शक्तिपीठ है इसके अलावा माता का एक प्रधान मंदिर राजस्थान के सीकर जिले की अरावली की पहाड़ियों में एक सुंदर घाटी में विराजमान हैं जो सकराय माता के नाम से विख्यात हैं। माता का एक अन्य मंदिर चौहानों की कुलदेवी के रूप में माता शाकंभरी देवी सांभर में नमक की झील के अंदर विराजमान हैं । राजस्थान के नाडोल में मां शाकंभरी आशापुरा देवी के नाम से पूजी जाती हैं । यही मां दक्षिण भारत में बनशंकरी के नाम से जानी जाती हैं। कनकदुर्गा इनका ही एक रूप है। इन सभी जगहों पर शाकंभरी नवरात्रि और पौष पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। मंदिरों में शंख ध्वनि होती है और गर्भगृह को शाक सब्जियों और फलों से सजाया जाता है।

छेरता

छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाली जनजातियाँ पौष माह के पूर्णिमा के दिन छेरता पर्व बडे़ धूमधाम से मनाती हैं। सभी के घरों में नये चावल का चिवड़ा गुड़ तथा तिली के व्‍यंजन बनाकर खाया जाता है। गांव के बच्‍चों की टोलियाँ घर-घर जाकर परम्‍परानुसार प्रचलित बोल छेर छेरता काठी के धान हेर लरिका बोलते हैं और मुट्ठी भर अनाज मांगते हैं। रात्रि में ग्रामीण बालाएं टोली बनाकर घर में जाकर लोकड़ी नामक गीत गाती हैं।

बाहरी कड़ियाँ



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