पुरूवास

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साँचा:infobox राजा पुरुषोत्तम या राजा पोरस का राज्य पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक फैला हुआ था। वर्तमान लाहौर के आस-पास इसकी राजधानी थी।,[१] जिनका साम्राज्य पंजाब में झेलम और चिनाब नदियों तक (ग्रीक में ह्यिदस्प्स और असिस्नस) और उपनिवेश ह्यीपसिस तक फैला हुआ था।

जीवनी

पोरस या पोरोस (ग्रीक Πῶρος, Pôros से), पौरों का राजा था। इनका क्षेत्र हाइडस्पेश (झेलम) और एसीसेंस (चिनाब) के बीच था जो कि अब पंजाब का क्षेत्र है। पोरस ने हाइडस्पेश की लड़ाई में अलेक्जेंडर ग्रेट के साथ लड़ाई की। पोरस का साम्राज्य विशालकाय था। महाराजा पोरस सिन्ध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। पोरस का साम्राज्य जेहलम (झेलम) और चिनाब नदियों के बीच स्थित था। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में रहने वाले खोखरों ने राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हत्या का बदला लेने के लिए मोहम्मद ग़ोरी को मौत के घाट उतार दिया था।

‘पोरस अपनी बहादुरी के लिए विख्यात था। उसने उन सभी के समर्थन से अपने साम्राज्य का निर्माण किया था जिन्होंने खुखरायनों पर उसके नेतृत्व को स्वीकार कर लिया था। जब सिकंदर हिन्दुस्तान आया और जेहलम (झेलम) के समीप पोरस के साथ उसका संघर्ष हुआ, तब पोरस को खुखरायनों का भरपूर समर्थन मिला था। इस तरह पोरस, उनका शक्तिशाली नेता बन गया।’ -आईपी आनंद थापर (ए क्रूसेडर्स सेंचुरी : इन परस्यूट ऑफ एथिकल वेल्यूज/केडब्ल्यू प्रकाशन से प्रकाशित)

सिन्धु और झेलम : सिन्धु और झेलम को पार किए बगैर पोरस के राज्य में पैर रखना मुश्किल था। राजा पोरस अपने क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति, भूगोल और झेलम नदी की प्रकृति से अच्छी तरह वाकिफ थे। महाराजा पोरस सिन्ध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। पुरु ने इस बात का पता लगाने की कोशिश नहीं की कि यवन सेना की शक्ति का रहस्य क्या है? यवन सेना का मुख्य बल उसके द्रुतगामी अश्वारोही तथा घोड़ों पर सवार फुर्तीले तीरंदाज थे।

इतिहासकार मानते हैं‍ कि पुरु को अपनी वीरता और हस्तिसेना पर विश्वास था लेकिन उसने अलेक्जेंडर द ग्रेट को झेलम नदी पार करने से नहीं रोका और यही उसकी भूल थी। लेकिन इतिहासकार यह नहीं जानते कि झेलम नदी के इस पार आने के बाद अलेक्जेंडर द ग्रेट बुरी तरह फंस गया था, क्योंकि नदी पार करने के बाद नदी में बाढ़ आ गई थी।

जब अलेक्जेंडर द ग्रेट ने आक्रमण किया तो उसका गांधार-तक्षशिला के राजा आम्भी ने स्वागत किया और आम्भी ने सिकंदर की गुप्त रूप से सहायता की। आम्भी राजा पोरस को अपना दुश्मन समझता था। सिकंदर ने पोरस के पास एक संदेश भिजवाया जिसमें उसने पोरस से सिकंदर के समक्ष समर्पण करने की बात लिखी थी, लेकिन पोरस ने तब अलेक्जेंडर द ग्रेट की अधीनता स्वीकार नहीं की।

जासूसों और धूर्तताके बल पर अलेक्जेंडर द ग्रेट के सरदार युद्ध जीतने के प्रति पूर्णतः विश्वस्त थे। राजा पुरु के शत्रु लालची आम्भी की सेना लेकर अलेक्जेंडर द ग्रेट ने झेलम पार की। राजा पुरु जिसको स्वयं यवनी 7 फुट से ऊपर का बताते हैं, अपनी शक्तिशाली गजसेना के साथ यवनी सेना पर टूट पड़े। पोरस की हस्ती सेना ने यूनानियों का जिस भयंकर रूप से संहार किया था उससे सिकंदर और उसके सैनिक आतंकित हो उठे थे।

भारतीयों के पास विदेशी को मार भगाने की हर नागरिक के हठ, शक्तिशाली गजसेना के अलावा कुछ अनदेखे हथियार भी थे जैसे सातफुटा भाला जिससे एक ही सैनिक कई-कई शत्रु सैनिकों और घोड़े सहित घुड़सवार सैनिकों भी मार गिरा सकता था। इस युद्ध में पहले दिन ही सिकंदर की सेना को जमकर टक्कर मिली। सिकंदर की सेना के कई वीर सैनिक हताहत हुए। यवनी सरदारों के भयाक्रांत होने के बावजूद सिकंदर अपने हठ पर अड़ा रहा और अपनी विशिष्ट अंगरक्षक एवं अंत: प्रतिरक्षा टुकड़ी को लेकर वो बीच युद्ध क्षेत्र में घुस गया। कोई भी भारतीय सेनापति हाथियों पर होने के कारण उन तक कोई खतरा नहीं हो सकता था, राजा की तो बात बहुत दूर है। राजा पुरु के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े बुकिफाइलस (संस्कृत-भवकपाली) को अपने भाले से मार डाला और सिकंदर को जमीन पर गिरा दिया। ऐसा यूनानी सेना ने अपने सारे युद्धकाल में कभी होते हुए नहीं देखा था।

सिकंदर जमीन परगिरा तो सामने राजा पुरु तलवार लिए सामने खड़ा था। सिकंदर बस पलभर का मेहमान था कि तभी राजा पुरु ठिठक गया। यह डर नहीं था, शायद यह आर्य राजा का क्षात्र धर्म था, बहरहाल तभी सिकंदर के अंगरक्षक उसे तेजी से वहां से भगा ले गए।

पृष्ठभूमि

पोरस पर उपलब्ध एकमात्र जानकारी यूनानी स्रोतों से है इतिहासकारों ने हालांकि तर्क दिया है कि उनके नाम और उनके डोमेन के स्थान पर आधारित पोरस को ऋगवेद में उल्लेखित पुरू जनजाति के वंशज होने की संभावना थी। इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद ने कहा कि पोरस यदुवंशी शोरसेनी हो सकता था। उन्होंने तर्क दिया कि पोरस के मोहरा सैनिकों ने हेराकल्स का एक बैनर जिसे मेगस्थनीज़ ने देखा था, जो पोरस के बाद भारत की यात्रा पर चन्द्रगुप्त द्वारा मथुरा के शोरसैनियों के साथ स्पष्ट रूप से पहचाने गए थे। मेगास्थनीज़ और एरियन के हेराकल्स कुछ विद्वानों द्वारा कृष्ण के रूप में और अन्य लोगों द्वारा उनके बड़े भाई बलदेव के रूप में पहचाने गए हैं, जो शूरसेनी के पूर्वजों और संरक्षक देवताओं दोनों थे। ईश्वरी प्रसाद और अन्य, उनकी अगुवाई के बाद, इस निष्कर्ष का अधिक समर्थन इस तथ्य में पाया गया कि शूरसेनियों का एक हिस्सा कृष्ण के निधन के बाद पंजाब और आधुनिक अफगानिस्तान से मथुरा से द्वारका के लिए पश्चिम की ओर पलायन कर रहा था और वहां नए राज्य स्थापित किए थे।

अलेक्जेंडर द ग्रेट से लडाई

सिन्धु और झेलम को पार किए बगैर पोरस के राज्य में पैर रखना मुश्किल था। राजा पोरस अपने क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति, भूगोल और झेलम नदी की प्रकृति से अच्छी तरह वाकिफ थे। महाराजा पोरस सिन्ध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। पुरु ने इस बात का पता लगाने की कोशिश नहीं की कि यवन सेना की शक्ति का रहस्य क्या है? यवन सेना का मुख्य बल उसके द्रुतगामी अश्वारोही तथा घोड़ों पर सवार फुर्तीले तीरंदाज थे।

इतिहासकार मानते हैं‍ कि पुरु को अपनी वीरता और हस्तिसेना पर विश्वास था लेकिन उसने सिकंदर को झेलम नदी पार करने से नहीं रोका और यही उसकी भूल थी। लेकिन इतिहासकार यह नहीं जानते कि झेलम नदी के इस पार आने के बाद सिकंदर बुरी तरह फंस गया था, क्योंकि नदी पार करने के बाद नदी में बाढ़ आ गई थी।

जब अलेक्जेंडर द ग्रेट ने आक्रमण किया तो उसका गांधार-तक्षशिला के राजा आम्भी ने स्वागत किया और आम्भी ने सिकंदर की गुप्त रूप से सहायता की। आम्भी राजा पोरस को अपना दुश्मन समझता था। सिकंदर ने पोरस के पास एक संदेश भिजवाया जिसमें उसने पोरस से सिकंदर के समक्ष समर्पण करने की बात लिखी थी, लेकिन पोरस ने तब सिकंदर की अधीनता स्वीकार नहीं। अगले पन्ने पर युद्ध का वर्णन...


जासूसों और धूर्तताके बल पर अलेक्जेंडर द ग्रेट के सरदार युद्ध जीतने के प्रति पूर्णतः विश्वस्त थे। राजा पुरु के शत्रु लालची आम्भी की सेना लेकर सिकंदर ने झेलम पार की। राजा पुरु जिसको स्वयं यवनी 7 फुट से ऊपर का बताते हैं, अपनी शक्तिशाली गजसेना के साथ यवनी सेना पर टूट पड़े। पोरस की हस्ती सेना ने यूनानियों का जिस भयंकर रूप से संहार किया था उससे सिकंदर और उसके सैनिक आतंकित हो उठे थे।

भारतीयों के पास विदेशी को मार भगाने की हर नागरिक के हठ, शक्तिशाली गजसेना के अलावा कुछ अनदेखे हथियार भी थे जैसे सातफुटा भाला जिससे एक ही सैनिक कई-कई शत्रु सैनिकों और घोड़े सहित घुड़सवार सैनिकों भी मार गिरा सकता था। इस युद्ध में पहले दिन ही सिकंदर की सेना को जमकर टक्कर मिली। अलेक्जेंडर द ग्रेट की सेना के कई वीर सैनिक हताहत हुए। यवनी सरदारों के भयाक्रांत होने के बावजूद सिकंदर अपने हठ पर अड़ा रहा और अपनी विशिष्ट अंगरक्षक एवं अंत: प्रतिरक्षा टुकड़ी को लेकर वो बीच युद्ध क्षेत्र में घुस गया। कोई भी भारतीय सेनापति हाथियों पर होने के कारण उन तक कोई खतरा नहीं हो सकता था, राजा की तो बात बहुत दूर है। राजा पुरु के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े बुकिफाइलस (संस्कृत-भवकपाली) को अपने भाले से मार डाला और सिकंदर को जमीन पर गिरा दिया। ऐसा यूनानी सेना ने अपने सारे युद्धकाल में कभी होते हुए नहीं देखा था।

अलेक्जेंडर द ग्रेट जमीन पर गिरा तो सामने राजा पुरु तलवार लिए सामने खड़ा था। अलेक्जेंडर द ग्रेट बस पलभर का मेहमान था कि तभी राजा पुरु ठिठक गया। फिर भी सिकंदर ने पोरस पर बीजय पायी। पोरस को गिरफ्तार कर लिया। सिकंदर ने पुछा तुम्हरा क्या किया जाये? तोह पराक्रमी पोरस ने कहा की जो एक राजा दूसरे के साथ करे वो कर। इसे माफ कर छोड़ दिया गया।

हत्या

पोरस की हत्या सिकंदर के एक सैनिक ने की थी। इस हत्याकांड मे आम्भी का नाम भी सामने आता हैं। इसकी पत्नी भी इसके साथ मरे गये थे।

लोकप्रिय संस्कृति में

  • सर्वप्रथम १९४१ में आई फिल्म सिकंदर में सोहराब मोदी ने पोरस का किरदार निभाया था।
  • 1991 चाणक्य (टीवी श्रृंखला) में पोरस का अभिनय अरुण बाली द्वारा किया गया था।
  • पोरस, 1999 कि एनिमेटेड श्रृंखला रीगन: द कॉंकरोर में दिखाई दिया था।
  • पोरस को अलेक्जेंडर (2004) में थाई अभिनेता, बिन बनल्यूरिट द्वारा चित्रित किया गया है।
  • पोरस, 2011 कि चंद्रगुप्त मौर्य (टीवी श्रृंखला) में दिखाई देता है।
  • सोनी टीवी हाइडस्पेश की लड़ाई पर एक नया सीरीयल शीर्षक पोरस ला रहा है।

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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